खचाखच भरे मेजर ध्यानचंद स्टेडियम पर चारों ओर से आते ‘इंडिया इंडिया’ के शोर के बीच भारत ने रविवार (18 दिसंबर) को बेहतरीन हॉकी का नमूना पेश करते हुए बेल्जियम को 2-1 से हराकर जूनियर हॉकी विश्व कप अपने नाम करने के साथ इतिहास पुस्तिका में नाम दर्ज करा लिया। भारतीय हाकीप्रेमियों ने ऐसा अप्रतिम मंजर बरसों बाद देखा जब टीम के हर मूव पर ‘इंडिया इंडिया’ के नारे लगाते 10000 से ज्यादा दर्शकों का शोर गुंजायमान था। मैदान के चारों ओर दर्शक दीर्घा में लहराते तिरंगों और हिलोरे मारते दर्शकों के जोश ने अनूठा समा बांध दिया। जिसने भी यह मैच मेजर ध्यानचंद स्टेडियम पर बैठकर देखा, वह शायद बरसों तक इस अनुभव को भुला नहीं सकेगा।
हूटर के साथ ही कप्तान हरजीत सिंह की अगुवाई में भारतीय खिलाड़ियों ने मैदान पर भंगड़ा शुरू कर दिया तो उनके साथ दर्शक भी झूम उठे। कोच हरेंद्र सिंह अपने आंसुओं पर काबू नहीं रख सके। हर तरफ जीत के जज्बात उमड़ रहे थे। कहीं आंसू के रूप में तो कहीं मुस्कुराहटों के बीच। पंद्रह बरस पहले ऑस्ट्रेलिया के होबर्ट में खिताब अपने नाम करने के बाद भारत ने पहली बार जूनियर हॉकी विश्व कप जीता। भारत 2005 में स्पेन से कांस्य पदक का मुकाबला हारकर चौथे स्थान पर रहा था और उस समय भी कोच हरेंद्र सिंह ही थे।
टीम के कोच हरेन्द्र सिंह बिहार के ही छपरा जिले के रहने वाले है।
11 साल पहले रोटरडम में ब्रॉन्ज मेडल नहीं जीत पाने की टीस उनके दिल में नासूर की तरह घर कर गई थी और अपनी सरजमीं पर घरेलू दर्शकों के सामने इस जख्म को भरने के बाद कोच हरेंद्र सिंह अपने आंसुओं पर काबू नहीं रख सके। आप उनकी कहानी जानेंगे तो आपको बरबस ही ‘चक दे इंडिया’ में महिला हॉकी टीम के कोच कबीर खान की याद आ जाएगी। कबीर खान की भूमिका को शाहरुख खान ने निभाया था।
भारत के फाइनल में प्रवेश के बाद जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘यह मेरे अपने जख्म हैं और मैं टीम के साथ इसे नहीं बांटता। मैंने खिलड़ियों को इतना ही कहा था कि हमें मेडल जीतना है, रंग आप तय कर लो। रोटरडम में मिले जख्म मैं एक पल के लिए भी भूल नहीं सका था।’
रोटरडम में ब्रॉन्ज मेडल के लिए हुए मुकाबले में स्पेन ने भारत को पेनल्टी शूटआउट में हराया था। अपने 16 बरस के कोचिंग कैरियर में अपने जुनून और जज्बे के लिए मशहूर रहे हरेंद्र ने 2 बरस पहले जब फिर जूनियर टीम की कमान संभाली, तभी से इस खिताब की तैयारी में जुट गए थे।
उनका किरदार चक दे इंडिया के कोच कबीर खान (शाहरूख खान) की याद दिलाता है जिसने अपने पर लगे कलंक को मिटाने के लिये एक युवा टीम की कमान संभाली और उसे वर्लड चैम्पियन बना दिया। हरेंद्र ने खिलाड़ियों में आत्मविश्वास और हार नहीं मानने का जज्बा भरा। लेकिन सबसे बड़ी उपलब्धि रही कि उन्होंने युवा टीम को व्यक्तिगत प्रदर्शन के दायरे से निकालकर एक टीम के रूप में जीतना सिखाया।