बिहार की बेटियां अगर कुछ करने को ठान लेती हैं तो कोई भी ताकत उसे रोक नही सकती है.बिहार के बेगुसराय की बेबी कुमारी ने भी गरीबी और मुफलिसी के बावजूद आज वो कारनामा कर दिखाया जिससे बिहार ही नही बल्कि पुरे देश के लोगों का सर गर्व से और ऊँचा हो गया है.
अतर्राष्ट्रीय आधुनिक पेंटाथलान संघ की ओर से गोवा में आयोजित यूनियन इंटरनेशनल डे पेंटाथलॉन मॉडर्न बैथलॉन वर्ल्ड 2016 में बिहार के एक मछुआरे की बेटी बेबी ने गोल्ड मेडल जीतकर अपने राज्य का नाम रौशन किया।
गांव के पोखर से तैराकी कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने वाली बेबी कुमारी मछली पकड़ने वाले एक गरीब पिता की बेटी है.
गरीबी और मुफलिसी के बीच कुछ करने की चाहत ने आज बेबी को वो पहचान दी जो शायद कम ही लोगों को नसीब होता है. सीमित संसाधनों के बाबजूद तैराकी में कुछ कर गुजरने की हसरत बेबी और उसके परिवार को बचपन से ही थी.
इसी का नतीजा था कि गांव के पोखर से तैराकी की शुरूआत करनेवाली बेबी ने हाल ही में गोवा में अंतराष्ट्रीय आधुनिक पेंटांथलान संघ की ओर से आयोजित वर्ल्ड प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता.
19 से 21 आयु वर्ग की महिला श्रेणी में भारत की ओर से बेबी और राजस्थान की एक युवती ने हिस्सा लिया था, जिसमें बेबी को यह कामयाबी हासिल हुई. बेबी की इच्छा 2018 में ओलंपिक में हिस्सा लेने की है.
बेबी की इस कामयाबी से न सिर्फ उसके माता-पिता बल्कि पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ गई. बेबी के गांव पहुंचते ही गांववालो ने गर्मजोशी से उसका स्वागत किया. इस कामयाबी से पिता और मां का सीना गर्व से ऊंचा है.
वहीं सरकार की उदासीनता टीस बनकर सामने आ रही है. इस प्रतियोगिता में बेबी ने इंग्लैड, श्रीलंका, नेपाल सहित कई देशों के प्रतिभागियों को पीछे छोड़ते हुए गोल्ड मेडल जीता.
इतना ही नहीं, बेबी बिहार के बाहर और देश के अन्य बड़े प्रतियोगिताओं में जिला और बिहार का नाम रोशन करती रही है. वह 2007 से लेकर 2014 तक बिहार चैंपियन रही हैं. अपनी इस कामयाबी के लिए गुजरात के तात्कालिक मुख्यमंत्री और वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही नहीं बल्कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक से सम्मान पा चुकी हैं.
कामयाबी के बाबजूद आज तक सरकार ने उसकी कोई सुधी नहीं ली. फूस के टूटे-फूटे घर, दो गाय के अलावा मछली मारकर परिवार का भरण-पोषण का काम करने वाले पिता ने अपने बेटी के हौसले को कभी पस्त नही होने दिया. जैसे जैसे कामयाबी की सीढ़ी आगे बढ़ती गई परिवार की माली हालत खराब होती गई.
बेबी के एक भाई और एक अन्य बहन भी तैराकी मे अपना नाम कमा चुके हैं. बेबी न सिर्फ तैराकी में बल्कि पढ़ने मे भी बचपन से ही मेधावी रही है. बेबी की शिक्षक अपनी शिष्या की इस कामयाबी पर फूले नही समां रही हैं. शिक्षिका का भी मानना है की अगर इसके प्रतिभा को निखारने के लिए सरकार आगे आए तो नजारा कुछ और हो सकता है.
गांव लौटने पर गांव के लोगो ने बेबी का गर्मजोशी से स्वागत किया. गांववाले उसे जहां नन्ही जलपरी के नाम से पुकारते हैं वही गांव में खेल के संसाधनों के नामोनिशान नहीं होने से बेहद खफा भी हैं. गांववाले मानते हैं कि अगर जल्द ही सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो एक दिन बेबी का हैसला कहीं पस्त न हो जाए.
सीमित संसाधनो के बाबजूद बिहार और देश का नाम रौशन करनेवाली बेबी 2018 मे आयोजित होने वाली ओलंपिक मे हिस्सा लेकर देश का नाम रौशन करना चाहती है. अब देखना है कि क्या सरकार बेबी के इस सपने को पूरा करने में सामने आती है या फिर बेबी की जिदंगी टूटे-फूटे घर तक ही सिमट कर रह जाती है.