ये क्या! देश का हर पांचवा कुष्ठ रोगी बिहार से?

कुष्ठ रोग एक ऐसा रोग जो की बुजुर्गो में ज्यादा देखने को मिलते है. लेकिन बिगत कुछ सालों में इसकी संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है
लेकिन यह रोग इनदिनों बच्चों में भी लगातार फैलती जा रही रही है
देश में कुष्ठ रोगी बच्चों की संख्या लगभग 8% है जबकि बिहार में अकेले कुष्ठ रोगी बच्चों की संख्या लगभग 15 % है
नेशनल लेप्रसी इरिडिकेशन प्रोग्राम के 2014-15 की प्रोग्रेस रिपोर्ट बताती है कि आज की तारीख में बिहार में कुष्ठ रोगी बच्चों की संख्या 2392 पहुंच गयी है.
यह न सिर्फ देश में सर्वाधिक है बल्कि देश के कुल 11365 कुष्ठ रोगी बच्चों का पांचवे हिस्से से भी अधिक है. यानी देश का हर पांचवां कुष्ठ रोगी बच्चा बिहार में रहता है. विशेषज्ञ इसे नये तरह का संकट मान रहे हैं. वे कहते हैं कि चूंकि बच्चों का इम्यूनिटी लेवल कम होता है इसलिए ये आसानी से संक्रमण का शिकार हो जाते हैं. हालांकि यह बात देश के दूसरे इलाकों के बारे में सच नहीं साबित हो रही है.
कुष्ठ रोग के उन्मूलन के लिए काम करने वाली संस्था डेमियेन फाउंडेशन इंडिया ट्रस्ट (डीएफआइटी) की पटना स्थित शाखा में कार्यरत एनएलईपी, बिहार कंसल्टेंट डॉ. आशीष वाघ कहते हैं, यहां कुष्ठ रोग के प्रसार की सबसे बड़ी वजह लोगों में इस रोग के प्रति झिझक है. चूंकि समाज में इस रोग को लेकर नकारात्मक भावना है इसलिए वे अक्सर इसे छिपाने की कोशिश करते हैं और उनकी वजह से यह संक्रमण फैलता रहता है. छोटे बच्चे आसानी से इसका शिकार हो जाते हैं. जबकि अगर रोगी दवा का प्रयोग शुरू कर दे, तो बड़ी आसानी से इस रोग की भयावहता को कम किया जा सकता है और इसके प्रसार को भी रोका जा सकता है.
डॉ. वाघ कहते हैं, इसी वजह से पिछले दो साल से बिहार में राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन अभियान का संचालन हो रहा है. इस अभियान के तहत आशा कार्यकर्ता घर-घर जाकर कुष्ठ रोगियों की पहचान करती हैं और उन्हें इलाज कराने के लिए प्रेरित करती हैं. इस साल भी पांच सितंबर से 18 सितंबर तक यह अभियान चला है. इस अभियान को नजदीक से देखने वाले लोग बता रहे हैं कि इस साल भी बड़ी संख्या में शिशु रोगी मिले हैं.
हालांकि स्टेट लेप्रसी ऑफिसर विजय कुमार पांडेय इसे बड़ी समस्या नहीं मानते. वे कहते हैं कि मुख्य लक्ष्य लेप्रसी को खत्म करना है और हम इसमें जुटे हैं. एक बार लेप्रसी खत्म हो गया तो क्या बच्चे, क्या बड़े सब इस खबरे से मुक्त रहेंगे. वे अपील करते हुए कहते हैं कि इन दिनों संचालित हो रहे कुष्ठ उन्मूलन अभियान को सफल बनाने के लिए सभी को मदद करना चाहिये. अगर किसी के शरीर में कोई ऐसा पैच हो जो सुन्न पड़ गया हो तो उसे खुद आकर अस्पताल में जांच करानी चाहिए. अस्पताल में ऐसे रोगियों के लिए मुफ्त दवा उपलब्ध है और इसका उपचार मुमकिन है.
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कुष्ठ रोग – एक परिचय
1. कुष्ठ एक संक्रामक रोग है जो गंभीर होने पर इनसान को विकलांग बना सकता है.
2. कुष्ठ रोग शुरुआती दौर में तो नुकसान नहीं करता, मगर वह 5 से 40 साल की उम्र में सक्रिय होकर इनसान को विकलांग बना सकता है.
3. कुष्ठ रोगी रोगी के सांस लेने से फैलता है. इसलिए अगर कोई कुष्ठ रोगी इलाज नहीं करा रहा है तो वह दूसरों को भी इसका शिकार बना सकता है. खास तौर पर छोटे बच्चों को.
4. एक बार इलाज शुरू होने पर पहली दवा खाते ही रोग की संक्रमण क्षमता खत्म हो जाती है. इसलिए इलाजरत रोगी से परहेज करने की जरूरत नहीं.
कुष्ठ रोग का कोई वैक्सीन नहीं बना है.
कुष्ठ रोगियों को मिलने वाली सरकारी सुविधाएं
1. मुफ्त दवा
2. दवा से होने वाले रिएक्शन की मुफ्त दवा.
3. अपाहिज हो गये रोगियों को एमसीआर फुटवेयर साल में दो दफा.
4. अपाहिज रोगियों को दूसरे जरूरी उपकरण.
5. बिहार शताब्दी कुष्ठ कल्याण योजना के तहत हर रोगी को 1500 रुपये प्रति माह की पेंशन मिलती है. साथ ही रोगी के हर बच्चे को 18 साल की उम्र तक पढ़ाई के लिए 1000 रुपये प्रति माह की सहायता दी जाती है.
बिहार में यहां सर्जरी की सुविधा 
1. पीएमसीएच, पटना
2. डीएमसीएच, दरभंगा
3. टीएलएम, मुजफ्फरपुर
4. डीएफआइटी मॉडल लेप्रेसी कंट्रोल यूनिट, रुद्रपुर, सासाराम।
ऐसे पहचानें : अगर आपके शरीर में कोई भूरा रंग का धब्बा हो. अगर वह धब्बा जन्म से न हो, उसमें खुजलाहट या दर्द न हो तो जांच करानी चाहिए. वह कुष्ठ हो सकता है.
इलाज : अगर रोग की पहचान शुरुआत में ही हो जाये तो दवा से इलाज मुमकिन है. एमटीडी दवा हर प्राथमिक अस्पताल में मुफ्त उपलब्ध है. कुष्ठ रोग से नसों में खिंचाव आने लगता है और इनसान विकलांग हो सकता है. विकलांगता की स्थिति में सर्जरी ही एकमात्र उपाय है.

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