बिहार में शराबबंदी का साइड इफेक्ट्स….
बिहार में शराबबंदी के साइडइफेक्ट्स के कई किस्से रोज सुनता रहता हूं । बड़े इवेंट्स नहीं हो रहे/लांचिंग शिफ्ट हो गई/बड़ी शादियां भी दूसरे शहरों में जा रही – पहले दिन से सुन रहा हूं । लेकिन बुधवार को मेरे हजाम राजेश ठाकुर की आपबीती अलग किस्म की थी ।
मोरल आफ स्टोरी को कैसे समझें,मैं तो नहीं समझ पा रहा । अंत में,आप समझिएगा ।
राजेश ठाकुर पुराना हजाम है । राजधानी पटना के एलिट क्लास में कई बड़े लोगों की सेवा करता है । बाल-दाढ़ी बनाने को बुधवार को मैं सैलून में गया हुआ था । कंघी-कैंची लगाने के कुछ देर बाद ही उसने कहा-सर,अब नीतीश कुमार को वोट नहीं देंगे । वह अब तक नीतीश कुमार को ही वोट देता आया है । गुस्से की इनसाइड स्टोरी को हमने तुरंत समझा । कहा-दारु बंद हो गया,इसलिए न । खैर,तुम्हारी पत्नी वोट देगी । वह तुम्हारी लत छूटने से खुश होगी । उसने कहा-नहीं,अब वह भी नहीं देगी । मैं चौंका-ऐसा कैसे । फिर तो नीतीश कुमार की सभी केमिस्ट्री खराब हो जाएगी । सपाट सा जवाब ठाकुर ने दिया-अब रात को घर जाता हूं,तो पॉकेट में पैसे कम होते हैं,पत्नी उदास रहने लगी है ।
शराबबंदी से हजाम राजेश ठाकुर की आमदनी कैसे कम हो गई,मेरे लिए पहेली थी । वह दारु दुकान के पास दालमोठ-भूंजा-अंडा थोड़े बेचता है । पर,उसने तुरंत सीधे-सीधे समझा दिया । कहा,सर – बाल व दाढ़ी बनाने के डेढ़ सौ रुपये लगते हैं । शराबबंदी के पहले शाम सात बजे के बाद आने वाले कस्टमर ‘हैप्पी आवर’ में होते थे । दो-तीन पेग लगाये रखते थे । बाल-दाढ़ी बनाने के बाद धीरे-से कहता था- हेड मसाज कर दें क्या । तुरंत ‘हां’ जवाब में मिलता था । फिर फेशियल करने की अनुमति भी मिल जाती थी । इस तरह टोटल बिल डेढ़ सौ रुपये से बढ़कर नौ सौ रुपयों का हो जाता था । कस्टमर हजार रुपये का नोट देता और सौ रुपये वापस न लेकर ‘टिप्स’ में हमें दे देता । इधर,नौ सौ रुपयों की सर्विस के बदले दुकान से नब्बे रुपयों का कमीशन मिलता । ऐसे में,शाम को दो-तीन सर्विस भी कर लिया,तो घर की रेलगाड़ी चलाने में कोई दिक्कत नहीं होती थी ।
रोज की आमदनी को जोड़ ही बेटे को जयपुर में इंजीनियरिंग में पढ़ा रहा हूं,पर अब आमद अचानक कम हो गई,इसलिए परेशानी हो रही है । आमदनी कैसे कम हुई,राजेश ने कहा-कस्टमर अब ‘हैप्पी आवर’ के मूड में नहीं आते । सो,एक्स्ट्रा सर्विस के ऑफर को कबूल नहीं किया जाता । नौ सौ की सर्विस अब मुश्किल हो गई है,डेढ़-दो सौ की सर्विस ही होती है ।
मैंने समझाने की कोशिश की । कहा-फिर भी तुम्हारी सेहत शराब छूटने से ठीक हो जाएगी । उसने जवाब दिया- शराब कितना पी लेता था मैं ,महीने में तीन-चार सौ रुपयों का । इस कारण कोई दिक्कत नहीं थी ।
अब इस स्टोरी को खत्म कर घंटों तक मैं ‘मोरल ऑफ स्टोरी’ के वाक्य को तलाशता रहा । पर वाक्य मिल नहीं रहे । वजह कि राजेश की स्टोरी के दो पक्ष हैं । जहां राजेश की आमदनी बढ़ रही थी,वहीं नशे में आया कस्टमर अधिक खर्च कर रहा था । कौन-कितना सही,जवाब आप सब भी तलाशें ।
इस राजेश ठाकुर की स्टोरी में ही छोटी-सी एक और सप्लीमेंटरी स्टोरी जोड़ देता हूं । यह किस्सा पटना में रेडीमेड कपड़ों के एक बड़े ब्रांडेड शॉप का है । रोज की बिक्री लाखों में होती थी । पर इन दिनों सेल्स कम हो गया । पिछले दिनों दो दिनों तक कोई कस्टमर नहीं आया था,तो दुकान मालिक ने मन की टीस हमें बताई थी । कहा-सच है,मार्केट में नकदी का संकट है । पर, दो दिनों तक कोई कस्टमर नहीं,यह तो सोच भी नहीं सकता था । फिर वे निष्कर्ष पर निकले । कहा-हुआ यह है कि उनकी पहचान ब्रांडेड शॉप की है । ब्रांड्स महंगे मिलते हैं । चुनिंदा कस्टमर ही पहले भी आते थे । अब जब से शराबबंदी हुई है,ये कस्टमर्स शराब की भूख मिटाने दिल्ली-कोलकाता जाने लगे हैं । निश्चित तौर पर,इन शहरों में ब्रांड्स की रेंज अधिक होती है । सो,ये कस्टमर पटना को भूलने लगे हैं । पर,ऐसे में हम दुकान वाले दूसरा कौन-सा रास्ता तलाशें,समझ से परे है । सुनकर बस मैं भी इतना कह सका कि आपके सवाल का जवाब तो अपुन के पास भी नहीं है ।
(सभार: ज्ञानेश्वर जी के फेसबुक पेज से)