#BihariKrantikari: #3 इन्होंने उठाई थी जिम्मेदारी अस्पृश्यता उन्मूलन की
बिहार के क्रांतिकारियों और देशभक्तों में एक नाम आता है श्री जगजीवन राम का| राजनीति, समाज सुधार और खास कर अस्पृश्यता उन्मूलन में इनका योगदान अविश्मरणीय रहा है| इस लोकप्रिय नेता को लोग ‘बाबूजी’ कह कर भी सम्बोधित करते थे|
बिहार के भोजपुर जिले के चंदवा गाँव में 5 अप्रैल 1908 ई० में जन्में जगजीवन बाबू की शिक्षा प्राथमिक स्तर पर गाँव की पाठशाला, और फिर अग्रवाल मिडिल स्कूल से होते हुए आरा के टाउन स्कूल तक में हुई| पिता शोभी राम और माता बसंती देवी के इस पुत्र की पढ़ाई में विशेष बात यह रही कि मेधावी छात्र जगजीवन बाबू को हर कक्षा में छात्रवृति मिली| अस्पृश्यता का पहला अनुभव उन्होंने यहीं किया, और पुरजोर विरोध भी| यहाँ पानी के दो घड़े हुआ करते थे, एक सवर्णों के लिए और दूसरा दलितों के लिए| मेधावी जगजीवन बाबू ने कई बार ये घड़े फोड़े, अंततः स्कूल प्रशासन को एक ही घड़ा रखने का निर्णय लेना पड़ा|
1923 ई० में जगजीवन बाबू की मेधा से प्रभावित होकर महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने खुद उन्हें बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा ग्रहण करने का निमंत्रण दिया| 1929 ई० में कलकत्ता में हुए मजदूरों और दलितों की सभा में इनकी पहली पहचान सुधारवादी नेता के रूप में बनी|
चूँकि जगजीवन बाबू स्वयं दलित वर्ग से आते थे, उन्होंने समाज में व्याप्त छुआछुत को करीब से अनुभव किया था| उनमें इस भेदभाव के प्रति गहरा आक्रोश था| इन्हीं कारणों से 1929 में ही इन्होंने “अखिल भारतीय रविदास महासभा” की स्थापना की जो दलितों को एकजुट करने, उनमे शिक्षा का प्रसार करने तथा नशा को बंद कराने के लिए काम करती थी|
उनके अदभुत कार्य क्षमता और संगठन बनाने और चलाने की क्षमता से उस दौर के कई दिग्गज प्रभावित थे, जिनमें प्रमुख तौर पर सुभाषचन्द्र बोस, राजेन्द्र प्रसाद और महात्मा गाँधी, बाबा अम्बेडकर और इंदिरा गाँधी का नाम आता है| महात्मा गाँधी ने उन्हें ‘हरिजन सेवक संघ’, बिहार का सचिव भी बना दिया| जगजीवन बाबू पर बाबा साहब आंबेडकर द्वारा चलाये जा रहे दलित आंदोलनों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा| पुनः दलितों के उद्धार और उन्हें राजनैतिक अधिकार दिलाने हेतु ‘अखिल भारतीय दलित वर्ग संघ’ की भी स्थापना की गयी|
1935 में हुए बिहार चुनाव में महज 28 वर्ष की उम्र में दलित वर्ग संघ से निर्विरोध निर्वाचित हुए| ऐसे कई फैसले लिए उन्होंने जिससे पता चलता है की वो अपने उसूलों पर अडिग थे| किसी तरह का लालच उनके लिए बेकार था| आजीवन समाज के लिए कार्य करने का जज्बा था उनमें| तभी तो महानतम गाँधी ने उन्हें ‘अग्नि में तपा खरा सोना’ कहा था| उन्होंने कहा, “जगजीवन राम तपे कंचन की भांति खरे और सच्चे हैं| मेरा हृदय इनके प्रति आदरपूर्ण प्रशंसा से आपूरित है|” राष्ट्रिय स्तर पर स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वो कई वर्षों तक जेल में रहने वाले शायद एक मात्र दलित थे|
1946 ई० के अंतरिम सरकार के 12 मंत्रियों में बाबू जगजीवन राम न सिर्फ सबसे कम उम्र (38 वर्ष) के मंत्री बने बल्कि वो एक मात्र दलित प्रतिनिधि भी थे| आजाद भारत में 1984 ई० तक हुए सभी लोकसभा चुनावों में वे सासाराम (शाहाबाद) से लड़े और अजेय रहे| 1957 ई० तक तो ये निर्विरोध जीतते रहे|
देश के प्रथम भारतीय गवर्नर रहे सी. राज गोपालाचारी के शब्दों में, “श्री जगजीवन राम की मानसिक प्रतिभा असाधारण है| इनकी परख बड़ी पैनी है और यही कारण है कि वे इतने सफल शासक सिद्ध हुए हैं|”
कलकत्ता सभा के पश्चात सुभाष चन्द्र बोस ने नवयुवकों को जगजीवन राम से प्रेरणा लेने की सलाह देते हुए कहा था, “जगजीवन राम ने जिस ढंग से श्रमिक व हरिजन सुधार आंदोलन का संगठन किया है, वह सभी के लिए अनुकरणीय है। कलकत्ता की श्रमिक व हरिजन बस्तियों में जगजीवन राम ने जनजीवन को नई आशा दी और उनमें नई चेतना का संचार हुआ। देश के युवा जन जगजीवन राम के विचारों से अपने समाज और देश का भला कर सकते हैं|”
वहीं अम्बेडकर साहब ने कहा, “बाबू जगजीवन राम भारत के चोटी के विचारक, भविष्यदृष्टा और ऋषि राजनेता हैं जो सबके कल्याण की सोचते हैं|”
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा, “बाबू जगजीवन राम दृढ संकल्प कार्यकर्ता तो हैं हीं, साथ ही त्याग में भी वे किसी से पीछे नहीं रहे हैं| इनमें धर्मोपसकों का सा उत्साह और लगन है|”
भारतीय राजनीति के कई शीर्ष पदों पर आसीन रहे जगजीवन राम न सिर्फ एक स्वतंत्रता सेनानी, कुशल राजनीतिज्ञ, सक्षम मंत्री एवं योग्य प्रशासक रहे वरन् एक कुशल संगठनकर्ता, सामाजिक विचारक व ओजस्वी वक्ता भी थे। हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, बंग्ला व भोजपुरी में उनकी धाराप्रवाह ओजमयी वाणी और विचारों को सुनने के लिए लोग उमड़ पड़ते और अपनी वाक्पटुता से वे संसद में भी लोगों को निरुत्तर कर देते। कुछ विवादों को छोड़ दिया जाये तो ये काँग्रेस के एक शक्तिशाली और इमानदार नेता के रूप में उभरे| सदैव काँग्रेस की सेवा की, लेकिन जब बात देश की आई, इन्होंने पद की बजाए देश को ही चुना|
मंत्रिमंडल में रहने के दौरान उन्होंने पदोन्नति में आरक्षण आरंभ करवाया तो अनुसूचित जातियों के लिए देश के सभी प्रमुख मंदिरों के बंद द्वार भी उन्हीं के प्रयासों से खुल गये। सन् 1955 में छुआछूत मिटाने के लिए भी उन्होंने कानून बनवाया। सिर्फ दलितों के हित में ही नहीं वरन् राष्ट्रीय हित में भी जगजीवन राम के नाम तमाम उपलब्धियां हैं। चाहे वह वर्ष 1953 में निजी विमान सेवाओं का राष्ट्रीयकरण कर इंडियन एयर लाइंस व एयर इंडिया की स्थापना कर भारत में राष्ट्रीयकरण की आधारशिला रखना हो, चाहे कृषि मंत्री के रूप में हरित क्रांति का आगाज़ करके भारत को पहली बार खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना व अनाज का निर्यात आरंभ करवाना हो अथवा रक्षामंत्री के रूप में 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान एक लाख पकिस्तानी सैनिकों से आत्मसमर्पण करवाकर व बांग्लादेश की स्थापना कर भूगोल बदल देने का फैसला हो। अपनी ऐसी ही कुशल राजनैतिक और असाधारण प्रशासनिक क्षमता की बदौलत जगजीवन राम 31 वर्षों तक केंद्र में कैबिनेट मंत्री व बाद में उपप्रधानमंत्री के पद पर आसीन रहे।
इस तरह आजीवन दलित वर्ग और देश के तमाम सामाजिक सुधार मुद्दों के लिए लड़ते हुए श्री जगजीवन बाबू 6 जुलाई 1986 को दुनिया को अलविदा कह गये| हमारा देश, बिहार और समाज उनके सुकर्मों को कभी भूला न पायेगा| हम हमेशा याद रखेंगे इस क्रांति के नायक को जिसने समाज से वर्षों से चले आ रहे रुढ़िवादी विचारधारा को समाप्त करने की चेष्टा की, जिसने भाई-चारे का सन्देश दिया|
मैथलीशरण गुप्त के शब्दों में हम एक सच्चे देशभक्त और समाज सुधारक बाबू जगजीवन राम को सलाम कहते हैं-
“तुल न सके धरती धन धाम,
धन्य तुम्हारा पावन नाम,
लेकर तुम सा लक्ष्य ललाम,
सफल काम जगजीवन राम|”