बिहार के मेधा को किसी के द्वारा जारी किए गए प्रमाण की आवश्यकता नही
बिहार की मेधा को किसी के द्वारा जारी किए गए प्रमाण-पत्र की आवश्यकता नहीं …. शिक्षा के कारोबार का काला-धंधा देशव्यापी समस्या है , ये सिर्फ बिहार तक ही सीमित नहीं है ….. निःसन्देह ये दुःखद है कि हालिया टॉपर्स प्रकरण से बिहार की बदनामी हुई है और बिहार जगहँसाई का पात्र बना दिया गया है ….मगर ऐसा नहीं है कि ऐसा देश के किसी और राज्य में नहीं होता या नहीं हुआ है , अनेकों उदहारण हैं लेकिन उनको इतना तुल नहीं दिया जाता और ना ही उनको आधार बना कर वहाँ की मेधा पर सवाल खड़े किए जाते हैं …ऐसा क्यूँ ? …बिहार के प्रति पूर्वाग्रह ? या बिहार की मेधा से लगातार हर क्षेत्र में पिछड़ते जाने से उत्त्पन्न ढाह ?….
बिहार की मेधा ने सदियों से अपनी धाक पूरी दुनिया में मनवाई है और आज भी वैश्विक -पटल पर बिहार की मेधा का डंका बजता है …बच्चा राय जैसे लोग व्यवस्था – जनित दाग हैं और ऐसे लोगों को सामने रख या उद्धृत कर बिहार की मेधा का माखौल उड़ना विकृत मानसिकता का परिचायक है ….
लाखों बच्चा राय मिलेंगे इस देश के अन्य राज्यों में जो सियासत की गोद में बैठ कर फल-फूल रहे हैं …इस देश में कुकरमुत्ते की तरह उग रहे लाखों निजी शैक्षिणक -संस्थानों के सचालक भी तो बच्चा राय ही हैं , सिर्फ स्वरूप भिन्न है … ऐसे हरेक संस्थानों में वो सब ही हो रहा है जो बच्चा राय किया करता था और हरेक की पीठ पर किसी न किसी का हाथ है … इस देश का कोई भी राजनीतिक दल ये नहीं कह सकता कि उसके दल में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो शिक्षा के कारोबारियों से जुड़ा नहीं है … शिक्षा के कारोबारी आज हरेक दल की फंडिंग के बड़े स्रोत हैं …..कोई गंगा में भी अगर डुबकी लगा कर इससे मुकरे तो विश्वास करने वाली बात नहीं है ….
लौट कर एक बार फिर बिहार पर आता हूँ …. टॉपर्स -घोटाले के रूप में आज मीडिया और बिहार के विपक्ष को सनसनी पैदा करने वाला एक बड़ा मुद्दा मिला हुआ है और पूरा विपक्ष आज बिहार में रह कर, एक बिहारी होने के बावजूद बिहार की मेधा की किरकिरी करने में लगा हुआ है ..बिहार से बाहर रहने वाले बिहारी भी अपनी राजनीतिक – प्रतिबद्धताओं के कारण अपने ही राज्य को कुछ ज्यादा बदनाम करने की मुहीम में जुटे हैं , ऐसे लोगों को जुबान क्यूँ बंद हो जाती है , कलम की स्याही क्यूँ सूख जाती है , आँखों पर पर्दा कैसे चढ़ जाता है जब बात उन राज्यों के शैक्षणिक घोटालों व् वहाँ व्याप्त कुरीतियों की होती है जहाँ उनके खेमे की सरकारें होती हैं ??? …. दुखद , कुत्सित व् निंदनीय है ऐसी मानसिकता …. तराजू पर अगर तौलना ही है तो बटखरा एक ही होना चाहिए ….
बच्चा राय कोई एक दिन में पैदा नहीं हो गया या उसकी काली-करतूतें पिछले चन्द महीनों में परवान नहीं चढ़ीं ….आज बिहार का जो विपक्ष है वो चन्द साल पहले तक सत्ता में ही था और तब भी बच्चा राय और उसके जैसे और लोग अपने कारनामों को बखूबी व् बेख़ौफ़ हो कर अंजाम दे रहे थे … क्या सरकार में रह कर आज के कथित विपक्ष को इसकी जानकारी नहीं थी ? बिहार की शिक्षा में थोड़ी सी भी दिलचस्पी रखने वाले को इसकी जानकारी थी और सरकार में शामिल लोगों को जानकारी न हो ऐसा हो सकता है क्या ? मेरा सीधा सवाल है बिहार के विपक्ष से सत्ता में रहते हुए आपकी चुप्पी या आपकी अनदेखी का क्या मतलब निकाला जाए ? क्या आपकी गोद में कभी कोई ‘बच्चा’ नहीं खेला था ? …. आज अपनी छाती पिट रहा विपक्ष अगर जब सत्ता में था और सही मायनों में उसे बिहार या बिहारियों की चिंता थी तो उसी समय सरकार में रहते हुए मुख्यमंत्री व् शिक्षा -मंत्री पर कार्रवाई का दबाब बनाता तो आज शैक्षणिक – व्यस्था को दुरुस्त करने की कार्रवाई दो साल आगे चलती ….
शिक्षा राजनीति या महज बयानबाजी का मुद्दा नहीं है …एक गम्भीर और सार्थक पहल का विषय है … और अगर इसे दुरुस्त करने की मंशा है तो अपने-अपने दामन पर लगे दागों को धो कर शुद्ध अंतःकरण के साथ आगे आईए और पूरे बिहार को बदनाम करने की बजाए बिहार की शैक्षणिक -बौद्धिक गौरव -गाथा में कुछ और नए स्वर्णिम अध्याय जोड़ने का प्रयास करिए … अपने राजनीतिक निहितार्थों की पूर्ति के लिए कोई और मुद्दा तलाशिए…बिहार को बख्श दीजिए ….बिहार की मेधा को किसी के द्वारा जारी किए गए प्रमाण-पत्र की आवश्यकता नहीं है….
यशस्वी , मनस्वी , तेजस्वी , तपस्वी बिहार …
जय बिहार… जय… जय… बिहार
आलोक कुमार (वरिष्ठ पत्रकार)