बिहार: अब ना रहा वो प्यारा हाला, ना ही रही वो मधुशाला
पटना: सूखा लातूर और देश के दूसरे हिस्सों में है लेकिन प्यास क्या होती है, इसका दर्द तो बिहार वालों से पूछिए, बिहार के शराब प्रेमियों से पूछिए।
वे अपनी प्यास बुझाने के लिए हर तरकीब अपना रहे हैं. आज कल उनका यूपी, झारखण्ड और नेपाल जाना बढ़ गया है।
पथिक बना मैं घूम रहा हूँ, सभी जगह मिलती हाला,
सभी जगह मिल जाता साकी, सभी जगह मिलता प्याला,
मुझे ठहरने का, हे मित्रों, कष्ट नहीं कुछ भी होता,
मिले न मंदिर, मिले न मस्जिद, मिल जाती है मधुशाला।।
ये हरिवंश राय बच्चन की है जो कुछ दिन पहले बिहार का हालात बताने के लिए काफी था मगर अब बिहार का हालात अलग है अब यहा मंदिर और मस्जिद तो मिल जाती है मगर मधुशाला नही मिलती।
बिहार के शराब प्रेमी परेशान हैं. आखिर उन्हें सबसे बड़ा धोखा मिला है! नीतीश कुमार चुनाव से पहले शराबबंदी की बात कर रहे थे. सभी को लग रहा था कि महिलाओं को लुभाने के लिए यह नीतीश कुमार का चुनावी जुमला होगा. ऐसा कुछ होगा नहीं. सरकार क्यों चाहेगी कि उसके राजस्व मे करोडों की कमी आए। मगर उनके अरमानों पर पानी फिर गया।
सूखा तो लातूर और देश के दूसरे हिस्सों में है लेकिन प्यास क्या होती है, इसका दर्द बिहार के शराब प्रेमियों से पूछिए.
शराबबंदी के बाद बिहार के मौजूदा हालात पर मधुशाला के तर्ज पर अमित शाण्डिलय ने एक कविता लिखा है जो वर्तमान स्थिति को बताती है।
कौन चलेगा डगमग-डगमग
कौन उठाएगा प्याला
अब ना रहा वो मय का हाला
ना ही रही वो मधुशाला ।
मधुशाला मिलती ही नहीं तो
मन्दिर मस्जिद जातें है ,
मेल कराते मन्दिर मस्जिद
जेल कराती मधुशाला ।
प्रेम जिन्हें मय से प्रगाढ़ था
वो मुश्किल से जीतें हैं ,
कुछ तो झारखण्ड, बंगाल में जाकर
मस्त ख़ुशी से पीतें हैं ।
साक़ी को चिंता है बहुत
मय के अस्तित्व खोने का,
सच पूछो तो ख़ुशी मनाओ
‘मैं’ का अस्तित्व होने का ।
डूब रही थी जिनकी कश्ती
बच गया वो मतवाला
अब ना रहा वो प्यारा हाला
ना ही रही वो मधुशाला ।
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