बिहार पर्यटन: कमाख्या से खुद चलकर थावे पहुंची थीं माँ दुर्गा !
गोपालगंज: वैसे तो बिहार में धार्मिक यात्राओं पर आने वाले या छुट्टियां मनाने आने वाले लोगों के लिए यहां कई धार्मिक और पौराणिक स्थल हैं, लेकिन यहां आने वाले लोग गोपालगंज जिले में स्थित थावे मंदिर में जाकर सिंहासिनी भवानी मां के दरबार का दर्शन कर उनका आर्शीवाद लेना नहीं भूलते. मान्यता है कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मां सभी मनोकामनाएं पूरा करती हैं.
बिहार के गोपालगंज जिले के जिला मुख्यालय से 6 किलोमीटर दूर सीवान-गोपालगंज मुख्य पथ पर स्थित है मां दुर्गा भवानी का प्रसिद्ध शक्तिपीठ थावे मंदिर। मां थावे भवानी की महिमा अपरंपार है। मां अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। मां की भक्ति में यहां सूबे व आसपास के कई राज्यों से भक्त पूजा-अर्चना करने आते हैं। सभी पहले मां भवानी के दर्शन व पूजन करते हैं और सच्चे दिल से मनोकामनाएं रखते हैं। इसके बाद सभी लोग मां के परमभक्त रहषु भगत के दर्शन व पूजन करते हैं।
मान्यता है कि यहां मां अपने भक्त रहषु के बुलावे पर असम के कमाख्या स्थान से चलकर यहां पहुंची थीं. कहा जाता है कि मां कमाख्या से चलकर कोलकाता (काली के रूप में दक्षिणेश्वर में प्रतिष्ठित), पटना (यहां मां पटन देवी के नाम से जानी गई), आमी (छपरा जिला में मां दुर्गा का एक प्रसिद्ध स्थान) होते हुए थावे पहुंची थीं और रहषु के मस्तक को विभाजित करते हुए साक्षात दर्शन दिए थे. देश की 52 शक्तिपीठों में से एक इस मंदिर के पीछे एक प्राचीन कहानी है.
मां के बारे में लोग कहते हैं कि मां थावेवाली बहुत ही दयालु और कृपालु हैं और अपने शरण में आये हुए सभी भक्तजनों का कल्याण करती हैं। हर सुख-दुःख में लोग इनके शरण में आते हैं और मां किसी को भी निराश नहीं करती हैं। किसी के घर शादी-विवाह हो या दुःख-बीमारी या फिर किसी ने कुछ नयि खरीद है तो सर्वप्रथम मां का ही दर्शन किया जाता है। देश-विदेश में रहने वाले लोग भी साल-दो साल में घर आने पर सबसे पहले मां के दर्शनों को ही जाते हैं।
मां थावेवाली के मंदिर की पूरे पूर्वांचल तथा नेपाल के मधेशी प्रदेश में वैसी ही ख्याति है, जैसी मां वैष्णोदेवी की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर। वैसे तो यहां भक्त लोग पूरे वर्ष आते रहते है किन्तु शारदीय नवरात्रि एवं चैत्रमास की नवरात्रि में यहां काफ़ी अधिक संख्या में श्रद्धालु आते हैं। एवं सावन के महीने में बाबाधाम (देवघर में स्थित) जाने वाले कांवरियों की भी यहां अच्छी संख्या रहती है।
लेकिन अफसोस की बात यह है कि इतना महत्त्वपूर्ण स्थल होने के बाद भी यह स्थल विकास के मामले में राज्य सरकार के द्वारा उपेक्षित रह गया। कुछ विकास की थोड़ी बयार यहां भी दिखने लगी है, किन्तु यह अभी भी बहुत कम है। आशा है आने वाले आगामी वर्षों में यह स्थान आम जनता एवं प्रशासन के सहयोग से समुचित विकास करेगा एवं “मां थावेवाली” का पवित्र स्थल विश्व-मानचित्र पर अपनी साख बना लेगा।