देश में महिला शक्तिकरण के लिए बस नारे, बाते और वादे होते रहे, बिहार ने घर के चार दीवारों से महिलाओं को निकाल उनके हौसलों को नई उड़ान दे रहा है।
जो बिहार जंगलराज के नाम से बदनाम था और जहां लड़कियों के सुरक्षा के नाम पर उन्हें घर से बाहर अकेले जाना माना था। उसी बिहार के सरकारी दफ्तर, स्कूल – कॉलेज, थाने, हॉस्पिटल से लेकर पंचायत भवन तक में अब आपको महिला प्रतिनिधित्व का अहसास होगा।
शुरुवात 2015 में हुआ, जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने छात्राओं को स्कूल जाने के लिए साईकिल थमाई। लड़कियों की साइकिल ने धीरे – धीरे रफ्तार पकड़ी।
पंचायत चुनाव में 50% महिला आरक्षण दिया गया। पुरुष प्रधान पंचायती व्यवस्था में महिला केंद्र में आई। हर स्तर के परीक्षा पास करने पर महिलाओं को हजारों – लाखों तक का प्रोत्साहन पुरुस्कार दिया गया। स्कूल से लेकर कॉलेज तक, छात्राओं ने कक्षा में उपस्थिति से लेकर रिजल्ट तक में लड़कों को पीछे छोड़ दिया।
फिर सरकारी नौकरियों में 33% आरक्षण दिया गया। लड़कियां एसडीएम, डीएसपी से लेकर सिपाही के रोल में दिखने लगी। उदाहरण के रूप में बिहार पुलिस में साल 2005 में सिपाही से लेकर दारोगा तक मात्र 867 महिलाएं थीं। इनमें 805 सिपाही, 11 एएसआई और 51 एसआई के पद पर कार्यरत थीं।
वहीं वर्ष 2021 के आखिर तक बिहार पुलिस में इन तीन पदों पर महिला पुलिसकर्मियों की संख्या 19 हजार 851 थी। इसमें सर्वाधिक 18 हजार 744 सिपाही, 225 एएसआई और 882 दारोगा हैं। वहीं इस साल जनवरी में नियुक्त की गई 833 महिला दारोगा को जोड़ दिया जाए तो यह संख्या 20 हजार 684 हो जाएगी।
मतलब 16 वर्षों में हालात बिल्कुल बदल गए हैं। वर्ष 2005 के मुकाबले इनकी संख्या में 22 गुना से अधिक की वृद्धि हुई है।
इसी बीच पिछले दिनों मुख्यमंत्री ने समस्तीपुर में इंजीनियरिंग कॉलेज का उद्घाटन करते हुए बड़ी घोषणा की। उन्होंने कहा कि हर जिले में इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज खोले जायेंगे। इसके साथ उन्होंने कहा कि राज्य के सभी मेडिकल कॉलेज में 33% सीट लड़कियों के लिए आरक्षित रहेगी।
2020 में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी साक्षरता दर के आंकड़े को देखें तो यह जान कर अच्छा लगता है कि अब बिहार (70.9%) आंध्रप्रदेश (66.4%) और राजस्थान (69.7%) को पीछे छोड़ सबसे कम साक्षरता दर वाले राज्य के कलंक से मुक्त हो गया। मगर महिला साक्षरता दर (58.7%) के मामले में अभी हम सबसे पिछड़े हैं।
सरकार के द्वारा महिलाओं के पक्ष में लिए इन फैसलों से शिक्षा और रोजगार में महिलाओं के लिए अवसर बढ़ रही है। ये चीजें महिलाओं मामले में रूढ़िवादी समाज और अभिभावकों के पुरातन सोच को ध्वस्त कर रही है और बेटियों के शिक्षा के लिए प्रेरित कर रही है।