जो एडमिशन सिस्टम डीयू में बिहारियों के साथ करता है भेदभाव, वही सिस्टम पटना यूनिवर्सिटी ने अपना लिया

जब बिहार सरकार, उसकी व्यवस्था या उसकी संस्था जब खुद बिहारियों का शोषण या उसके साथ भेदभाव करे तो दूसरे राज्य सरकारों या संस्थाओं से आप क्या ही शिकायत कीजियेगा?

जिस मेरिट बेस्ड एडमिशन सिस्टम के कारण बिहार बोर्ड के बच्चों का दिल्ली विश्वविद्यालय में नामांकन नहीं हो पाता है वही सिस्टम पटना विश्वविद्यालय अपने कॉलेज मेंएडमिशन के लिए अपना रहा है।

एक तो बिहार बोर्ड का मार्किंग सिस्टम वैसे ही घटिया है, दूसरा इसबार कोविड के कारण सीबीएसई का बोर्ड एग्जाम नहीं हुआ है और बिहार बोर्ड के छात्रों ने बोर्ड एग्जाम दिया है, जिसके कारण सीबीएसई के बच्चों का मार्क्स इस साल आसमान छू रहा है।

डीयू से उम्मीद नहीं बचा है, कम से कम अंक के आधार पर ऐडमिशन ले रहे बिहार के विश्वविद्यालयों को इसका ध्यान रखना चाहिए।

इसका दुष्परिणाम देखिए – पटना विश्वविद्यालय ने जो नामांकन के लिए चार हजार छात्रों की प्रथम सूची जारी की है, उसमें अधिकतर सीबीएसई के छात्र हैं।

पटना छात्र संघ ने इसका विरोध किया है। उनका कहना है कि अगर पटना विश्वविद्यालय में नामांकन अंक के आधार पर होगा, तब बिहार बोर्ड के ग्रामीण बच्चे पिछड़ जायेंगे।

इतना ही नहीं, प्रथम काउंसेलिंग के लिए जिन अभ्यर्थियों को मौका मिल रहा है, यदि उन्हें अपने प्रथम च्वॉइस का विषय नहीं मिला हो तो अगले काउंसेलिंग में च्वॉइस अपग्रेडेशन के लिए तभी दावेदार हो सकते हैं जब वे एलॉटेड विषय और कॉलेज में अपना नामांकन ले लेंगे।

बिहार के विश्वविद्यालयों के कारनामें सुनकर लगता ही नहीं कि ये शिक्षण संस्थान राज्य के छात्रों के भलाई के लिए काम करता है। छात्रहित के लिए ये बहुत कम ही खबरों में आते है। राज्य में उच्च शिक्षा की हालत इतनी खराब है कि यहां ज्यादातर छात्रों को समय पर डिग्री भी नहीं मिलता।

एक पटना विश्वविद्यालय ही बचा है जहां समय पर परिक्षा होता है मगर यहां का सिस्टम भी अब बिहार बोर्ड वाले छात्रों के लिए नो एंट्री का बोर्ड लेकर खड़ा है।

अविनाश कुमार (संपादक, अपना बिहार)

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