भले बिहार विधानसभा का यह चुनाव 2020 है मगर इसकी पठकथा 2005 विधानसभा चुनाव से मिलती जुलती है| इस बार भी इस चुनाव में रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) सबका खेल बिगारने में लगी है| फर्क इसबार यह है कि 2005 में रामविलास खुद मैदान में थे मगर इसबार उनके बेटे चिराग पासवान उनका किरेदार निभा रहा रहा है| मगर लोजपा का मकसद 2005 मॉडल को दोहराना ही है|
क्या है लोजपा का 2005 मॉडल?
बिहार में 2005 में विधानसभा का चुनाव फरवरी-मार्च में हुआ था। उन दिनों केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार थी और रामविलास पासवान मंत्रिमंडल के प्रमुख चेहरों में थे। लेकिन चुनाव के ठीक पहले इस्तीफा देकर उन्होंने लोक जनशक्ति पार्टी बनाई और बिहार में लालू, नीतीश के खिलाफ अकेले ताल ठोंक दी। बताते हैं कि उस वक्त नीतीश चाहते थे कि रामविलास उनके साथ रहकर लालू परिवार के खिलाफ छिड़ी मुहिम में शामिल हों लेकिन रामविलास अकेले ही मैदान में उतरे।
2005 में विधानसभा के आम चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा। 29 सीटों पर पार्टी ने जीत हासिल की। किसी को बहुमत नहीं मिली। अगर लोजपा उस समय जदयू को समर्थन देती तो सरकार बन सकती थी मगर सीएम पद को लेकर नीतीश को समर्थन न देने के चलते आखिरकार बिहार में किसी की सरकार नहीं बन पाई थी। प्रदेश में मध्यावधि चुनाव कराने पड़े थे।
फरवरी 2005 के चुनाव में भी लोजपा ने लालू राज के प्रति लोगों की नाराजगी का फायदा उठाते हुए राजद को बड़ा नुकसान पहुंचाया था। तब लालू यादव के शासन के 15 साल पूरे हुए थे और लोगों में एक स्वाभाविक नाराजगी थी।
अब नीतीश राज के 15 साल पूरे हो रहे हैं। लोजपा इस बार भी एंटी इनकम्बेंसी को कैश कराने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहेगी। यह तो तय है कि नीतीश राज से स्वाभाविक रूप से नाराज एक वोटर ऐसा भी होगा जिसे तेजस्वी को देखते ही लालू राज का वह दौर याद आएगा जिसे ‘सवर्ण विरोधी’ और ‘अराजकता का प्रतीक’ बताया जाता रहा है। ऐसा वोटर अगर नीतीश को छोड़कर राजद को नहीं भी अपनाना चाहेगा तो लोजपा के रूप में उसे एक नया विकल्प दिखाई देगा, जिसके पीछे अघोषित तौर पर बीजेपी खड़ा दिख रही है|
मगर चिराग इसबार वह गलती नहीं करेंगे जो रामविलास ने 2005 में की थी
2005 में भले लोजपा ने अबतक का सबसे अच्छा प्रदर्शन किया था मगर उसको इसका लाभ नहीं मिला| वे किंगमेकर के भूमिका में तो आए मगर न किंग मेकर बने और न ही खुद किंग बने| 2005 में लोजपा अगर नीतीश को समर्थन करते तो उनकी सरकार बन सकती थी मगर उन्होंने मुस्लिम को रिझाने के चक्कर में किसी मुस्लिम को मुख्यमंत्री बनाने कि शर्त रख दी|
आखिरकार फिर से चुनाव हुए, नीतीश कुमार ने लोजपा के नेताओं को तोड़ जदयू में सामिल कर लिया और लोजपा की बुरी हार हुई|
लोजपा इसबार वही गलती करने के मूड में नहीं दिख रही है| उसने पहले ही घोषणा कर दी है कि चुनाव बाद वह बीजेपी के साथ सरकार बनायेगी| चुनाव बाद अगर 2005 जैसी स्थिति बनती है तो चिराग पासवान इस बार सरकार में जरुर सामिल होंगे| उनकी कोशिश बीजेपी के साथ सरकार बनाकर कम से कम उपमुख्यमंत्री बनना चाहेंगे| वैसे बेहतर डील मिलने पर वे महागठबंधन में तेजस्वी से भी हाथ मिला सकते हैं|