बिहार के लिए आईआईटी से लेकर अमेरिका तक का अवसर छोड़ा, मगर यहां शिक्षा माफिया ने उनकी पिटाई करवा दी

बिहार से हर साल लाखों के संख्या में प्रतिभावान युवा अच्छी शिक्षा के तलाश में राज्य से बहार जाते हैं| इनमें से अधिकतर छात्र जिनको अच्छी नौकरी मिल जाती है, वे लौट के बिहार वापस नहीं आते| कारण है राज्य में अवसरों की कमी, पिछड़ापन, भ्रष्टाचार, अफरशाही, आदि| मगर इस हकीकत को जानते हुए भी, कुछ युवा अच्छी शिक्षा ग्रहण करके बिहार लौटना चाहते हैं और राज्य के प्रगति में अपना योगदान देना चाहते हैं| ऐसे कुछ युवा लौटते भी हैं, मगर राज्य में मौजूद अराजक तत्व उन्हें परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ती| उन्हीं कुछ युवाओं में से एक हैं आरा के वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय में कार्यत डॉ. अमरेन्द्र नारारण

 अमरेन्द्र नारायण विश्वविद्यालय के पीजी भौतिकी विषय के असिस्टेंट प्रोफेसर सह कंप्यूटर सेंटर इंचार्ज हैं| उन्होंने आईआईटी कानपुर से एम.एससी (भौताकी) की पढाई की है और अमेरिका में मिसिसिपी स्टेट यूनिवर्सिटी से परमाणु भौतिकी में पीएचडी की है।

उनमें अपने बिहार के लिए कुछ करने का जज्बा है। कारण यह है कि वे बिहार के भोजपुर में बड़हरा के रहने वाले है। बता दें कि अमेरिका के वर्जिनिया में न्यूक्लियर साइंस में शोध करने के बाद डॉ अमरेन्द्र नारारण को आइआइटी, मुंबई से लेकर रांची विश्‍वविद्यालय तक कई जगह बड़े अवसर मिले, लेकिन उन्‍होंने अपनी जन्‍मभूमि बिहार की सेवा करने का निर्णय लिया। उनकी काबिलियत को देख कर यूनिवर्सिटी प्रशासन ने विवि के कंप्यूटर सेंटर का इंचार्ज बनाया और रिजल्ट से लेकर कई महत्वपूर्ण कार्य दिए। इसमें शोध की धांधली रोकने के लिए प्लेगरिज्म जांच का जिम्मा भी सौंपा।

इससे विश्वविद्यालय को गणना के लिए वार्षिक अनुबंधों पर खर्च हुए करोड़ों रुपये बचाने में मदद मिली। नारायण ने पीएचडी शोध प्रस्तुत करने से पहले प्लेगरिज्म जांच शुरू करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

धांधली रोकी तो एक 45 साल के ‘छात्र नेता’ ने कर दी पिटाई

जिस काम के लिए नारायण को सम्मानित किया जाना चाहिए था, उसी अच्छे काम के लिए उनको न सिर्फ पिटा गया, बल्कि झूठे मामले में फ़साने की कोशिश भी की गयी| विश्‍वविद्यालय के परीक्षा विभाग में धांधली व प्लेगरिज्म (किसी दूसरे की भाषा, विचार, उपाय, शैली आदि की नकल करते हुए अपनी मौलिक कृति बताना) को रोका तो एक पूर्व छात्र ने उनकी पिटाई कर दी। इतना ही नहीं, उसने एक अनजान लड़की से छेड़खानी का आरोप भी मढ़ दिया। बाद में पुलिस जाँच में पता चला कि आरोप गलत है| विश्‍वविद्यालय प्रशासन ने भी उन्‍हें अकेला छोड़ दिया। प्रो. अमरेंद्र नारायण ने खुद ही अपने स्‍तर पर हमलावर के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई। इस घटना ने कानून-व्‍यवस्‍था के साथ-साथ शिक्षा व्‍यवस्‍था पर भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

नारायण पर 13 अगस्त को एक विवेक पांडेय उर्फ जितेंद्र पांडे और उसके एक सहयोगी ने हमला किया था, जब वह विश्वविद्यालय में कंप्यूटर सेंटर से बाहर आ रहा था। उन्होंने कहा, “उन्होंने यह नहीं बताया कि वह क्या चाहते हैं जब उन्हें कंप्यूटर सेंटर तक जाने की अनुमति नहीं दी गयी, तो उन्हें बुरा लगा और उन्होंने और उनके सहयोगी ने मुझे तब तक पीटा, जब तक कि मैं बेहोश नहीं हो गया।”

“मेरी उच्च योग्यता के बावजूद, मैंने बिहार में काम करना पसंद किया। हालांकि विश्वविद्यालय में मेरी पहल से अधिकांश लोग खुश हुए हैं, लेकिन कुछ लोग पांडे जैसे तत्व का उपयोग कर मुझे निराश करने और मुझे संस्थान छोड़ने के लिए इस्तेमाल कर रहे होंगे … ”नारायण ने कहा।

बताया जा रहा है कि नारायण के प्रयासों से विश्वविद्यालय को करोड़ों रूपये की बचत हुई है| इसके कारण विश्वविद्यालय के टेंडर में दलाली खाने वाले भ्रष्ट लोगों को इससे काफी नुकसान हुआ है| इसी कारण से नारायण को निशाना बनाया जा रहा है ताकि वे खुद विश्वविद्यालय छोड़ दें|

Source: Indian Express

AapnaBihar: