किशन हरीलाल का बेटा था। हरिलाल ने किशन को छठी कक्षा के बाद पढ़ाई छुड़ाकर खेती के काम में लगा दिया था। सात आठ साल बाद उसकी शादी कर दी, फिर परिवार बढ़ने के बाद खेती से गुजारा ना होने पर किशन गांव में ही मनरेगा में मजदूरी करने लगा। अब सब को भरपेट भोजन मिलने लगा।
हरिलाल अपने बेटे की इस उपलब्धि में अपना योगदान गाते नहीं थकते और कहते “अरे खिला पिला कर इतना बड़ा कर दिया”, “अरे पाल पोस के 27 साल का जवान कर दिया”।
जबकि देखा जाए तो किशन के 27 साल के होने में उसके पिता से ज्यादा समय की भूमिका रही। पिता आगे नहीं रहेंगे, फिर भी उसकी उम्र बढ़ती रहेगी। हां, किशन को जिंदा रखने के लिए भोजन मिला जो कि उसका प्रथम हक भी था। मतलब कुछ विकास समय के साथ खुद-ब-खुद होता है इसमें किसी व्यक्ति विशेष का योगदान नहीं होता है या फिर बहुत नगण्य होता है। योगदान तब माना जाता, जब किशन की पढ़ाई पूरी होती बहुत कुछ शिक्षा नहीं तो कुछ स्किल्ड शिक्षा दी जाती जिससे वह कुछ बेहतर रोजगार तलाश सकता।
खैर, अब दूसरी कहानी पर आते हैं बिहार के मुखिया नीतीश कुमार पर। नीतीश जी आप बिहार के हरिलाल हैं, आपने भी उतना ही किया है बिहार के लिए जितना हरिलाल ने किशन के लिए किया है। जो विकास आप गिनाते हैं, वह सब समय के साथ क्रमिक विकास है और उतना ही स्वाभाविक है जितना कि किशन का उम्र का बढ़ना। लोगों को भोजन मिल रहा है तो वह भी उनका प्रथम हक है जैसे कि किशन का था।
बाकी 15 साल में जो आपने किया उसका एकमात्र लक्ष्य था कि येन केन प्रकारेण आप की कुर्सी बची रहे और इसके लिये जो प्रभावी कदम उठाए गए उनमें, भाजपा से अलग होकर चिर प्रतिद्वंदी राजद से मिलना, मांझी को सिंहासन पर बिठाना और फिर उतारना, फिर राजद से अलग होकर भाजपा में मिलना आदि मुख्य रूप से शामिल है। जो किया सो किया, पर एक बात का मलाल आपको जिंदगी भर रहना चाहिए, कि आपके लिए अच्छा काम करना ज्यादा आसान था लालू जी और राबड़ी देवी के तुलना में, क्योंकि 1990 से 2005 तक की तस्वीर बहुत गंदी हो गई थी।
आप थोड़ा सा भी एफर्ट लगाते तो कंपेरेटिवली डिफरेनसीएल इंडेक्स काफी अच्छा आता आपकी तस्वीर में। इंजीनियर थे यह सब सोचना चाहिए था। इंजीनियरिंग से ज्यादा अपनी नेतागिरी के पेशे के साथ न्याय किया है कन्वेंशनल नेतागिरी की इमेज पर दाग़ नहीं लगने दिया। वही किया जो कोई भी कन्वेंशनल नेता करेगा।
कुछ रितु जायसवाल और पुष्पम प्रिया चौधरी जैसे नए ऊर्जावान लोग आ रहे हैं जिनमें पोटेंशियल दिखता है कि शायद वह इस कन्वेंशनल नेतागिरी के इमेज को तहस-नहस कर सके।
– अभिषेक शरण