बिहार बीमार है लेकिन पार्टी सब चुनाव के लिए तैयार है। लोग लाचार हैं, बेरोजगार हैं, परेशान और बीमार हैं लेकिन नेता सब कुर्ता पायजामा पहन के तैयार हैं।
बिहार में राजनीतिक दलों ने चुनावी राजनीति की सरगर्मी बढ़ा दी है, वर्चुअल रैली और कार्यकर्ता संबोधनों की शुरुआत हो चुकी है। अभी जो स्थिति है उसके मद्देनजर बिहार विधानसभा चुनाव के समय को आगे बढ़ाया जाना चाहिए। केंद्र सरकार एक अध्यादेश पारित करे और इस साल जितने भी राज्यों में चुनाव होने हैं वहां की सरकारों की कार्यावधी को अगले 6 महीने के लिए एक्सटेंड करे।
हालात सामान्य होने पर अगले साल मार्च-अप्रैल में यदि चुनाव होता है तो वह बेहतर होगा। अभी के हालात में लोकतांत्रिक पर्व ठीक से सम्पन्न नहीं हो पाएगा साथ ही नई सरकार को स्टेबल होने में भी समय लगता है। बिहार में आगे आने वाला समय चमकी बुखार से लेकर संभावित बाढ़ का भी है। बिहार इन तीनों आपदा को कैसे झेलेगा, ये ज्यादा महत्वपूर्ण है। सरकारों, पार्टियों और नेताओं को अभी रोजगार, राशन, कोरोना, चमकी और बाढ़ जैसे चैलेंजेज पर फोकस करना चाहिए ना कि चुनावी राजनीति में। थोड़ी सी चूक अनियंत्रित विपत्ति को न्यौता दे सकती है।
2020 सुरक्षित रहने का साल है, बीमारी से बचने और बिहार को बचाने का साल है। अभी किसी भी चुनावी राजनीति के कारण प्रशासनिक लापरवाही लाखों लोगों के जीवन-मौत का संकट उत्पन्न कर सकती है। अभी बिहार के लिए ज्यादा जरूरी ये है कि लाखों की संख्या में बाहर से आये मजदूरों को बिहार में ही रोजगार देने के प्रयास को प्राथमिकता दी जाए। लाखों लोगों की नौकरी छूट गई है, आमदनी का साधन बंद है और राशन की कमी है। ऐसे वक़्त में जरूरत है की लोगों की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने पर ध्यान दिया जाए।
कोरोना एक विपत्ति है, इसे हल्के में लेना बिहार के करोड़ों लोगों की जान को खतरा उत्पन्न कर देगा। अभी अत्यन्त जरूरी है की बिहार के अस्पतालों की हालत सुधारी जाए, डॉक्टरों, दवाइयों, आईसीयू और मेडिकल फैसिलिटी की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए।
इस कोरोना काल में दुनिया के बेहतरीन मेडिकल फैसिलिटी वाले देशों की हालत दयनीय हो चुकी है, कॉलेप्स कर चुकी है, ऐसे में प्रति 17000 व्यक्ति पर एक डॉक्टर वाले प्रदेश बिहार का क्या हाल हो सकता है ये सोचने का विषय है। यदि भविष्य को सोचकर इससे निबटने का उपाय नहीं किया गया तो आगे बिहार में स्थिति भयावह हो सकती है।
बिहार के लिए अभी से आगे का चार महीना आपदा चौमाही ही होता आया है हर साल। जून-जुलाई मुजफ्फरपुर आसपास के जिलों में चमकी और मध्य बिहार में तेज बुखार का समय रहता है। पिछले साल इन्हीं महीनों में सैकड़ों बच्चे इन बीमारियों से मर गए थे। अगस्त, सितंबर बाढ़ का सीजन है। पिछले साल भी पहले मिथिला और फिर बाद में पटना बाढ़ से अरबों रुपए और सैकड़ों जानों की तबाही हुई थी। यदि बाढ़ नहीं भी आता है तो सुखाड़ आएगा और किसानों की फसल ना हो पाने के बाद खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो सकता है। इस सब से बचने के लिए सरकार को अभी ही प्रयास चालू करना पड़ेगा, तैयारी करनी पड़ेगी।
कोरोना के बाद ऐसे ही ढहे हुए सिस्टम में ये सब कैसे हो पाएगा ये स्वयं में एक चैलेंज है। चुनावी कार्यक्रम ये सब डिस्टर्ब कर देगा और असीमित संकट का कारण बनेगा।
इस सबके अलावा अभी जो सिचुएशन है उसमें ना चुनाव की ठीक से तैयारी हो पाएगी, ना रैली, ना प्रचार, ना संवाद और ना लोकतांत्रिक प्रक्रिया का समुचित सम्मूलन। इस स्थिति में 10 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले राज्य बिहार में 8000 से अधिक पंचायत और 243 विधानसभाओं के 72000 से अधिक बूथों पर चुनावी प्रक्रिया सही से निष्पादन करवा पाना लगभग असम्भव है।
इसलिए बेहद जरूरी है अभी आगामी 6 महीना किसी भी चुनावी कार्यक्रम को एक्सटेंड किया जाए, इमरजेंसी सिचुएशन के तहत सरकार की कार्यवधी बढ़ाई जाए और चुनाव को अगले साल मार्च तक के लिए टाला जाए। एक बार ये कोरोना संकट टल जाए फिर उसके बाद ही चुनाव करवाना सबसे सही रास्ता होगा।
-Aditya Mohan