नमस्कार!
हम बिहारी हैं भाई साहब! वही बिहारी जिसके बारे में सोचते ही आपका ही नहीं, नेताओं का मन भी “कइसन-कइसन” हो जाता है। वही बिहारी जिसको आप पहचान जानने के बाद पहले की तरह नहीं स्वीकार पाते, न जाने क्यों? वही बिहारी जो देश-विदेश के तमाम प्रतियोगिताओं में आपको कड़ी टक्कर ही नहीं देता, विजेता बनकर सामने भी आता है। हम बिहारी हैं भाई साहब! बिहारी, जिसकी भाषाएं तक आपको भाषाएं नहीं लगतीं। बिहारी, जिसके पास पहाड़ तोड़ने भर का सब्र तो है, पर इस सब्र के पीछे की जिजीविषा आप तक कभी पहुँच नहीं पातीं।
जन्म के साथ ही ये बिहारी वाला टैग हमारे साथ चिपक जाता है और हमारे पास एक किलोमीटर लंबी लिस्ट भी होती है महान बिहारियों की। पर… पर… पर! बिहारी होना क्या इतना भर ही होता है?
शायद नहीं! बिहार वह क्षेत्र है जो हर साल 6 महीने बर्बाद होने में और 6 महीने अपने ही देश के अन्य हिस्सों से जूझने में बिताता है। बिहार वह क्षेत्र है जो हर साल बिखर जाने के बाद भी हर साल खड़े होकर देश के प्रति अपना उत्तरदायित्व निभाता है। बिहार वह क्षेत्र है जो अपने इतिहास पर इठलाता है तो देश के वर्तमान हेतु भागीदारी भी दिखाता है। बिहार वह क्षेत्र है जो प्रकृति के परम् सत्य से परिचित है, यह जानता है “परिवर्तन ही संसार का नियम है” का मर्म!
बिहार की गाथा में नेतृत्वकर्ता से अधिक महत्व है लोक-मानस का, लोक संस्कृति का, लोक-रंग का! यहाँ का नेता होली में आम लोगों की ही तरह कुर्ता फाड़ हुड़दंग करता है, यहाँ के अमीर घर में जमीन पर ही आसन लगाकर खाते हैं। यहाँ के लोगों के लिए भद्दे कमैंट्स तो आप ट्रेन में सीट देते हुए भी कर ही देते हैं और हमारे पास उससे सुनने के अलावा कोई चारा भी नहीं होता। ‘चारा’ सुनकर भी हमपर हंसने वाले हाज़िर हो जाएंगे! पर क्या यह देश कभी समझ पायेगा बिहारियों के चुप रह जाने के पीछे छुपे दर्द को? क्या इस देश के लोग अपने ही साथी राज्य की खामोशी को कभी पढ़ने की कोशिश करेंगे? क्या हम कभी स्वीकार किये जायेंगे इस देश के अभिन्न अंग की तरह?
जानते हैं! बाढ़ और सुखाड़ आपके यहाँ तो कभी-कभी आती है, हम तो बिना इसके साल के गुज़र जाने की कल्पना ही नहीं कर सकते। आपके यहाँ महामारी तो दशकों बाद आती है, हम तो उसमें हर साल जान झोंकने को तैयार रहते हैं। आपके यहाँ अनुकूल परिस्थितयों में आगे बढ़ने के तमाम अवसर हैं, हमारे यहाँ आगे बढ़ने का एक ही मकसद है, अपने लिए परिस्थितयों को अनुकूल करना या परिस्थितयों के अनुकूल हो जाना।
आपकी विकट समस्यायों के लिए देश के पास लाखों की संख्या में बुद्धिजीवी वर्ग खड़ा मिलता है। राजनैतिक पार्टी विशेष तो रोने-धोने को तैयार हो जाती है। बिहार खुद भी आपके दर्द में आपको कंधा देता है, तेल-मालिश का जुगाड़ करता है। इसके बाद बिहार को क्या मिलता है?
केरल, महाराष्ट्र, उत्तराखंड में शहरी बाढ़ की विपदा हो या किसानों के लिए आकाल की स्थिति, आपको डोनेशन की ज़रूरत पड़ ही जाती है। आप समझने लगते हैं इसके फायदे। पर क्या आप उतने ही तैयार होते हैं बिहारियों के लिए भी?
बिहार आपके डोनेशन की फिक्र करता भी नहीं। यह जनता अपने नेताओं की नीतियों व घोटालों की मारी हुई जनता है, यह जानती है आपके डोनेशन का सिर्फ ‘न’ ही इन तक पहुंचेगा!
इन्हें सम्भलना खुद है! इन्हें अपनी बर्बादी का मंजर भी खुद ही दिखाना है और खुद ही अपने को आबाद भी करना है! इनके पास साधन कम हैं, ये उपलब्ध साधनों में स्थिति सामान्य कर देने का धैर्य लेकर जीते हैं।
आपको लगने लगा होगा कि बिहारियों को जलन क्यों हो रही आख़िर, कि अन्य राज्यों में मदद पहुंचाई जा रही पर यहां नहीं। पर ऐसा नहीं है। हमारे अंदर कोई जलन नहीं। आकर देखिए सब बिहारी अपनी परिस्थितियों, अपनी विवशता से लड़ने, जूझने और झूमने के लिए तैयार बैठा है।
पर साहब! हॉस्पिटल के दो बिस्तर पर दो मरीज़ एक ही तरह की बीमारी से ग्रसित हों। एक के पास सर्वोत्तम व्यवस्था पहुंचाई जा रही हो, उससे मिलने वालों का तांता लगा हुआ हो और दूसरे बिस्तर की तरफ कोई देखे तक नहीं। ऐसे में वो अपने दर्द को ज़ाहिर तो करेगा न! ऐसे में उसके दर्द को थोड़ा और दर्द तो होगा न! ऐसे में उसके दर्द की कीमत उसको पता तो चलेगी न! उसके दर्द में विवशता तो दिखेगी न! बस इत्ती सी बात है!
बाकी हम तो बिहारी हैं भाई साहब! दिल नहीं, जिगरा वाले बिहारी! हम तो रोते भी बरसात में हैं और अपने आंसुओं के बाढ़ का जश्न भी मनाते हैं! हम ज़िंदाबाद हैं, ज़िंदाबाद ही रहेंगे! हमारे लिए बिहार में बाढ़ है तो बिहार में ही बहार भी है! जय बिहार! जय हिंद!
– नेहा नुपुर