होली का रंग चढ़ने लगा है| हर कोई मदमस्त होने लगा है| प्रकृति भी खिली खिली दिखने लगी, मौसम मे गर्माहट सी होने लगी पर होली पर हुड़दंग ठीक नही है| होली पर बदरंगता ठीक नही है| होली पर होली रहना जरूरी है, बुराईयों से मुक्ति पाना जरूरी है जो भी विकार बचे है, जला दो| होली में आत्मा का परमात्मा से योग लगा लो।
होली के त्योहार की आहट के साथ ही बिहार की फिजाओं में त्योहार की मस्ती घुल गई है। ऐतिहासिक, धार्मिक और प्रकृति पर्व होली की आहट इतनी करीब आ चुकी है कि मन की लगभग सारी तंत्रिकाएँ और रग-रग ऊर्जावान हो गया है। राक्षसी होलिका के दहन के बाद एक परंपरा के तौर पर होली का जश्न सदियों से हमारी बिहारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है।
वसंतोत्सव के तुरंत बाद धन-धान्य, फूल- फलों से परिपूर्ण यह वसुंधरा खुद ही लोगों को उकसाती है, ऐसे जश्न के लिए जिसमें हर दिल में उमंग और तरंग हो, हर ओठों पर मुस्कान हो और हर शरीर पर नये वस्त्र हों।
मैं याद करता हूँ अपने बचपन को, तब मैं अपने गाँव काको जहानाबाद में रहा करता था। होली की आहट आते ही उस दिन तक आने को बेचैन कर देती थी। एक परंपरा के तहत होलिका मांगने हुए गलियों में शोर करते निकलते थे और होलिका इकट्ठा करते थे। मेहनत मजदूरी करने या नौकरी पेशा बाले दूर देश में रह रहे लोग होली में गांव जरूर आते थे।
भांग और ठंडई का इंतजाम जरूर होता था। ढोल, झालं और करताल के साथ होली गायकों की टोली जोगिरा सररर गायन के साथ सबों को झूमने को मजबूर कर देती थी।
बिहार में सुबह-सुबह कादो-माटी वाली होली की महक (सुगन्ध/दूर्गन्ध सहित) सबको पता नहीं प्यारा लगता था या नहीं पर इस में सब अपने को सरावोर कर लेते/देते थे| जो दोस्त जितना कोदो से भागते थे कादो उसको उतना ही पिछा करता था| रंग से ज्यादा गहरा दाग हमलोग प्रकृति की बनी कादो से लोगों के मन मंदिर में पुरे वर्ष भर के लिए डाल देते थे|
नाली में सना कीचड़युक्त गन्दगी जब दोस्तों के बदन पर गुनगुना सर्दी में अर्थात होली में डालते थे| तब असल होली की गरमाहट शुरू होती थी| कीचड़ के जस्ट बाद अर्थार्त उसके साथ रंग की मिलन अह्ह्ह्ह अदभुत…अद्वितीय| अब माहौल बदल चुका है, होली के तौर तरीकों में थोङा बदलाव आया है पर बेसिक वही है; मस्ती .. मस्ती ..और मस्ती ।
आम्र मंजरियों की मादकता भरी सुगंध फागुन की मस्त बयारों के साथ लोगों को अपने वश में कर लिया है और लोग बिना पिये ही होली के नशे में चूर हैं। महिलाओं की उर्जा दूनी हो गई है और वे रंगोत्सव और भोजनोत्सव दोनों के लियेअपने को तैयार की हुई है। अगर इनसब में शुरुआत बसि और झोर- भात बजका, बजका में फूलगोबी, कद्दू, कचरी/प्याजी, बैगन, हरा चना ,टमाटर,हरा मिर्च हरा चना का बजका, होली में मोदक और मद्य सदियों की परम्परा का हिस्सा है।
होली प्यार, आपसी मिलन, भेदभाव से दूर सामाजिक सौहार्द का प्रतीक पर्व है जो पूरे भारतीयों और दुनियां भर में रह रहे भारतवंशियों को जोङती है। मेरी आँखों में तेरे रंग रहे या न रहे, अपनी खुशबू मेरी सांसों में बसाये रखना! काश होली के लाल हरे गुलाबी चम्पई रंग हमारे कपड़ो से हमारे जिस्म से होते हुए हमारे दिल तक ठहर जाते| ये उल्लास, ये हुड़दंग, ये नशा, ये रंग और ये मिठास हमारी जिंदगी में हमेशा के लिए शमिल हो जाते और गले मिलने की रवायत होली से होते हुए ईद तक पहुच जाती|
आप सभी को होली की सुभकामनाए!