“भईयाजी, हाफ केजी पपीता तौल दीजिएगा!”
“अरे मईडम जी, एतना बड़का सब्जी मंडी में आधा किलो पपीता कौन देगा! लेना है तो पूरा पीसे लेना होगा! अढ़ाई-तीन किलो का होगा!”
पटना में चार दिन से झमर-झमर पानी बरस रहा था.. ई ससुरा गैसो को आजे ख़तम होना था. अब बताइए, एतना अफतकाल में कौन गैस वाला दोकान खोल के बैठल होगा! ऊपर से बाजार समिति का कादो-किचकिच! पते नहीं चलता है कोन ओरिजिनल कादो है और कौन गलल केला आ पपीता का किचकिच! बुभुक्षितः किम् न करोति पापम्! हम छत्ता उठाए आ चल दिए फलहार के बेवस्था में.. बारिश अभियो पड़िए रहा था. पपीता वाला के ईहाँ पपीता तौलवा ही रहे थे कि पीछे से पपीतो से बेशी मीठगर आवाज़ सुनाई दिया..
“भईयाजी, हाफ केजी पपीता तौल दीजिएगा!”
बारिश से बचते-बचाते, हाथ में क्लासमेट का कॉपी आ रूमाल में मोबाइल लपेटकर पता नहीं कोन कोचिंग से एतना कीचड़ में ई कमल खिल गया.. हमको बुझा गया कि इनकरो ईहाँ के गैस खतम है. लेकिन ससुरा पपीता वाला त निकला बाजार समिति का उजड्ड देहाती! एक्के सुर में मना कर दिया कि नहीं देंगे! एक मन हुआ कि अपने पपीता में से आधा किलो कटवा के दे दें लेकिन फिर पटना सोच के मन मार लिए. ऊपर से पपीता छकड़ने वाला हंसुआ अभियो पपीता वाला के हाथे में था..
ता ई हमारा पहीला मुलाक़ात था. उनका तरफ से नहीं, हमरा तरफ से.. फिर एकाध दिन रामपुर लेन में भी देखाई दे दिए.. उनकर गुलाबी कलर वाला छत्ता हम दूरे से पहचान जाते थे.. अब हमारा मन आर.के. सुमन सर के डिफरेन्शिएशन में कम आ इश्क के इंटीग्रेशन में जादा लग रहा था.. हाँ एक और इम्पोरटेंट बात.. एतना भीड़-भड़क्का वाला पटना में कोनो सुंदर चेहरा आपको लगातार दिख रहा है ता आप सच में बहुत किस्मत वाले हैं.. उनका के चक्कर में केतना दिन रामपुर लेन साईं बाबा मन्दिर के पीछे पचीस-पचीस रुपया का गोलगप्पा खा गए.. साला हमको जौंडिस हो गया पर उनको मोहब्बत ना हुआ.. फेर एक दिन क्लास छूटा.. हम बचते-बचाते गुलाबी छत्ता के खोज में स्पीड पकड़ लिए.. ऊ आ उनकर तीन गो सखी पपीता वाला के दोकान पर देखा गयी.. ई बार ऊ लोग सौंस पपीता लेबे के बिचार में आए थे.. पीछे से हमहू पहुँच गए..
“भईवा आधा किलो पपीता तौल द..”
हमको पपीता वाला का जवाब भी मालूम था लेकिन हमको पपीता थोड़े खरीदना था.