गाँव में हम बड़ी तेज थे पढ़े में.. सत्तर परसेंट नम्बर लाए थे मैट्रिक में.. घर में सब बहुत खुश था.. पिताजी सतनरायन भगवान का पूजा भी करवाए.. मम्मी छठी मैया से मनता भी मांगी थी कि हमारा बच्चा फस्ट किया ता हम एगो कलश और चढ़ाएंगे.. लेकिन जब से हम पटना आए हैं, लगता है कि हम कुच्छो नहीं है.. एतना भीड़ में कोई हमको चीन्हबो नहीं करता है, कोई नामो नहीं जानता है.. गाँव में ता मास्टर साहब दूरे से पहचान जाते थे.. अईसा लगता है कि हम यहाँ इस भीड़ में हेरा गए हैं.. अकेले कब्बो-कब्बो मन उचट जाता है..
एगो और परोबलम है, ईहाँ कुल पढ़ाई अंग्रेजिए में होता है.. हमको आता भी रहता है ता हम नहीं समझ पाते हैं.. बिहार बोर्ड से मैट्रिक पास किए हैं ना.. अंग्रेजी कम्पलसरी नहीं था ता हमलोग भी कामचलाऊए पढ़ते थे.. यहाँ सीबीएससी वाला सब जो फड़फड़ा के अंग्रेजी बोल देता है ता हमारा कन्फिडेंसे गड़बड़ा जाता है.. हमको आता भी रहता है लेकिन हम बोले नहीं पाते हैं.. बहुत संस्कारी बनने के चक्कर में हम बहुत दब्बू बन गए हैं, ई बात हमको पटना में आके पता चला.. ई मत करो, ऊ मत करो, बाल बढ़ा के काहे रखे हो जी, टीनही हीरो बनना है, इससे मत बतियाओ, उससे मत बतियाओ गाँव-समाज में एतना नियम होता है ना कि आपको कभी कंफिडेंट बनने ही नहीं देगा.. क्लास में जवाब आता भी रहता है ता बारह सौ के भीड़ में खड़ा होने से पहले बारह सौ बार सोचते हैं कि कहीं जवाब गलत हो गया तो बेइज्जती हो जाएगा.. अगर हिम्मत बढ़ा के खड़ा भी हो गए ता बोलते-बोलते तरवा से तरहथी तक पनिया जाता है..
मास्टर साहब खूब तेज़ी से पढ़ा रहे हैं.. उनको अपना सिलेबस कम्पलीट करना है.. चाहे हमको कुछ समझ में आए, चाहे न आए.. दीवालियो का छुट्टी नहीं दिए हैं.. कह रहे हैं कि एक्को दिन कलास छूटा ता सिलेबस कम्प्लीट नहीं हो पाएगा.. आज दिवाली है.. पूरा पटना बुकबुकिया लड़ी छत पर टांग रहा है, कोई झोरे के झोरा फटक्का खरीद के ले जा रहा है तो कोई मिठाई तौलवा रहा है.. हर दोकान में भीड़ लगा हुआ है.. बाजार समिति मेन गेट से मुसल्लहपुर हाट तक रोड पर खाली भीड़े दिखाई दे रहा है.. सब खुश है, सब चहक रहा है.. एगो हमही है जो मुंह लटका के हाथ में क्लासमेट का कॉपी लिए भीड़ से बचते-बचाते कलास जा रहे हैं..
सांझे मम्मी का फोन आया.. भगवान का पूजा किए हैं वहीं से गोर लाग लो.. मम्मी खूब गुस्साएल थी कि दिल्ली-पंजाब कमाने वाला सब घर आया है आ तुम पटना में रहके भी नहीं आए.. पता नहीं कोन फ़ारसी का डिग्री ले रहे हो.. मम्मी बोली कि आज बाहरे कुछ अच्छा खाना खा लेना, अब हम का बताएं कि दिन वाला खिचड़ी बचा हुआ है, उसी को गरम करके खाएंगे.. हम नहीं मना पाए ता का हुआ, कम से कम ऊ लोग ता ठीक से दिवाली मना लें..!!