ओहो, बी-टेक किए हो! अच्छा, इंजिनियर हो! केतना पईसा कमा लेते हो? घरे केतना भेज पाते हो? ओतने में काम चल जाता है? एजी, ता बी-टेक काहे किए कुछ और कर लेते!
बहुत हंस्सी आता है ना जब पता चलता है कि दसमा में फर्स्ट आया सभी लड़का साइंस लिया है आ पटना-कोटा जाने के तैयारी में है! बहुत हंस्सी आता होगा ना जब पता चलता होगा देश के कोनो कोना के इंजिनियरिंग कॉलेज के हॉस्टल में पचास प्रतिशत से ज्यादा आबादी गमछा पहिनकर नहाने वाला बिहारी का है..! हाँ हम करते हैं बी-टेक, लेते हैं इंजीनियरिंग.. बहुत मन होता है हमरो कि गायक बनें, एक्टर बनें आ पायलट.. लेकिन घर पर माँ-बाबूजी के मेहनत से मुरझाएल चेहरा आ टेंसन से पाकल केश देखते हैं ना तो होता है कि केतना जल्दी हमरो नौकरी लग जाए आ हमहू अप्पन छोटकी बहिन के बियाह अपना पईसा से करें..!!
शुरू से कहानी सुनाएं.. सुनेंगे कि काहे करते हैं बी-टेक? ता सुनिए… जिस उमर में पायलट आ अन्तरिक्षयात्री बने के सपना देखे वाला बाबू साहब के लइका सब गर्दन में थर्मस टांग के पियरकी बस में बैठकर 50000 फीस वाला अंग्रेजी मीडियम में पढ़े जाता है ना.. ऊ ही उमर से हम बाबूजी के फीस के पईसा बचाने के लिए नवोदय आ नेतरहाट का तैयारी शुरू कर देते हैं.. जिस उमर में बड़का अफसर सब के लइका सब मॉम से पॉकेटमनी के लिए लड़ता है न, उस उमर में हम महतारी से दूर मकान मालिक से रूम भाड़ा कम करवाने के लिए लड़ते रहते हैं..!!
बचपने से एतना गरीबी आ कमी देखते हैं ना कि डॉक्टर आ पायलट बने के सपना अइसे भी नहीं देख पाते हैं, एक्टर-सिंगर ता बहुत दूर के बात है.. बाढ़ आने पर बाबूजी के चेहरा के पानी उतरते जो देखते हैं ना तब मन करता है कहीं एगो नौकरी बस मिल जाए. कईसेहू!! सुखाड़ आने पर बाबूजी के आँख में भरल पानी देखते हैं ना तब बुझाता है पईसा ही माई-बाप है..!!
गाँव के बड़का भईया सब का यूपीएससी का रिजल्ट पिछला दस साल से देख रहे हैं.. कब्बो इंटरव्यू में लटक जाते हैं त कब्बो प्रीओ नहीं निकलता है.. करेजा टूट गया है जी ई सब सुनकर.. भईया लोग ता मलिकार के बेटा हैं, बीघा के बीघा खेती है ऊ लोग का, तभी ना दस साल यूपीएससी का तैयारी कर सकते हैं.. हमर बाबूजी ता बनिहार हैं, छोटका किराना के दोकान है, पान का गुमटी है, लोकल बस में खलासी हैं, हम कहाँ से दस साल दिल्ली रह पाएंगे.. बाबूजी हमरा पढ़ावे खातिर खेत का एगो टुकड़ा बेचते हैं ना ता रात में एक्को रोटी नहीं घोंटाता है.. अइसा लगता है करेजा के टुकड़ा काट के बेच दिए हैं..!!
शौक नहीं है जी हमको इंजीनियरिंग करने का.. बस लगता है कि चार साल बाद दसो हजार के नौकरी ता मिल जाएगा.. चार साल बाद घरे कुच्छो ता हाथ बटाएंगे.. हमारा सपना बंगला खरीदना आ बड़का गाड़ी खरीदना नहीं, बाबूजी को अपना कमाई से एगो खादी का कुरता, मम्मी को एगो साड़ी आ छोटकी बहिन को राखी पर अपने हाथ से पांच हजार रुपया देना होता है..!!