आज पूरा देश फादर्स डे माना रहा है| कहा जाता है कि किसी इंसान के सफलता या विफलता के पीछे उसको मिले परवरिस, संस्कार और शिक्षा का बहुत महत्व होता है, और भारतीय संस्कृति में इन सबके पीछे उस इंसान के पिता का सबसे सबसे बड़ा योगदान होता है| शायद इसीलिए कहते हैं कि पिता परमेश्वर होता है|
आज फादर्स डे के इस विशेष मौके पर, बिहार के एक ऐसे ही पिता की कहानी हम लेकर आए है| जिन्हें परमेश्वर से भी तुलना करना अतिशयोक्ति नहीं होगी| हम बात कर रहे हैं, मूल रूप से सिवान के प्रसिद्ध जीरादेई गाँव निवासी श्री बिमल कांत प्रसाद जी का|
बिमल जी के नाम से शायद सभी लोग परचित नहीं होंगे मगर इनके परछाई रूपी दो पुत्र और एक पुत्री के कारनामे, उपलब्धि और प्रसिद्धी सिर्फ एक देश तक ही सीमित नहीं है बल्कि पूरी दुनिया में फैली हुई है| संभवतः ये बिहार के पहले पिता हैं, जिनके तीनों संतान पुरे छात्रवृति के साथ अमेरिका स्थित दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों से स्नातक हैं|
इनके सबसे बड़े पुत्र बसंत सागर एक महान गणितज्ञ थे| वे बॉस्टन स्थित टेक्नोलॉजी कंपनी ब्राइटक़्वान्ट के चीफ साइंटिस्ट एवं सीईओ थे| बसंत आधुनिक बिहार राज्य से पहले स्कॉलर थे जिन्हें पूरी छात्रवृत्ति पर एमआईटी बॉस्टन जाकर स्नातक की डिग्री पाने का प्रस्ताव मिला। वह अभी तक इस उपलब्धि को पाने वाले बिहार से एकमात्र छात्र हैं। एक वैज्ञानिक, गणितज्ञ और पॉलीमैथ बसंत को अपने रिसर्च के लिए दुनिया भर में सम्मानित किया गया। दुर्ग्भाग्य बस मात्र 29 वर्ष के आयु में इस महान व्यक्तित्व और बिमल जी के बड़े पुत्र का निधन हो गया| इतने कम समय में इनके असामान्य उपलब्धियों के कारण इनकी तुलना महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन से की जाती है|
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बिमल कांत जी की पुत्री बरसा भी अमेरिका के प्रतिष्ठित कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पूरी छात्रवृत्ति पर स्नातक हैं| वें पर्यावरण नीति और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में काम करती हैं। भारत के प्रसिद्ध जागृति यात्रा की आयोजक हैं और अभी वर्तमान में अमेरिका स्थित प्रसिद्ध एमआईटी के Climate CoLab में काम कर रहीं हैं। इसके साथ ही वे अपने कामों के लिए कई बार विदेशों में भी सम्मानित हो चुकी हैं|
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इनके सबसे छोटे पुत्र शरद सागर देश के युवा आइकॉन के रूप में प्रसिद्ध हैं| वे भी 4 करोड़ की छात्रवृत्ति पर अमेरिका के प्रतिष्ठित टफ्ट्स यूनिवर्सिटी से पढ़ें हैं| अक्टूबर 2016 में शरद एकमात्र भारतीय थे जिन्हे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा वाइट हाउस आने का आमंत्रण मिला। शरद विश्व के 100 सबसे प्रभावशाली युवा उद्यमियों की सूची में भारत से सबसे ऊपर हैं। शरद फोर्ब्स पत्रिका के 30 अंडर 30 की सूची में मार्क ज़ुकेरबर्ग एवं मलाला यूसफज़ई के साथ शामिल होने वाले बिहार से एकमात्र हैं। दिसंबर 2016 में नोबेल पीस सेण्टर ने शरद को ओस्लो, नॉर्वे में होने वाले नोबेल शान्ति पुरस्कार समारोह में विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया और जून 2017 में अखबार दिव्य भास्कर ने शरद को “21वीं शताब्दी के स्वामी विवेकानंद” की उपाधि दी।
जिस देश में ज्यादातर माता-पिता अपने संतानों को विदेशों में पढ़ाने का सपना देखते हैं और उसे विकशित देशों में अच्छी नौकरी मिलने की कामना करते हैं, वही बिमल जी का परवरिस कहिये या बचपन में इनके द्वारा दिए मूल्य और संस्कार| इनके तीनो संतानों द्वारा विदेशों में शिक्षा अर्जित करने और करोड़ों के ऑफर होने के बावजूद ये लोग स्वदेश लौटकर देश की सेवा कर रहें हैं|
बच्चों के सफलताओं के पीछे छुपा है बिमल जी का संघर्ष, त्याग और परिश्रम
श्री बिमल कांत प्रसाद मूल रूप से बिहार के सिवान जिले से हैं और वर्तमान में पटना में रहते हैं| पूर्व में वे स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में कार्यत थे और अभी वर्तमान में डेक्सटेरिटी ग्लोबल के अध्यक्ष हैं| उनकी प्राथमिक शिक्षा जयप्रकाश नारायण और प्रभावती देवी द्वारा स्थापित महिला चरखा समिति में हुआ| हालाँकि वह बालिका विद्यालय था मगर उसमे जिस लड़कों की बहन पढ़ती थी उसे वहां पढ़ने की इजाजत थी| जिसके कारण उनको जयप्रकाश नारायण के करीब रहने का मौका मिला| जयप्रकाश नारायण जी के वजह से ही वे अमेरिकन शिक्षा पद्धति से प्रभावित हुए|
उनकी हाई स्कूल की पढाई जयप्रकाश के निवास स्थल के ठीक सामने कदम कुआँ स्थित ‘सर जी.डी. पाटलिपुत्र हाई स्कूल’ में हुई|
बाद में 1974-76 के बीच वे जयप्रकाश नारायण के छात्र आन्दोलन में सक्रिय रूप से सामिल रहें| इसी आन्दोलन के दौरान वे छात्र संगठन ABVP से जुड़े| उसी दौरान ABVP में इन्हें सुशील मोदी, जे.पी. नड्डा, अश्वनी चौबे जैसे लोगों के साथ काम करने का मौका मिला, जो कि अभी भारतीय राजनीति के स्तम्भ हैं|
उनकी उच्च शिक्षा 1979-84 में उस समय के भारतीय ऑक्सफ़ोर्ड के नाम से प्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित पटना यूनिवर्सिटी के पटना कॉलेज में हुई| बिहार में प्राचीन समय से नौकरी पाना ही मेधावी होने का प्रमाण रहा है| इस गलत धारणा का सिकार बिमल जी भी हुए| पढाई में इतने मेधावी होने के बाद भी, अपने इच्छा के विरुद्ध वे 1987 में भारतीय स्टेट बैंक में सरकारी नौकरी कर ली| स्टेट बैंक में नौकरी करने का सबसे बड़ा नुकसान उभर के यह आया कि स्टेट बैंक की ज्यादातर सखायें ग्रामीण क्षेत्र में थी जिसके कारण बच्चों के पढाई लिए अच्छे स्कूल और सुविधाओं की कमी एक बड़ी चुनौती थी|
इस चुनौती से वे निराश होने के जगह वे इसके लिए नयी पद्धति विकशित की और बच्चों को घर पर ही प्राथमिक शिक्षा देना शरू कर दिया| नौकरी करते हुए वे हर दिन अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की जिम्मेदारी अपने उपर ले ली| बैंकर्स के साथ वे टीचर्स की भूमिका निभाने लगे| यही नहीं अपने बच्चों को समय और बेहतर शिक्षा देने के लिए वे अपने पुरे नौकरी के दौरान कभी प्रमोशन नहीं ली, ताकि वह अपने बच्चों को पूरी समय दे सके|
एक मशहूर कहावत भी है की मजबूत नीव पर ही बड़ी इमारत खड़ी होती है| आज इनके जो तीनों बच्चे पुरे दुनिया में चमक रहें हैं और सबके लिए उदहारण हैं, उनके सफलता का मजबूत नीव इसी दौरान पड़ा| अपने बच्चों के लिए बिमल जी का संघर्ष, त्याग और परिश्रम का परिणाम अब पूरी दुनिया के सामने है| दुनिया के हर पिता का एक सपना होता है कि उसके संतानों के नाम से उनकी पहचान बने| इसमे अब कोई शक नहीं है कि बिमल कांत प्रसाद जी का वह सपना पूरा हो चुका है|