बिहारी बियाह के बाते अलग बा, बिहार के घरों में यूँ होती है शादी मुबारक
हमनी के बिहार में लईकीन के बियाह के दिन धराला ओकरा बादे से घर के माहौल में एकदम बदलाव हो जाला। घर मे कवनो बात होत रहे घूम फिर के बियाह पे आजाला। घर के मेहरारू लोग के दिमाग मे खाली गहना, गुरिया आ साड़ी, कपड़ा चलत रहेला। जहाँ बईठकी लागी खाली एहि मुद्दा पे बात होई!
घर के मरदाना लोग पे पूरा बियाह के बंदोबस्त के जिम्मेदारी आजाला, सामियाना कहा लागि, बराती लोग के नास्ता में का दियाई, खाना में का रही!
भंडार खाती त एगो मामा भा माउसा फिक्स रहेलन लोग। बियाह के एक महीना पहिले से ही सबके काम गिना दिहल जाला, घर के चाचा लोग के जिम्मे खाना पीना के जिम्मेदारी आवेला, आ खाना के स्वाद कईसन बा एकर फैसला घर के फूफा लोग करेले। हर घर मे एगो फूफा लोग होले जे हलुआई के बगल में कुर्सी लगा के बियाह के भागम- दौड़ के मज़ा एकदम लाइव लेत रहेलन लोग। आ साथे साथ बीच-बीच में दोसरा के काम मे एक बार आपन टांग जरूर अड़ा दिहे। उहन लोग के पता बा कि उहन लोग से त केहू कवनो काम खाती कही ना। एहसे उहन लोग के चांदी बा।
फेर एक आदमी के कोसाध्यक्ष बना दिहल जाला। उहन लोग के काम इहे रहेला की बस कहां का होता ई देखत रहे के बा। चुकी उहन लोग के हाथ में पईसा से भरल बैग रहेला त उहन लोग के कवनों काम कहल बेजाईं बा। एक आदमी के जिम्मेदारी रहेला कि उनका हाथ से मोटरसाइकिल के हैंडिल ना छूटी पूरा बियाह। जवन घटल-बढ़ल उ उनके जिम्मा रहेला।
घर में बियाह के टाइम पे सबसे बेसी चांदी नया-नया मोटरसाइकिल चलावे वाला छोट भाई लोग के होला। घर में 5-6 गो गाड़ी हो जाला आ सभे बाझल रहेला त गाड़ी के चाभी आसानी से हाथे लाग जाला।
घर के बहिन लोग के शॉपिंग दिन धाराएं से पहिलही शुरू हो जाला। फ़ोन पे घंटा-घंटा भर खाली लहंगा, लहठी के रंग के ऊपर डिस्कसन होला। सब अपना अपना कपड़ा के खूबी गिनावे ला। बियाह वाला दिने घर के बहिन लोग के त सांस लेबे के फुरसत ना रहेला, काहें कि घर के मय मेहरारू लोग सुबहे से बियाह रसम-रिवाज में बाझ जाली लोग। त घर में के खाईल के पियल, के कहां सूती, एह सब के बोझा घर के कुंवार लईकी लोग पे होला।
बियाह में घर के काम अधिकांस मइया आ घर के लईकीन लोग के देख-रेख में ही होला, आ बहरी के काम घर के लईका लोग आ बाबा के देख-रेख में। मने कवनो काम में एक बार पुछल या बतावल जरूरी बा।
दुलहिन ‘जेकर बियाह रहेला‘, त मने दिन धरईला के दिन से अंगूरी प दिन गिने शुरू कर देली। धीरे धीरे उ दिन आइये जाला।
सब उनका नज़री के सोझा होला। उनका मन मे एगो खुसी भी होला की आज के ई खास दिन पे उनकर आपन लोग सामिल भईल बा, आ सभे उनका बियाह के तैयारी में बाझल बा। आ दूसरा तरफ इहो खयाल आवेला की बिदाई के बाद ई लोगवा केतना दूर हो जाई। उ घर के आंगन देख के आपन बचपन मन पारेली जहा बईठ के उ अपना मईया से बार मे तेल लगवावत रहली, अब उ आंगन बदल जाई। जब दुवार कावर देखेली त दुवार पे बाबा, बाबूजी, चाचा के आवाज कान में गूंजेला जब कवनो हितई लोग आवेत एगो आवाज सुनाई देबे, ‘बुचिया तनी मीठा-पानी दिहे त’ आ दुई कप चाय भी बना दिहे। उनका दिमाग मे इहे चलेला की बिदाई के बाद ई आवाज बदल जाई!
घर मे अतना काम रहेला की बाकिया लोग के ई धेयान ना रहेला की बहिनिया, मौसी, भा फुआ के बिदाई हो जाई काल्ह। एह बात के एहसास 3 लोग के सबसे बेसी होला, बाबूजी- माई आ बेटी के ‘जेकर बियाह रहेला’। बाबूजी बाकिया काम भी देखेले बाकी मन मे ई बात आवात रहेला की बुचिया काल्ह चल जाई। माई त जब बेटी के आंख में देखेली तब दुनो आंख लोर से भर जाला। बाकी बाबूजी के लोर आँखी में ना लउके। धीरे धीरे सब तैयारी होला।
साम होखे लागेला सब अब बराती लोग के स्वागत में बाझ जाले। लईका लोग के जिम्मा सबसे पहिला काम होला कि बराती लोग आ बाकिया मेहमान लोग के नास्ता पानी कराके के फिट कर देबे के बा। बाकी खाना में आधा घंटा कम बेसी भी होई त ममिला अंडर कंट्रोल रही। नास्ता के डिब्बा के स्टॉक, एक्स्ट्रा में रखे के काम भी एक जाना के होला कि कही कुछु घटे बढ़े त फेर से डिब्बा भा प्लेट ना बनावे के पड़े।
एने घर मे कुल्ह रस्म- रिवाज शुरू रहेला। दुवार पूजा होला, फेर जयमाल, फेर गुरहथी। गुरहथी तक लगभग कुल्ह लोग के खाना पीना हो जाला, आ सब केहू माड़ो में आजाला। जेकरा बियाह देखे के होला उ रहेला, जेकरा सूते के होला उ सुत जाला। गुरहथी के बाद घर के माहौल बदले लागेला काहे की सभे फुरसत में आजाला आ सभे के नज़र सोझा जोड़ा में बईठल लईकी होली, आ घर के दमाद जेकरा संगे काल्ह भोरे बेटी बिदा हो जाइहे।
धीरे-धीरे कन्यादान, फेर धार गीरावल जाला, ओकरा बाद लावा मेरावल जाला। कन्या दान के विधि शुरू होते के साथ माड़ो में बईठल सभ लोग के आँखी में लोर भर जाला, आ पीछे घर के मेहरारू लोग के गावल कन्यादान के गीत कान में सुनाई देला, तइसे तइसे मन कुहूके लागेला।
बेटी लोग के त हालत एकदम नाजुक होला। उहन लोग के सोझा रउवा प्यार से दु सब्द भी बोल देम त उनका लोग के आंख में लोर भर जाई। भोर से ही उहन लोग के मन मे छोट से लेके बड़ होखे तक सबके संगे जेतना भी याद होला उ दिमाग मे चलत रहेला।
आ फेर ई बात मन मे आवेला की काल्ह से त ई कुल बदल जाई। काल्ह से माई ना लउकी, बाबूजी ना लउकीहें, भाई जवन बात बात में लड़त रहे, जेकरा संगे हर छोट बड़ बात पे नोंक झोंक होत रहे, उ काल्ह से ना होई। काल्ह से ई जवन आपन लोग बाड़े जेकरा सोझा कुछु बोले में कवनो संकोच ना रहे, मन मे जवन चलत रहें ज बोल देत रहनी, उ लोगवा बदल जाई।
आ ना जाने केतना समय लागि उ नयका परिवार में घुले मिले में।
ई कुल बात के साथ सिंदूरदान आ बाकी के रस्म-रिवाज़ बीत जाला आ समय आजाला बिदाई के! सभके आँखी में लोर रहेला। सभे के मन मे इहे बात रहेला की आँखी के पुतरी अब हमनी के छोड़ के जात बाड़ी। आज से ई हमनी के घर छोड़ के दोसरा के परिवार के हिस्सा हो जाइहे। बिदाई वाला दिने त जईसे घर से लेके दुवार सभे रोवेला। पूरा घर शांत शांत रहेला। जईसे लक्ष्मी के गईला के वियोग में बा!
एहीसे से त लईकीन के घर के रौनक कहल जाला!
– सुनंदा राय