जिस तरह यूरोप की हर छोटी से छोटी सामान्य सी लगती संरचनाओं को भी युनेस्को (UNESCO) ने विश्व धरोहर का दर्जा दे रखा है, वैसे ही इधर की कला को भी ज़्यादा ही हवा मिल रखा है। मैं यह नहीं कह रहा कि ये चीज़ें उस स्तर की नहीं है पर इनसे ज़्यादा योग्य वाली भी चीज़ें हैं दुनिया में। उदाहरण के तौर पर ‘लियोनार्डो दा विंची’ द्वारा बनाई गई मोनालिसा के चित्र को ही ले लीजिए।
मोनालिसा के बारे में बिहार में ही नहीं, भारत के किसी सूदूर इलाके में बैठे शख़्स को भी पता है। इसकी वजह क्या हो सकती है?
अब तो दो ही विकल्प हैं हमारे सामने या तो बॉलीवुड अभिनेता ‘आमिर खान’ की तरह अवार्ड्स और सर्टिफ़िकेट्स के चक्कर में ना पड़े या इतिहास को थोड़ा बेहतर डोक्युमेंट करने की ज़रूरत है, क्यूँकि “कला को भी कहानियाँ चाहिए”।
आप ख़ुद देख कर बताएँ, ऊपर की दो कलाओं में से कौन आपको ज़्यादा रचनात्मक और आकर्षक दिखती हैं?
बताता चलूँ की जिस कला को आप लोग कम जानते हैं या बिलकुल अनभिज्ञ हैं वो ‘दीदारगंज यक्षी’ है जो एक बलुआ पत्थर (सैंड्स्टोन) को तराश कर बनाया गया है और लगभग 2300 वर्ष पुराना है और फ़िलहाल पटना के बेहतरीन और समकालीन नवनिर्मित ‘बिहार संग्रहालय’ में स्थापित है। लगभग छः फ़ीट ऊँची ये मूर्ति में दर्पण की तरह चमक हैं और मौर्यक़ालीन कला को दर्शाता है। चेहरे पर स्मित मुस्कान भी विश्व प्रसिद्ध मोनालिसा की मुस्कान से कहीं बेहतर है।
दीदारगंज यक्षी की प्रतिमा गंगा नदी के किनारे पूर्वी पटना के दीदारगंज स्थित धोबी घाट से उदघाटित हुई है जिसे एक संयोग ही माना जा सकता है।
ऐसे ‘बिहार संग्रहालय’ ख़ुद भी किसी भी सरकार की तरफ़ से कलाकारों और कला प्रेमियों के लिए एक नायाब तोहफ़े से कम नहीं है।
ग़ौरतलब है कि बहुत से बुद्धिजीवियों का यह भी मानना है कि ‘मोनालिसा’ की इस चित्र के ‘लोकप्रियता भागफल (पॉप्युलैरिटी क्वोशंट)’ में बेइंतहा इज़ाफ़ा में इसके 1911 ई. में चोरी हो कर मिल जाने का बहुत बड़ा योगदान है।
– प्रकाश शर्मा (लेखक Bihar Fraternity के उपाध्यक्ष हैं)