बिहार की राजनीति हमेशा से राजनीतिक पंडितों के लिए एक पहेली की तरह रही है। बुधवार की रात भारी उठा-पटक के बाद, एक बार फिर बिहार की राजनीति एक रोमांचक मोड़ पर पहुंच गई है।
एनडीए में नाराज चल रहे पूर्व मुख्यमंत्री व हम (सेक्यूलर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने राजद नीत महागठबंधन में शामिल होने का एलान किया तो ठीक उसके बाद बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक चौधरी ने बुधवार की रात अपने आवास पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कांग्रेस छोड़ने की औपचारिक घोषणा भी कर दी। साथ ही कहा कि उनके साथ तीन और विधान पार्षद नीतीश कुमार की अगुवाई वाले जदयू का दामन थामेंगे।
मांझी को राज्यसभा का ऑफर
राजद सूत्रों की मानें तो ने मांझी को राज्यसभा का ऑफर दिया गया है। लेकिन मांझी अपने बेटे को एमएलसी बनाने को इच्छुक हैं। मांझी खुद भी केन्द्र की जगह राज्य की राजनीति करना चाहते हैं। हालांकि मांझी ने कहा कि बेटा को एमएलसी बनने की शर्त पर नहीं, पार्टी को मजबूत करने के लिए महागठबंधन में आए हैं। 6 मार्च से उपचुनाव में महागठबंधन प्रत्याशी के पक्ष में रैली करेंगे। उन्होंने कहा कि पिछले एक सप्ताह में एक भी भाजपा नेता से उनकी बात नहीं हुई है। इधर रालोसपा के सवाल पर तेजस्वी ने कहा कि फैसला उपेन्द्र कुशवाहा को लेना है।
दल-बदल कानून से बच जाएंगे चारों एमएलसी
बिहार कांग्रेस में अरसे से जारी उठा-पटक बुधवार की रात अपने मुकाम पर पहुंच गई। पटकथा तय थी। शाम पांच बजे कांग्रेस एमएलसी अशोक चौधरी, तनवीर अख्तर, दिलीप चौधरी और रामचंद्र भारती से सभापति को पत्र लिख कर जदयू में शामिल होने की जानकारी दे दी। सभापति से इसे मंजूरी भी दे दी। रात साढ़े आठ बजे चौधरी ने पोलो रोड स्थित अपने घर पर प्रेस कांफ्रेंस में इसकी घोषणा हुई।
चौधरी बोले- अब अपमान सहन नहीं हो रहा था। उपचुनाव में पार्टी ने ऐसे-ऐसे स्टार प्रचारक बनाए जिनको पहले किसी ने देखा तक नहीं। मेरे जैसे समर्पित कार्यकर्ता व पूर्व प्रदेश अध्यक्ष को चुनाव समन्वयक बना दिया। इधर, प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष कौकब कादरी बोले-हमने चारों एमएलसी को पार्टी से निकाल दिया है। इस बारे में पूछे पर अशोक चौधरी ने कहा कि कौकब कादरी अभी मैच्योर नहीं है। मैंने शाम 5 बजे ही सभापति को लिख कर दे दिया था। वे तीन घंटे तक क्या कर रहे थे? उन्हें अभी बहुत सीखने की जरूरत है। अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। कांग्रेस के विधान परिषद में 6 एमएलसी थे। 4 जदयू में चले आए। दो-तिहाई संख्या 4 ही होती है। इसलिए इन लोगों पर दलबदल कानून लागू नहीं हो सकेगा।
कैसे शुरू हुआ राजनीतिक उठापटक
26 जुलाई, 2017 को बिहार की राजनीति फिर से पुराने रास्ते पर लौटी थी। तब महागठबंधन में शामिल जदयू के मुखिया नीतीश कुमार राजद व कांग्रेस का साथ छोड़ एनडीए में शामिल हो गये। 2015 में नये समीकरण में महागठबंधन की सरकार बनने के 20 माह बाद ही यह गठबंधन बिखर गया। इसका असर दोनों गठबंधनों में शामिल दलों व नेताओं पर साफ झलकने लगा।
जदयू के एनडीए में शामिल होने के बाद एनडीए के घटक दलों में शामिल रालोसपा नेता उपेंद्र कुशवाहा और नीतीश कुमार से बागी होकर मुख्यमंत्री बने जीतन राम मांझी को एनडीए में असहजता दिखने लगी। जीतन राम मांझी अपनी भावना का रह-रह कर प्रकट भी करते रहे। हाल में राज्य में होनेवाले अररिया लोकसभा और जहानाबाद व भभुआ विधानसभा उपचुनाव को लेकर एक सीट पर दावा ठोक दिया।
सीट नहीं मिलने के बाद वह पूरी तरह से एनडीए में असंतुष्ट दिखने लगे थे। इधर राजद से उनकी नजदीकी बढ़ने लगी थी। इस बात को विरोधी दल के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने कई बार सार्वजनिक रूप से बताया कि जीतन राम मांझी राजद गठबंधन के साथ आ सकते हैं। दोनों दलों के बीच पक रही खिचड़ी बुधवार को तैयार हो गयी।
नीतीश कुमार के फैसलों से दलितों व गरीबों को झटका लगा है। शराबबंदी में करीब 90 हजार लोग गिरफ्तार हो चुके हैं, जिनमें 90% दलित व गरीब हैं।