आज हम भोजपुरी भाषा के बारे में बात करेंगे जिसे कई विद्वान, दुनिया की सबसे मीठी बोली मानते है. यह एक ऐसी बोली है जो दुनिया के कई देशो में बोली जाती है|
भोजपुरी भाषा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि जो इसे समझते है उनको तो मज़ा आता ही है| मगर जिसे समझ में नहीं आता है वो भी इसके मिठास से दूर नहीं रह पाते हैं|
भोजपुरी भाषा का उद्गम और विकास
भोजपुरी भाषा का नामकरण बिहार राज्य के आरा (शाहाबाद) जिले में स्थित भोजपुर नामक गाँव के आधार पर हुआ है. पहले आरा और बक्सर जिला एक ही था| जिसे भोजपुर के नाम से जाना जाता था. मध्य काल में मध्य प्रदेश के उज्जैन से भोजवंशी परमार राजा आकर आरा में बस गए. उन्होंने अपनी इस राजधानी को अपने पूर्वज राजा भोज के नाम पर रखा था. इसी वजह से यहां बोले जाने वाली भाषा का नाम “भोजपुरी” पड़ गया.
भोजपुरी भाषा का इतिहास सातवीं सदी से प्रारंभ होता है। भोजपुरी साहित्यकारों की मानें तो सातवीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के समय के संस्कृत कवि बाणभट्ट के विवरणों में ईसानचंद्र और बेनीभारत का उल्लेख है| जो भोजपुरी कवि थे। नवीं शताब्दी में पूरन भगत ने भोजपुरी साहित्य को आगे बढ़ाने का काम किया। नाथ संप्रदाय के गुरु गोरखनाथ ने सैकड़ों वर्ष पहले गोरख बानी लिखा था। बाबा किनाराम और भीखमराम की रचना में भी भोजपुरी की झलक मिलती है।
भोजपुरी भाषा के शेक्सपियर -भिखारी ठाकुर
भोजपुरी भाषा का जिक्र हो और भिखारी ठाकुर की बात न हो ये भी भला हो सकता है. 18 दिसंबर 1887 को छपरा के कुतुबपुर दियारा गांव में एक निम्नवर्गीय नाई परिवार में जन्म लेने वाले भिखारी ठाकुर ने विमुख होती भोजपुरी संस्कृति को नया जीवन दिया। भिखारी ठाकुर ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे, उसके बावजूद उन्होंने कई कृतियों की रचना की। उनके द्वारा रचित नाटक बिदेसिया, गबरघिचोर, बेटी-बेचवा बेटी-बियोग, बिदेसिया की प्यारी सुंदरी, नशाखोर पति आदि आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितना पहले हुआ करते थे।
हिंदी की एक छोटी बहन है भोजपुरी
भोजपुरी एक आर्य भाषा है जो बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में प्रमुखता से बोली जाती है . आधिकारिक और व्यवहारिक रूप से भोजपुरी हिन्दी की एक उपभाषा या बोली है। भोजपुरी अपने शब्दावली के लिये मुख्यतः संस्कृत एवं हिन्दी पर निर्भर है कुछ शब्द इसने उर्दू से भी ग्रहण किये हैं। भोजपुरी बहुत ही सुंदर, सरस, तथा मधुर भाषा है। श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के सभी हिस्सों में भोजपुरी बोलने वाले मिल जाएंगे. बिहार की तिन बोलिया भोजपुरी ,मगही और मथिली में विस्तार क्षेत्र के हिसाब से भोजपुरी को सबसे उच्च स्थान प्राप्त है .
विश्व के आठ देशो में है इस भाषा का विस्तार
भोजपुरी का विस्तार न सिर्फ भारत में बल्कि विश्व के कई महाद्वीपों तक है| आपको यह जानकर थोडा आश्चर्य जरुर होगा की विश्व में करीब 8 देश ऐसे हैं, जहां भोजपुरी धड़ल्ले से बोली जाती है और सुनी भी जाती है. भारत के अलावा नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, फिजी, मॉरिशस, अमेरिका, त्रिनिनाद और टोबैगो तथा सुरीनाम आदि देशो में भोजपुरी भाषा बोली जाती है. परिस्थितियों के कारण बिहार के लोगों को अन्य देशों में जाना पड़ा| ऐसे में वे वहीं के हो गए, मगर अपनी बोली को अपने साथ सदैव बनाए रखा| भोजपुरी बोलने वालो की जनसंख्या 20 करोड़ से भी ज्यादा है। ये लोग भारत ही नहीं बल्कि विश्व के विभिन्न हिस्सों मे अपना विशेष प्रभाव भी रखते हैं। संख्या के हिसाब से भोजपुरी विश्व की 10वीं सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है|
‘एक मारिशस की हिन्दी यात्रा’
मारिशस के हिन्दी विद्वान सोमदत्त बखोरी ने अपनी पुस्तक ‘एक मारिशस की हिन्दी यात्रा’ मे लिखते हैं कि भोजपुरी केवल घर कि भाषा नहीं थी, ये सारे गाँव कि भाषा थी| भोजपुरी के दम पर लोग हिन्दी समझ लेते थे और हिन्दी सीखना चाहते थे| वह सहायक सिद्ध होती थी| मॉरीशस ने जून, 2011 में ही भोजपुरी भाषा को संवैधानिक मान्यता दे दी थी| भोजपुरी की लोकप्रियता की मिठास का अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि संगम नगरी में मारिशस से आयी एक विदुषी ने कहा था कि भोजपुरी की मिठास की प्रगाढ़ता ही है कि उसने मारिशस जैसे टापू को भी स्वर्ग बना दिया| आज हम निःसंकोच कह सकते हैं कि इस देश मे बहुत जगह हिन्दी फली फुली है तो भोजपुरी के प्रतापों से|
भोजपुरी भाषा को राष्ट्रिय दर्जा नहीं पाने का नुकसान
भोजपुरी भाषियों की संख्या भारत की समृद्ध भाषाएँ- बँगला, गुजराती और मराठी आदि बोलनेवालों से कम नहीं है। फिर भी अभी तक इस भाषा को संविधान की आठवी अनुसूची में नहीं शामिल किया जा सका है| अपने देश में संवैधानिक दर्जा नहीं मिल पाने के कारण भोजपुरिया लोगो को बहुत सारी सुविधाओ से वंचित रखा जाता है| भोजपुरी रचनाओ को साहित्य पुरस्कार, फिल्मों को राष्ट्रीय अवार्ड, भोजपुरी लेखकों को राष्ट्रीय पुरस्कारों की श्रेणी से बाहर रखा जाता है|
संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओ में भोजपुरी को परीक्षा का आधार नहीं बनाया जा सकता| इस भाषा और साहित्य के विकास के लिए सरकार से आर्थिक सहायता प्राप्त नहीं की जा सकती| भोजपुरी फिल्मे देश के राष्ट्रिय चैनल दूरदर्शन पर नहीं दिखाई जा सकती है| जो की भोजपुरी के 20 करोड़ जनमानस के साथ अन्याय है।
“ना बोलला के मतलब इनकार ना होखेला,
हर नाकामयाबी के मतलब हार ना होखेला,
का होगइल भोजपुरी के भाषिक दर्जा ना मिलल त,
खाली दर्जा पावल ही भाषा से प्यार ना होखेला”
भोजपुरी और हिन्दुस्तान
भारत में राष्ट्रीय भाषा हिन्दी के बाद सबसे ज्यादा बोले जाने वाली बोलियों मे भोजपुरी है। समय समय पर इसको भाषा बनाने की मांग उठती रही है ।1969 से ही अलग-अलग समय पर सत्ता में आई सरकारों ने भोजपुरी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का आश्वासन दिया था। लेकिन दशकों गुजर जाने के बाद भी भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है। इसके लिए विभिन्न आंदोलन भी हुये लेकिन ये आंदोलन तुच्छ राजनीति का शिकार हो गए। अगर भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाता है तो निसंदेह उसके सुखद परिणाम होंगे। एक तो भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा हासिल हो जाएगा और दूसरे, भोजपुरी भाषा से जुड़ी ढेरों संस्थाएं अस्तित्व में आएंगी जिससे क्षेत्रीय भाषा का विकास होगा और साथ ही कला, साहित्य और विज्ञान को समझने-संवारने में मदद मिलेगी। संवैधानिक दर्जा मिलने से भोजपुरी भाषा की पढ़ाई के लिए बड़े पैमाने पर विश्वविद्यालय, कालेज और स्कूल खुलेंगे जिससे कि रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होगी।
अंतर्राष्ट्रीय होती भोजपुरी
हिन्दुस्तान में भोजपुरी महज एक बोली नहीं, बल्कि एक इंडस्ट्री है| व्यवसाय, मनोरंजन और साहित्य में भोजपुरी ने पूरे हिन्दुस्तान में अपनी एक अमिट छाप छोड़ी है| ये भोजपुरी बाज़ार का ही आकर्षण है कि अब यहाँ पर चैनल भी आने लगे हैं| महुआ चैनल की सफलता एवं लोकप्रियता के बाद अनेक भोजपुरी चैनल आ गए हैं। जिसमे गंगा, हमार टीवी जैसे चैनल प्रमुख हैं।
भोजपुरी को इंटरनेट फ्रेंडली बनाने का भी प्रयास किया जा रहा है। बीएचयू के भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान व भोजपुरी अध्ययन केंद्र मिलकर इंटरनेट फ्रेंडली बनाने मे जुटे हैं।
खबरिया पत्रकारों मे भी बड़े नाम हैं रवीश कुमार, पुण्य प्रसून, उर्मिलेश जैसे पत्रकार भी भोजपुरी भाषी हैं जो आज हिन्दी पत्रकारिता की रीढ़ बन चुके हैं। आज भोजपुरी सिनेमा करीब 20,000 करोड़ रुपये की हो गई है| टीवी के 52 चैनल सिर्फ़ भोजपुरी के ही हैं| इस आधार पर हम कह सकते हैं कि भोजपुरी के बिना हिन्दुस्तानी बोली की कल्पना ही नहीं की जा सकती है|
कुछ अफ़सोस भी है
जितना ज्यादा विकास भोजपुरी भाषा का हुआ है उतना विकास किसी भाषा का नहीं हुआ है| बहुत सारी हिंदी फिल्मो में भोजपुरी भाषा या भोजपुरी भाषा से जुड़े किसी पात्र को जगह दी जा रही है ताकि फिल्म को मजेदार बनाया जा सके| टेलीविजन जगत में भी भोजपुरी का बोलबाला हो गया है|
चाहे वो निमकी मुखिया का कैरक्टर हो या भाभीजी घर पर है की अंगूरी भाभी का| सभी जगह इनकी चुलबुली और मीठी भोजपुरी भाषा को पसंद किया जा रहा है| लेकिन बहुत सारे लोग फिल्मो में भोजपुरी बोलने वालो को अनपढ़, गवार या गुंडा दिखाते है| जबकि ऐसा नहीं है| बिहार के बाहर अगर किसी से भोजपुरी में बोल दिया जाए तो वो ऐसे देखने लगता है जैसे हम किसी दुसरे ग्रह से आये है|
भोजपुरी भाषा की सबसे बड़ी दुश्मन भोजपुरी इंडस्ट्री बन चुकी है| आज कल भोजपुरी गानों के नाम पर केवल फूहड़ता परोसी जा रही है| और इनकी कमाई भी काफी हो रही है| इसे जल्द से जल्द रोकना होगा और लोगों को ऐसी अश्लीलता का बहिष्कार करना चाहिए|