सरकार यही चाहती है कि आपके बच्चे स्लिपर बोगी में फ़ाइन देकर दिल्ली निकल जाए नौकरी करने

सरकारें यही चाहती हैं कि कॉलेज में क्लासेज बंद रहें, आपके बच्चे गेस पेपर पढ़के परीक्षा दें और प्रोफेसर पैरवी देख के नम्बर।

डिग्री लेने के बाद कुछ दिन आरएस अग्रवाल, प्रतियोगिता दर्पण रगड़ के बैंक-एसएससी-रेलवे की तैयारी हो और फिर हार के आपके बच्चे बिहार संपर्क क्रांति के स्लीपर बोगी में फाइन देके दिल्ली निकल जाएं नौकरी करने।

वो चाहते ही नहीं, विश्वविद्यालय में पढ़ाई हो और लोग पढ़-लिख के योग्य बनें, नहीं तो उनकी भ्रष्ट, जाति-धर्म और नकारापन से भरी राजनीति पे सवाल होंगें और उनका अंत हो जाएगा।

लेकिन आप क्या चाहते हैं?

आप और हम भी यही चाहते हैं। हमको कोई मतलब नहीं है, कोई फर्क नहीं पड़ता और न ही असर होता है इन सब बातों का। हम मुर्दा हैं क्योंकि हमें गुस्सा नहीं आता और ना ही आती है शर्म।

गुस्सा इस बात का कि ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी के आरके कॉलेज मधुबनी के 127 प्रोफेसर के पद में 97 खाली हैं। गुस्सा इस बात का कि कुल 30 प्रोफेसर्स में हिंदी, जियोग्राफी, उर्दू, हिस्ट्री का कोई टीचर नहीं है, सिर्फ 1-1 प्रोफेसर के बदौलत बॉटनी, जूलॉजी और मैथ्स के डिपार्टमेंट चल रहे हैं। 15000 बच्चों पर 30 शिक्षक यानी प्रति 500 छात्रों पर 1!

ऐसे कैसे क्लास चलेगा और क्या पढ़ेंगे बच्चे? क्या ये गुस्सा और शर्म आने के लिए काफी नहीं?

हमने अपने बच्चों के भविष्य, शिक्षा और गैरत से आंख मूंद लिया है तभी मारवाड़ी कॉलेज दरभंगा के कुल 57 प्रोफेसर्स पदों में केवल 14 ही अवेलेबल हैं और 43 वैकेंट है।

हम नकारा हैं इसलिए डीबी कॉलेज जयनगर के 53 पदों में सिर्फ 4 अवेलेबल हैं और 49 खाली। हमने कभी किसी सरकार, नेता, जनप्रतिनिधी से नहीं पूछा की क्यों एलएनजे कॉलेज झंझारपुर के 37 पदों में सिर्फ 6 पदों पर भर्ती है और बाकी 31 रिक्त हैं।

केएस कॉलेज, लहेरियासराय (कुल पद 63, प्रोफेसर 18, खाली सीट 45), जेएन कॉलेज मधुबनी (कुल पद 43, प्रोफेसर्स 8, खाली 35)। आप स्वयं सोचिए कि क्या क्लास चलती होगी वहाँ और बच्चे क्या पढ़ते होंगें?

क्या आपको-हमको-हमसब को कुएं में डूब के मर नहीं जाना चाहिए कि लगभग 4 लाख छात्रों वाले विश्वविद्यालय के 1918 शैक्षणिक पदों में सिर्फ 488 भरे हैं और 1430 (लगभग 60%) खाली हैं?

कैसे काम होता है यहां और क्या होता है यदि 41 कॉलेजों में लगभग 30 में स्थायी प्रिंसिपल नहीं है और नॉन-टीचिंग में 1099 पद खाली हैं?

सोचिए, पूछिए, बोलिए, लिखीए, गरियाईए, धकियाईए जो कर सकते हैं कीजिए पर प्लीज चुप न रहिए। ऐसे न बैठिए, ये आपके जिंदा होने और आपके बच्चों के भविष्य के अस्तित्व का सवाल है।

 

लेखक – आदित्य झा

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