भिखारी शब्द सुनते ही हमारे सामने एक छवि उभरती है। आधुनिक युग में ऐसे लोग बहुत कम होते हैं जो मेहनत के बल पर कुछ ऐसा कर जाते हैं जिससे लोग सोचने पर मजबूर हो जाते हैं। उन्होंने भोजपुरी संस्कृति को एक नई पहचान दी। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर जमकर प्रहार किया। बिदेशिया, गबर- घिचोर, बेटी- बियोग, बेटी बेंचवा आदि नाटकों में गजब की सामाजिक चेतना दिखती है। वे इन नाटकों से मनोरंजन के साथ सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने का प्रयास करते थे। जिनकी समाज में आज भी जरूरत है। भिखारी ने बालविवाह, काम के लिए पलायन, नशाखोरी जैसी सामाजिक कुरितियों पर उस समय प्रहार किया, जब कोई बोलने को तैयार नहीं था।
देश-दुनिया में भोजपुरी भाषा को एक अलग पहचान दिलाने वाले भिखारी ठाकुर की आज 130वीं जयंती है। यह अलग बात है की भोजपुरी के सेक्सपियर भिखारी ठाकुर के अथक प्रयास से पुरे विश्व में प्रसिद्ध भोजपुरी भाषा को आज अपने देश में ही पूर्ण सम्मान नही मिला है। सात समंदर पार तक बोली जाने वाली इस भाषा को अब तक सातवीं अनुसूची में शामिल नही किया गया।
भिखारी ठाकुर अपने नाटकों के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ भी जमकर प्रहार किया।
दयनीय थी आर्थिक स्थिति
छपरा के कुतुबपुर दियरा में 18 दिसंबर 1887 को एक निम्न वर्गीय परिवार में भिखारी ठाकुर का जन्म हुआ। भिखारी ठाकुर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनका संपूर्ण जीवन संघर्ष में बीता। जब उनका जन्म हुआ उस समय पढ़ने और लड़ने को हक सभी को नहीं था। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों को नजदीक से समझा। उसके बाद अपने नाटकों के माध्यम से उस पर प्रहार किया। उनका बचपन गायों की चरवाही में बीता। माता- पिता उनसे पुश्तैनी धंधा नाई का काम करवाना चाहते थे। वे कमाने के लिए असम गए। वहां जाने के लिए भी उनके पैसे नहीं थे। गांव के बाबू राम एकबाल नारायण से कर्ज लेकर भिखारी असम गए। वहां इनके रिश्तेदार समेत अन्य ग्रामीण रहते थे। वे वहां से मनीआर्डर भेजकर कर्ज चुकाए।
पंडित से सीखा चिट्ठी लिखना – पढ़ना
असम में एक पंडित थे। वे रात में कथा कहते थे। जिसे भिखारी ठाकुर रुचि लेकर सुनते थे। उसी पंडित ने चिट्ठी लिखने और पढ़ने के लिए सिखाया। वे रामायण के भी कुछ- कुछ बातें जानने लगे। असम से घर लौट गए और कुछ दिन बाद कोलकाता चले गए। वहां भी पुश्तैनी कार्य के बाद फिर गांव लौटे।
रामलीला का पड़ा प्रभाव
भिखारी के पड़ोसी गांव महाजी में रामलीला मंडली आई थी। रात में जब रामलीला होता था तो गांव के लोगों के साथ भिखारी भी जाते थे। उन पर रामलीला का गहरा प्रभाव पड़ा। वे तुकबंदी करने लगे। रामलीला मंडली के जाने के बाद गांव में रामलीला करने लगे। जिसमें नाच भी होने लगा। भिखारी इसमें प्रमुख थे। वे शादी- विवाह में भी नाच करने लगे। इसके बाद अपना काम छूट गया।
उनकी प्रमुख कृतियां एक नजर में
सामाजिक कुरीतियों पर नाटकों की रचना की। समाज की समस्याओं पर अपनी प्रस्तुतियों से प्रहार किया। प्रमुख नाटकों में विदेसिया, बेटी बेचवा, गबर घिचोड़, बहरा- बहार, भाई विरोध, गंगा स्नान, विधवा विलाप, पुत्र वधु, ननद भौजाई, राधे श्याम बहार, पिया निसइल आदि है। जब भिखारी ठाकुर मंच पर आते थे तो लोग सिक्के फेंक कर उनका स्वागत करते थे। 10 जुलाई 1971 को भिखारी ठाकुर सदा के लिए अमर हो गए।