जानिए आस्था के महापर्व छठ करने के पौराणिक और वैज्ञानिक महत्व एवं फायदे

दिवाली की सफाई घर तक, छठ की सफाई सड़क तक| जी हाँ! छठी मईया के नाम से सफाई शुरू हो गयी है| घाट तैयार किये जा रहे हैं| सड़कों को यथासंभव साफ़ रखने की कोशिश हो रही है| बाजार में रौनक तो है मगर उससे अधिक सादगी व्याप्त है| शायद यही वो एकलौता त्यौहार है जब शहर और गाँव के बाजार में खास अंतर देखने को नहीं मिलता| कद्दू खरीदे जा रहे हैं| फल के लिए पहले ही आर्डर दिए जा रहे हैं| सूप और बाँस का दऊरा खरीदा जा रहा है| घरों की रौनक तो कहीं अधिक बढ़ गयी है| नाते-रिश्तेदार पहुँच रहे हैं| महिलाएँ छठ गीत गाने में मग्न हैं और बच्चों को बार-बार ये सिखलाया जा रहा है पवित्रता कैसे बरतनी है|


छठ महापर्व में शुद्धता न सिर्फ भौतिक होता है बल्कि मानसिक तौर पर भी उतना ही शुद्ध होना जरूरी है| छठ के नाम पर कुछ भी अपवित्र नहीं होना चाहिए, यही तो खास बात है इस पर्व की|
वैसे कई कारण हैं जो इस पर्व को महापर्व बनाते हैं| पौराणिक और धार्मिक महत्व के साथ इसका वैज्ञानिक और सामाजिक महत्व भी है| कैसे?

– सबसे पहले बात शुद्धता की| इतनी साफ़-सफाई और पवित्र वातावरण से कीटाणुओं का नाश होता है| मानसिक तौर पर भी शांति मिलती है| और ये कहने की जरूरत नहीं कि निरोग शरीर के लिए साफ़ माहौल कितना मायने रखता है|
– छठ में गाये जाने वाले पारम्परिक गीत श्रद्धा से तो भरते ही हैं, दिमाग को शांत भी करते हैं|
– पौराणिक महत्व के अनुसार उगते और डूबते सूर्य के साथ सूर्य की दो पत्नियाँ उषा और प्रत्युषा की अराधना की जाती है| इसका वैज्ञानिक पहलु यह भी है कि डूबते और उगते सूर्य की रौशनी चर्मरोग से निजात दिलाने में मददगार होते हैं|
– यह एकलौता ऐसा पर्व है जो धनी-अमीर, स्त्री-पुरुष यहाँ तक कि धर्म से भी मुक्त है| यह मुख्यतः मनुष्य और प्रकृति के संबंधों पर आधारित पर्व है|
– बाजारवाद के इस युग में भी आज भी छठ पर्व बाजारवाद से अछूता है| इसमें उपयोग में लाये जाने वाले सामान की शुद्धता ही मायने रखती है, उसका दाम और साज-सज्जा नहीं|
– सारी सामग्री प्रकृति के निकट है, जैसे फल, बाँस से बने सूप और दऊरा, गाय का दूध, मिट्टी का दीप, कद्दू या अरवा चावल|
– यह उन चंद पर्वों में से एक है जो समाज के हर तबके का समान तौर पर सम्मान करता है| हर व्रती को शुद्ध मन से बिना सिले हुए नये कपड़े पहनने होते हैं, चाहे वो गरीब हो या अमीर| सबको ऐश्वर्य का त्याग कर सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करना होता है| गद्दे की जगह पूजा स्थल पर जमीन पर कम्बल बिछा कर ही सोना जरूरी माना जाता है|
– इस पर्व को मनाने के लिए किसी ब्राह्मण या पुरोहित की नहीं बल्कि अंतरात्मा की शुद्धि और श्रद्धा की जरूरत होती है|

– यह सबसे पुरानेत्योहारों में आता है, तथा इसको मनाने के लिए किसी धर्मग्रन्थ की भी आवश्यकता नहीं पड़ती|

– इसमें किसी मूर्ति या पंडाल की आवश्यकता भी नहीं होती| यह ऐसा त्यौहार है जब सृष्टि के साक्षात् प्रकट देव की पूजा होती है|
– आस्था का माहौल चरम पर होता है जब जो जितना सक्षम हो, व्रती की सहायता करता है|

इन बिन्दुओ के अलावा भी कई ऐसी बातें हैं जो इस पर्व की महत्ता साबित करती हैं| पहले बिहार के लोकपर्व कहे जाने वाले छठ व्रत का प्रचलन अब देश-विदेश में भी हो चला है| हिन्दू धर्म की दीवार लांघ, हर धर्म के लोगों की आस्था सूर्य के प्रति बढ़ती जा रही है|


क्यों न हो ऐसा पर्व महापर्व, जिसकी पहुँच आमजन से लेकर प्रकृति के देव तक है! क्यों न बन जाये ये पर्व पावन जब इसे मनाने वाला हर मन पवित्र और सादगी से भरा हो! आज भी अगर किसी व्रती को सामग्री की जरूरत पड़े तो निःस्वार्थ भाव से लोग सामग्री उपलब्ध कराते हैं| आसपास के लोगों का मिलने वाला निःस्वार्थ सहयोग और उत्साह ही इसे लोक आस्था का महापर्व बनाने के लिए काफी है| सृष्टि के सम्पोषक देव, अर्थात् आदित देव की आराधना करता है यह पर्व, जिनका रूप प्रत्यक्षतः दुनिया के सामने है|

जय छठी मईया!

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