‘स्टीरियोटाइप’ एक ऐसा शब्द है जो अब खुद के ही विरोध में इस्तेमाल हो रहा है। सोशल मीडिया का यह दौर किसी भी खास एक्टिविटी के पीछे चल पड़ता है। सही मायने में बात करें तो ये पब्लिसिटी पाने का एक माध्यम बन चुका है।
लाइक्स और कॉमेंट्स के लिए वही बातें कही जा रहीं हैं जो कही जा चुकी हैं और कई बार तो कुछ नया करने की ज़िद में लोगों को एहसास नहीं रहता, वो किस तरह का कंटेंट सबके सामने पेश कर रहे हैं।
पिछले पाँच सालों से बिहार की छवि सुधारने की कोशिशें अपना बिहार की तरफ से होती आयी हैं। इस कोशिश को कई प्रबुद्ध जनों का साथ और विश्वास हासिल हुआ है। कोशिश रंग लाती हुई दिखती भी है कहीं न कहीं। अब बिहार या बिहारियों को लेकर वैसे रिएक्शन्स नहीं आते जैसे कुछ वर्ष पहले तक आया करते थे।
बिहार की एक स्टीरियोटाइप्ड छवि थी जिसमें बिहारियत का मतलब अशुद्ध हिंदी, कमजोर इंग्लिश, गालियों की बारिश, गमछा और मजदूरी इत्यादि शामिल थे। ऐसी छवि बनाने में एक बड़ा हाथ था सिनेमा का। ऐसा नहीं था कि ये छवि बिल्कुल ही गलत थी या कोई बिहारी ऐसा होता ही नहीं, पर ये पूरा सच भी नहीं था।
हरेक बिहारी को ये चीजें परिलक्षित नहीं करती हैं, ठीक उसी तरह जैसे हरेक बिहारी आईएएस निकालने के काबिल नहीं होता या हर बिहारी को एक जैसा गणितीय ज्ञान नहीं होता।
धीरे-धीरे माहौल बदला और आमजन से लेकर सिनेमा तक में ये तस्वीर सामान्य होती दिखी, यानी बिहार को इसकी पुरानी छवि से अलग पृष्टभूमि पर भी दिखाया जाने लगा, समझा जाने लगा। पर अब कुछ लोग अलग तरह से उसी घिस चुकी छवि को सामने रखकर ‘बिहारी होने पर गर्व है’ वाला टैगलाइन इस्तेमाल करने लगे हैं। ये लोग किसी भी शब्द में ‘वा’ लगा देने को बिहारियत समझते हैं, जानते हुए भी गलत तरीके से इंग्लिश बोलने को बिहारियत समझते हैं, बेबात फॉर्मल पर भी गमछा लेने को बिहारियत समझते हैं, आईएएस या अन्य टॉपर्स की सूची सामने रख देने को बिहारियत समझते हैं और भोजपुरी गालियों का इस्तेमाल करने को बिहारियत समझते हैं।
भाईसाहब! ये बिहारियत नहीं है। बिहारी होना उतना ही सामान्य है जितना पंजाबी, मराठी या बंगाली होना। यहाँ के टोन में बात करना आदत हो सकती है, पर अगर सही ज्ञान हो तो सही ही बोलने में हर्ज कैसा !
सही है कि अपनी पहचान बताने में शर्म नहीं आनी चाहिए लेकिन सिर्फ अपनी पहचान बताने के लिए गलत तरीके का प्रयोग करना कहाँ तक जायज है! इस तरह तो आप अपने ही समाज की बेइज्जती का इंतेजाम कर रहे हैं।
हाल ही में कई ऐसे वीडिओज़ सामने आए हैं जिसमें बिहारियत को कुछ इसीप्रकार से परिभाषित करने की कोशिश हुई है। अजीब बात ये है कि इसे शेयर भी बहुत किया जा रहा है। आप सच में बिहार की छवि का भला चाहते हैं तो ऐसे वीडियो या कला के किसी रूप को नजरअंदाज करें।
कई कलाकारों, बुद्धिमानों की कड़ी मेहनत से बिहार अपनी नई पहचान बनाने की ओर अग्रसर हुआ है। अगर आप भी इसमें अपना सहयोग चाहते हैं तो निःसंकोच प्रयत्न करें, मगर सकारात्मक तरीके से।
स्टीरियोटाइप छवि से निकलने के लिए नया स्टीरियोटाइप न सेट करें। कला के प्रदर्शन के लिए बिहार को चुनिए, इसकी पृष्टभूमि का सही से प्रयोग कीजिये, यहाँ से सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दे उठाइये, बिहार के विकास में, इसकी पहचान में, अपना नाम भी अंकित कीजिये। सिर्फ लाइक्स पाने के लिए स्टीरियोटाइप्ड होने की आवश्यकता नहीं है।