झिझिया!! सांझ का पहर! मंदिर से निकल कर सोलिंग से घर घर गुजरती हुई लड़कियों का झुण्ड, “झिझिया खेले आईनी”… गाती हुई माथे पर बेरुआ के बने दौउरे में रखे हजारो छिद्र किये घड़े में और एक उपर अँधेरे में टिमटिमाता हुआ बेचारा भक भक जलते दिए के साथ जब झुण्ड सोनुआ के घर पहुंचा| भैरवो के रूप में लड़को का सेना भी आंगन में घुस कर घड़े में छिद्रों की संख्या को गिनने लगा “एक ,दो ,तीन ,चार .... | अब तो लडकीयों की सेना में हड़कंप मच गया –
“रे !!!जलदी जल्दी घयिला नचाओ !!न ताs ई निपुत्राs सनs पूरा छेद गिन लिहे सनs ताs हमनी के घैयला फूट जाईs !!रे भाग कोरियाs सनs !!भाग इहवा से!!लड़की सब के झुण्ड में आवे में तोहनी के लाज नहीं लगता है ?” ..होs चची जल्दी पैसा दs चाहे अनाजे दे दs औरी हईs कोरियाs सोनुआ के मनैबू कि न ?”उहुहं
लेकिन कमीने लड़के कहाँ मानने वाले थे |चाची भी रसोईया से दनदनाती हुई खट से बाहर निकली -“तोहनी के अभी पूरा गीत गईले न औरी पैसा कैसे दी?, “चाची ने भी प्रश्नचिन्ह ठोक दी| अचानक सोनुआ ने लडकियों के सेना के आगे अपनी फ़ौज खड़ी कर के रौब से कमर पर दोनों हाथो को रखते हुए बोला -“जेतना पईसा मिलेगा उसमे से आधा हिस्सा हमलोग को भी चाहिए नहीं तो घईला का छेद गिन देंगे बस फूट जाएगा” ,
अब तो लड़कियों की फ़ौज डर से भागने लगी |फिर से अशोकवा ने सेना को आगे रोक लिया -“मेला में कथीs खरीदोगी इस हेतना पईसा का?”
“हूँ !!पाहिले दुर्गा मईया के लिए परसादी चढ़ा देंगे उसके बाद जो बचेगा उसमे से अपना हिस्सा से ईगो मेला में फेयर & लवली खरीदेंगे “,सोनिया बोल के हंसने लगी ….
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