फिल्म अन्ना, ओह माय गॉड, सत्ता और भी कई मूवीज में अपने अभिनय से कैरेक्टर में जान डालने वाले अभिनेता गोविन्द नामदेव अपने करियर और उम्र के इस पड़ाव में भी चुनौतीपूर्ण किरदारों को प्राथमिकता देना पसंद करते हैं| अब जल्द ही परदे पर गोविन्द फिल्म ‘दशहरा’ में लालू यादव का किरदार निभाते हुए नजर आएंगे| और गोविंद इस किरदार को अपने करियर का सबसे चुनौतीपूर्ण भूमिका समझते है|
1990 के दशक में कुटिलता और धूर्तता का पर्याय बन चुके गोविंद फिल्म ‘दशहरा’ में लालू यादव के किरदार को लेकर खासे उत्साहित हैं| यह फिल्म बिहार की पृष्ठभूमि पर आधारित है| फिल्म में लालू का किरदार निभाने के बारे में पूछे जाने पर वह कहते हैं, “मैं इस फिल्म में एक बार फिर नकारात्मक किरदार में हूं| बिहार की परिदृश्य पर बनी इस फिल्म में मेरा किरदार लालू यादव से मिलता-जुलता है| यह कहना ठीक नहीं होगा कि यह किरदार पूरी तरह से लालू यादव से जुड़ा हुआ है लेकिन लालू और इस किरदार में काफी समानताएं हैं|”
उन्होंने कहा, “फिल्म में ‘चारा’ भी है, यानी इस तरह की परिस्थतियां हैं कि लोग अनुमान लगा लेंगे कि यह ‘लालू’ है| किरदार को सनसनीखेज रखने के लिए ऐसा किया गया है| वैसे, इस तरह का किरदार निभाने का मौका हमेशा नहीं मिलता|”
बता दें कि गोविंद नामदेव की अगले चार महीनों यानी सितंबर से दिसंबर के दौरान पांच फिल्में रिलीज हो रही हैं। जिनमें ‘जेडी’, ‘दशहरा’, ‘शादी में जरूर आना’, ‘कमिंग बैक डार्लिग’ और ‘झलकी’ हैं। इन सभी फिल्मों में गोविंद के अलग-अलग किरदार हैं, जिसके लिए वो फेमस हैं।
गोविंद पिछले 25 वर्षो से नकारात्मक भूमिकाएं करते आ रहे हैं
गोविंद ने कहा, “फिल्म में ‘चारा’ भी है, यानी इस तरह की परिस्थतियां हैं कि लोग अनुमान लगा लेंगे कि यह ‘लालू’ है| किरदार को सनसनीखेज रखने के लिए ऐसा किया गया है| वैसे, इस तरह का किरदार निभाने का मौका हमेशा नहीं मिलता|” गोविंद पिछले 25 वर्षो से नकारात्मक भूमिकाएं करते आ रहे हैं| यह पूछने पर कि वह इस तरह के किरदारों में खुद को कितना फिट पाते हैं| इसके जवाब में गोविंद कहते हैं, “हिंदी सिनेमा में तीन ही किरदार मुख्य होते हैं, नायक, नायिका और खलनायक बाकी सब तो फिलर्स हैं| नायक, नायिका का किरदार नहीं कर सकता इसलिए खलनायक का किरदार पसंद हूं, क्योंकि इसमें करने को बहुत कुछ है| मैं वहीं फिल्में करता हूं, जिसमें मैं अपने किरदार में जान डाल सकू| बड़ी फिल्मों में काम करने के लिए छोटी भूमिकाएं करना मुझे रास नहीं आता|”
समय के साथ सिनेमा में बदलाव आया है| एक्टिंग के तरीकों से लेकर फिल्मों की कहानियों में बदलाव देखने को मिला है| ऐसे में हिंदी सिनेमा में नकारात्मक किरदार कितना बदले हैं? गोविंद कहते हैं, “बहुत बदलाव आया है| वह दौर खत्म हो गया है, जब खलनायक का अपना स्टाइल होता था, जैसे शोले का गब्बर हो या फिर मिस्टर इंडिया का मोगैंबो| अब खलनायक आम आदमी जैसा ही है| उसका जीवन साधारण है, फिर भी वह तमाम गलत काम करता है तो यह कहना गलत नहीं होगा कि अब स्टारडम वाली खलनायकी खत्म हो गई है|”
उन्होंने बात आगे बढ़ाई, “फिल्मों का मिजाज भी तो बदला है| पहले निर्देशक एवं निर्माता छोटे शहरों में फिल्में शूट करने से डरते थे| अब तो हर दूसरी फिल्म छोटे शहरों पर बेस्ड है, फिर चाहे वह ‘अनारकली ऑफ आरा’ हो या ‘बरेली की बर्फी’| ऐसा ही बदलाव कलाकारों में देखने को मिल रहा है| आलिया भट्ट, वरुण धवन, राजकुमार राव बेहतरीन काम कर रहे हैं| ये लोग नेचुरल एक्टिंग करते हैं, इसलिए कम उम्र में इतने बड़े स्टार बन गए हैं|”