100 साल पहले तक तिरहुत इलाके में शायद कोई ऐसी बसावट हो जहां धार का पानी न पहुंचता हो। कौन सा ऐसा गांव था जिसके बगल से कोई न कोई धार न गुजरती थी।
आजादी के बाद नहर शब्द का प्रचलन बढा। नदी पर तटबंध बनें| तटबंध बनने से धार का नदी से संपर्क तो तोड़ डाला गया, लेकिन नहर का निर्माण नहीं हुआ। धार और नहर एक ही प्रकृति के थे, लेकिन नाम में भिन्नता का दंश धार को झेलना पड़ा| धार को भी लोग नदी मान बैठे और उसकी देखभाल प्रकृति पर छोड दिया। आज नहर की बात बाढ से निपटने के लिए हो रही है, लेकिन धार का निर्माण अकाल से निपटने के लिए किया गया था। बसावटों तक पानी की पहुंच धार के माध्यम से होती थी। 17वीं शताब्दी के अकाल के बाद जल संचय का जो तरीका अपनाया गया, वो आज भी मिथिला की संस्कृति मे रचा बसा हुआ है।
जिस प्रकार लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान, जय किसान का नारा देकर भारत को समृद्ध और सुरक्षित किया, उसी प्रकार तिरहुत के महान राजा नरेंद्र सिंह ने पग पग पोखर माछ मखान का नारा बुलंद कर तिरहुत को अकाल के शाप से मुक्त किया। फलड वाटर हार्वेटिग का सूत्र दुनिया को देनेवाले राजा नरेंद्र सिंह ने अपने कार्यकाल में करीब 3 लाख तालाबों का निर्माण कराया। उन्होंने नदियों को धार से और धार को तालाब से जोड़ा। उन्होंने पानी को खेतों के आसपास जमा करने का काम किया। पानी को न केवल रास्ता मिला, बल्कि साल भर का ठिकाना भी मिला|
कालांतर में उनका ये नारा तो प्रचलित रहा, लेकिन नदी से तालाब तक का रास्ता् बंद हो गया। नदी को अगवा कर लिया गया, धार को अनाथ छोड दिया गया और तालाब को मार डाला गया।
परिणाम आपके सामने है, नदी उफन रही है, धार तालाब बन चुके हैं और तालाब की मौत हो चुकी है| पानी आपके घरों में, शहरों में, सडकों पर है..। आज हमारे ही सूत्र लोग हमें ही समझा रहे हैं|
लेखक – कुमुद सिंह, संपादक, इस्माद