आरजेडी और जेडीयू में झगड़ा तो काफी दिनों से चल रहा था, लेकिन गुरुवार को कुछ ही घंटों के अंदर बिहार की पूरी की पूरी राजनीति की चाल ही बदल गई. नीतीश कुमार ने जिस तरह लालू यादव का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थामा है, उसे उनकी घर वापसी कहा जा रहा है. लेकिन इस घर वापसी के असली हीरो बिहार में बीजेपी के बड़े नेता सुशील कुमार मोदी हैं. सुशील मोदी ने लालू परिवार पर आरोपों की बौछार करके महागठबंधन को नीतीश के लिए बोझ बना डाला.
विधानसभा चुनावों के बाद उठने लगे थे सुशील मोदी पर सवाल
बिहार में 2015 में हुए विधानसभा चुनावों में मिली हार से अगर राजनीतिक तौर पर किसी नेता को सबसे बड़ी हानि पहुंची तो वह थी केवल सुशील कुमार मोदी को. पार्टी ने पूरा जोर लगाया. खुद पार्टी प्रमुख हर राज्य की तरह बिहार में डेरा डाले बैठे रहे और पूरा चुनाव वहीं पर नजदीक से देखा. खुद पीएम मोदी ने कई रैली की. इसके बावजूद मोदी लहर के होते हुए भी बीजेपी तीसरे नंबर की पार्टी बन कर उभरी और राज्य का महागठबंधन हार गया. बीजेपी ने इस पर बहुत मंथन किया और कुछ लोगों ने यह भी कहा कि इस हार की वजहों में एक राज्य के बीजेपी नेताओं का विपक्षी नेता और खासकर नीतीश कुमार पर कम आक्रामक होना भी था. बीजेपी के कई वरिष्ठ नेताओं का नीतीश कुमार से अच्छा संबंध रहा है और ऐसे में वह नीतीश कुमार के सीधे निशाने पर नहीं ले पाए.
सुशील मोदी के सामने आ गई थी करियर बचाने की चुनौती
पार्टी ने हार के बाद भी हार नहीं मानी. पार्टी ने राज्य की इकाई को हार के बाद भी जीत के लिए प्रयास करने का निर्देश दिया. पार्टी यह नहीं चाह रही थी कि राज्य इकाई के बीजेपी अगले पांच साल तक खाली बैठें और अगले चुनाव का इंतजार करें. माना जा रहा है कि ऐसे सब माहौल में सुशील कुमार मोदी जो राज्य के कद्दावर बीजेपी नेताओं में शुमार रहे हैं, बीजेपी के ओर से राज्य में मंत्री पद से लेकर उपमुख्यमंत्री पद पर रह चुके हैं, के सामने यह चुनौती आ गई कि कैसे अपना राजनीतिक करियर बचाया जाए.
हिला दिया महागठबंधन का नीव
पिछले 90 दिनों में एक के बाद एक ताबड़तोड़ प्रेस कांफ्रेंस करके बिहार बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी ने लालू परिवार के खिलाफ जिस तरह मोर्चा खोला, उसकी परिणति बिहार में महागठबंधन के टूटने से हुई. इस पृष्ठभूमि में लालू परिवार पर सुशील मोदी के पांच प्रमुख आरोपों पर एक नजर :
1. सुशील मोदी ने लालू और उनके परिवार के पास करीब एक हजार करोड़ रुपये की ‘बेनामी संपत्ति’ होने का दावा किया था. इस पर लालू यादव ने सुशील मोदी पर मानहानि का मुकदमा करने की धमकी भी दी.
2. तत्कालीन उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर आरोप लगाया कि 26 साल में उम्र में उनकी 26 संपत्तियां हैं. तेजस्वी यादव के नाम से 13 जमीनों की रजिस्ट्री है. 1993 में जब तेजस्वी साढ़े तीन साल के थे तब ही उनके नाम दो जमीन की रजिस्ट्री हो गई थी. उन्होंने लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप पर अवैध ढंग से पेट्रोल पंप हासिल करने का मसला भी उठाया. इसके चलते उस पेट्रोल पंप का आवंटन रद किया गया.
3. उन्होंने पटना में बन रहे लालू प्रसाद के मॉल के मालिकाना हक समेत उसके निर्माण कार्य से लेकर मिट्टी पहुंचाए जाने का मुद्दा उठाया. बाद में बिहार सरकार ने हाईकोर्ट में हलफनामा देकर स्वीकार किया कि पटना में लालू परिवार का करोड़ों रुपये की लागत से बनने वाला मॉल पर्यावरण कानून का उल्लंघन कर बन रहा था. इसकी मिट्टी अवैध तरीके से चिड़ियाघर को बेची गई.
4. बेनामी संपत्ति मामले और मनी लांड्रिंग केस में लालू प्रसाद यादव की बेटी और राज्यसभा सांसद मीसा भारती और उनके पति के दिल्ली स्थित तीन फार्महाउसों और उनसे संबंधित एक फर्म पर प्रवर्तन निदेशालय ने छापे मारे. इस मामले में सीबीआई ने लालू प्रसाद एवं उनके परिवार के कुछ सदस्यों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की और पूछताछ भी की. लालू प्रसाद के 21 ठिकानों पर प्रवर्तन निदेशालय ने छापे मारे.
5. सुशील कुमार मोदी और लालू प्रसाद यादव का पुराना नाता रहा है. दोनों ही नेताओं ने छात्र राजनीति से सियासी सफर शुरू किया. 1973 में पटना यूनिवर्सिटी के छात्र संघ चुनाव में सुशील मोदी जनरल सेक्रेट्री चुने गए. उस दौरान छात्र संघ अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव बने. 1996 में उन्होंने पटना हाई कोर्ट में लालू प्रसाद के खिलाफ जनहित याचिका दायर की. बाद में यह मामला चारा घोटाले के रूप में जाना गया.