देश के सरकारी विद्यालयों में शिक्षा व्यवस्था सुधारने के लिए अक्सर ये माँग उठती रही है कि तमाम बड़े-छोटे सरकारी कर्मचारी व नेतागण अपने बच्चों की प्रारंभिक पढ़ाई इन्हीं सरकारी विद्यालयों में कराएं। इससे सरकारी विद्यालयों पर आमजन का विश्वास पुनः कायम होगा और वहीं विद्यालयों से आती अनियमितता की खबरों में भी कमी आएगी।
कुछ इसी तरह की सोच की अगुआई कर रहे हैं बिहार के समस्तीपुर जिले से आने वाले आईएएस अधिकारी तथा वर्तमान में छत्तीसगढ़ के बलरामपुर के कलक्टर अवनीश शरण। इन्होंने अपनी 5 वर्षीय बेटी, वेदिका शरण, की शुरुआती पढ़ाई आंगनबाड़ी से कराई और अब एक जिम्मेदार अभिभावक का परिचय देते हुए दोनों पति-पत्नी ने बच्ची का नामांकन सरकारी विद्यालय में कराकर सरकारी व्यवस्था पर भरोसा कायम किया है।
गौरतलब हो कि अवनीश शरण जी की कर्तव्यनिष्ठता और ईमानदारी के लिए न सिर्फ छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह, वरन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सराहना कर चुके हैं, सम्मानित कर चुके हैं। अवनीश शरण ऐसे अधिकारियों में से हैं जो अपने कार्य के जरिये जनता से जुड़े हुए हैं और उनके बीच रहकर ही काम करना पसंद करते हैं।
नक्सल प्रभावित क्षेत्र में कार्यरत अवनीश शरण बिना किसी तामझाम के खुद बाइक चलाकर गश्ती पर निकलते हैं, जमीन पर चटाई बिछाकर आमलोगों की परेशानियां सुनते हैं और अपनी सेवाभावना दिखाने से किसी परिस्थिति में पीछे नहीं हटते। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने कार्यक्षेत्र जिले के अंतर्गत आने वाले सभी आंगनबाड़ी केंद्रों को आदर्श बनाने का प्रण भी लिया है। न सिर्फ नेता या आमजन, बल्कि छत्तीसगढ़ की मीडिया भी इनके कार्यशैली को उजागर करने से नहीं मुकरती।
अवनीश पटना निवासी और पूर्व सीबीआई डायरेक्टर रंजीत सिन्हा के दामाद हैं। ऐसे में जहाँ अमीरों और अफसरों के बीच बच्चों को महँगी से महँगी शिक्षा देने की धारणा बन चुकी हो, वहीं ऐसे अफसरों की सादगी का सामने आना वाकई मिशाल है। युवाओं के बीच यह कहानी बदलाव की निशानी के तौर पर याद रखी जानी चाहिए। इनसे प्रेरित होकर देश के तमाम छोटे-बड़े अफसरशाहों को जनता का विश्वास सरकारी व्यवस्था पर कायम करने की मुहिम में साथ आना होगा। ये छोटे-छोटे प्रयास ही बड़े बदलाव के गवाह बनते हैं।