बिहार बोर्ड का रिजल्ट आना एक बड़ी उपलब्धि है, किसी भी बोर्ड की तरह ये गुमनाम नहीं हैं

बिहार स्कूल एग्जामिनेशन बोर्ड, अर्थात बिहार बोर्ड का रिजल्ट आ गया है। ये एक बड़ी उपलब्धि है इस बोर्ड की कि किसी भी बोर्ड की तरह ये गुमनाम नहीं है। हर साल, जैसे एक बार होली आती है, एक बार दशहरा आता है और एक बार ईद आता है, उसी तरह साल में एक बार बिहार बोर्ड का रिजल्ट और रिजल्ट के साथ मीडिया आती है।

मीडिया वालों के बिना बिहार बोर्ड का रिजल्ट अधूरा माना जाना चाहिए। पहले जहाँ ये मीडिया टॉपर्स की खबर देती थी, आज वही मीडिया टॉपर्स की खबर लेने लगी है। कुछ नया करने की जुगत तो हर किसी की होती है, टीआरपी भी कोई चीज़ है बन्दे!

खैर! रिजल्ट आया, मीडिया आई तो हड़कम्प भी मचेगा। इसी जुगत में थी इस बार भी “सबसे तेज़ गति से खबरें फैलाने” का दावा करने वाली मीडिया। इनकी खबर की मानें तो बिहार बोर्ड से पास हर विद्यार्थी ‘अनपढ़’ है। इन्होंने विज्ञान और कॉमर्स के टॉपर्स का भी पीछा किया, मगर क्या करें, ‘कला’ में स्कोप ज्यादा नजर आया।

एक कहावत है ‘अबरा के मौगी, भर गाँव के भौजी’। मतलब साफ है, जो डाल कमजोर दिखे, पकड़ो और हिलाते जाओ, जबतक उसकी जड़ न हिल जाएँ।

यही हुआ है बिहार बोर्ड के साथ। 2015 में कदाचारयुक्त परीक्षा की तस्वीरें चलीं। 2016 में उसमें तो सुधार हुआ पर बोर्ड शिक्षा माफियाओं की गिरफ्त से खुद को आज़ाद न कर पाया। 2016 मे हुए ऐसे प्रयास से एक स्कैम का खुलासा हुआ, अच्छा लगा। सबको पता चला कि कैसे बिहार बोर्ड एजुकेशन माफियाओं के हाथों चलाया जा रहा है। लेकिन अब इसी मुद्दे को बिहार और बिहारियों की स्मिता पर कलंक साबित करते हुए कटाक्ष के रूप में प्रयोग किया जाना निश्चित ही मीडिया की दोहरी मानसिकता का परिचायक है।

 

सिर्फ बिहार बोर्ड नहीं, CBSE जैसे केंद्रीय बोर्ड से पास ज्यादातर विद्यार्थी भी प्रायोगिक परीक्षा कैसे देते हैं, ये देश को बताने की जरूरत नहीं। दसवीं में संस्कृत भाषा में 99 और 100 फीसदी अंक लेने वाले छात्रों से संस्कृत का एक श्लोक भी बोलने को कहा जाए तो उनका लड़खड़ाना कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।

केंद्रीय बोर्ड पर कोई विद्यार्थी या मीडिया ऊँगली नहीं उठा सकता, वजह भी है, CBSE द्वारा मार्क्स का खुला दरवाजा। स्कैम तो वहाँ भी हो रहा है, मार्क्स योग्यता से अधिक देने का स्कैम और ऐसे में किसी के कम मार्क्स भी आते हैं तो वो उसकी योग्यता से अधिक ही होते हैं। अतः ये मार्क्स भी उसकी जुबां बन्द करने को काफी हैं। ये सब यूँ ही नहीं लिखा जा रहा, इसके साक्ष्य भी हैं।

 

 

बिहार बोर्ड के कम हिमायती और बिहारी पहचान को दिल्ली में ढो रहे, CBSE के पढ़े हिमांशु सिंह ने बताया कि कैसे होती है CBSE की कॉपी चेक, और कैसे रिपोर्ट कार्ड पर होते हैं ज्यादातर गलत नंबर, सबूतों के साथ।

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दो लोग कालिख से पुते हुए, एक-दूजे पर हँसते रहें। कुछ ऐसा ही हो रहा है। शिक्षा में गिरावट और एजुकेशन माफियाओं का शिकार पूरा देश है।

फिर क्यों न इन समस्याओं को समझा, परखा और फिर इनसे जूझा जाए, क्यों न इनसे बाहर निकल अपनी शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त की जाए। एक दूसरे पर हँसने की बजाए क्यों न अपने-अपने कालिख साफ किये जायें।

कहने का अर्थ ये नहीं कि मीडिया में ऐसी खबरें आनी ही नहीं चाहिए। कहना सिर्फ इतना है कि इस मुद्दे को बड़ा बनाने के साथ-साथ इसकी बढ़ती गहराई पर भी ध्यान दिया जाए। एक सुदृढ समाज के लिए स्कैम का खुलासा जरूरी है और उससे भी जरूरी है उसपर काम करना ताकि वह दुहराया न जाये।

 

निश्चित ही सरकार की खामियाँ नज़र आती हैं और सबसे बड़ी खामी तो ‘शिक्षा का अधिकार’ कानून में ही है, जिसकी वजह से सरकारें भी कई बार मजबूर होती हैं। कैसे? ये अलग मुद्दा है। मीडिया को अगर अपने मीडियम पर तनिक भी भरोसा हो तो कराएँ किसी दिन चर्चा इस मुद्दे पर भी, तब जानेगा देश कि क्या हैं ‘शिक्षा के अधिकार’ के साइड इफेक्ट्स। शिक्षकों पर ऊँगली उठी, उनके बहाली पर ऊँगली उठी, निश्चित ही सरकार को इसके अनुरूप कोई ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

 

हमारी लड़ाई इस बात की नहीं कि किसी गणेश पर बात हो रही तो किसी रक्षा पर बात क्यों नहीं हो रही। हमारी लड़ाई सिर्फ इतने की है कि शिक्षा व्यवस्था सुधारने की बात करें, इसके लिए बिहारी स्मिता को टारगेट करने की कोशिश न करें।

 

अगर ये हार है तो भारत के “एजुकेशन सिस्टम” की हार है| आप यकीन ना भी करें तो इनकार नहीं कर सकते| आखिर क्या वजह है हर साल स्विट्ज़रलैंड की आबादी जितनी संख्या में इंजीनियरिंग की डिग्रियां बांटने के बावजूद भारत में अदद इंजीनियर की कमी होती है| हर साल भारत से तकरीबन 15 लाख इंजीनियर्स निकलते हैं जिनमें से महज 3% के करीब ही लायक होते हैं इंजीनियर कहलाने के| यहाँ तो यह तक मान्य है कि “भारत में बंदा पहले इंजीनियरिंग करता है फिर सोचता है जिन्दगी में करना क्या है|” नतीजा, गली-गली उग आये “इंजीनियरिंग कॉलेजेज”(तकरीबन 6430), जिसके डिग्री की कीमत साइंस ग्रेजुएट जितनी ही है|

पूरा देश जुगाड़ पर चल रहा है| बच्चे का एडमिशन नहीं हो रहा- आप डोनेशन दे दो| कॉलेज-यूनिवर्सिटीज की सीट्स एंट्रेंस टेस्ट होने से पहले ही बिक जा रही हैं| यही क्यों, यहाँ तो कई ऐसे दलाल हैं जो घर बैठे आपकी सरकारी नौकरी भी लगवा सकते हैं|
जिनका ये धंधा है, रोजी-रोटी है, उनकी बात ही क्या करनी जब उस धंधे को चलाने वाले हम-आप ही हैं| रोकिये अगर रोक सकते हों तो| बदलिए खुद को| अपनी इस मानसिक स्थिति को भी|

 

आप दुखी हैं, हम भी दुखी हैं| आपकी शिक्षण व्यवस्था की नाकारी आपको शर्मशार करती है… हमारे शिक्षण व्यवस्था की नाकारी हमें शर्मशार करती है|

 

हम भी चाहते हैं, शिक्षकों से शिक्षण कार्य ही लिए जाएँ; सरकार का ध्यान छात्राओं में सेनेटरी नैपकिन और साइकिल बाँटने से आगे तक जाए; योग्य शिक्षकों का सही तरीके से चुनाव, प्रोत्साहन और कद्र हो; कम-से-कम इतनी तनख्वाह मिले कि वो रोजी-रोटी हेतु विद्यालय छोड़ कोचिंग की तरफ ना भागें; कम्प्यूटर की शिक्षा अनिवार्य हो; विद्यालय विश्व-स्तर की सुविधा का ना सही कम-से-कम पढ़ाई के माहौल के लिए उचित जगह बने| अगर ऐसा हुआ तो बिहार में सिर्फ एक ‘सिमुल्तला’ नहीं होगा| यहाँ के योग्य शिक्षक हर प्रखंड-हर संकुल संसाधन केंद्र में एक ‘सिमुल्तला’ विद्यालय चलाने की कुव्वत रखते हैं|
भारत की शिक्षण व्यवस्था गर्क की ओर जा रही है, सरकारें कुछ नहीं कर रहीं और मीडिया की भी पूरी नज़र फ़क़त बिहार की तरफ ही है। सिस्टम की बात रहने भी दें तो कम-से-कम हम-आप तो खुद को ऐसे संस्थाओं की चमचागिरी करने से रोक ही सकते हैं| लाख-दो-लाख ही नहीं आपका भविष्य भी बचेगा|
अब इन वायरल होती तस्वीरों और विचारों को देखिए-

इस पहली तस्वीर से साफ जाहिर है इनकी नज़र बिहार बोर्ड पर कितनी पैनी रही है-

 

 

और ये दूसरी तस्वीर वायरल हुए एक वीडियो से जिसमें दिखाया जा रहा है कि कैसे एक अयोग्य शिक्षक या परीक्षक बिहार बोर्ड की कॉपी चेक कर रहा। किसी माध्यम से यह वीडियो आप तक भी पहुँचा हो तो बताते चलें 2017 बिहार बोर्ड की कॉपी ऐसी नहीं थी। सो, इसे इस साल का समझ कर कृपया शेयर न ही करें। इस साल की कॉपी पर बार कोडिंग की गई थी और हर तरह की सेटिंग से दूर करने के लिए कॉपी नंबर हटा दिए गए थे।

खुद बिहारियों द्वारा जानकारी के अभाव में ऐसी तस्वीरें लगातार शेयर होना भी निंदनीय है।

बिहार में ऐसा कुछ होना अगर आपके ‘ठहाके’ देने वाली कंपनी के लिए मसाला है तो आपकी कॉमेडी में आई तंगी की इस तकलीफ में हम आपके साथ ठहाके लगाने को तैयार हैं|

और हाँ! जाते-जाते एक बार पुनः… सरकार के दोष निकालिए, सिस्टम के दोष निकालिए, हमारे-आपके दोष निकालिए… हम आपके साथ हैं| साक्ष्य के साथ सही मुद्दे, सही तरीके से और सही जगह उठने चाहियें। यूँ किसी की स्मिता पर आँच करती बातें जटिल मानसिकता को ही दर्शाती है। हम आपके द्वारा की गयी निंदा को अपने माथे का कलंक नहीं समझते|

नेहा नूपुर: पलकों के आसमान में नए रंग भरने की चाहत के साथ शब्दों के ताने-बाने गुनती हूँ, बुनती हूँ। In short, कवि हूँ मैं @जीवन के नूपुर और ब्लॉगर भी।