ज्ञान ‘देने’ या ‘अर्जन’ की नहीं, ये ‘सृजन’ की बात है: पूर्व डीजीपी अभयानन्द

अभयानन्द सर! ये नाम भारत के विभिन्न इलाकों में मौजूद आईआईटी की तैयारी के लिए बने 16 केंद्रों के गरीब और मेधावी छात्रों के लिए वरदान से कम नहीं। पूर्व डीआईजी और अब सुपर 30 कॉन्सेप्ट के कर्ताधर्ता बन के उभरे गुरु अभयानन्द हर मुद्दे को अपनी खास सोच में ढाल कर प्रस्तुत करते हैं और आपको अपनी सोच का मुरीद बनाने में वक्त नहीं लगाते। ‘अपना बिहार‘ की टीम पहुँची बिहार के इस खास शख्सियत से मुलाकात करने और बातें हुईं सुपर 30, शिक्षा व्यवस्था और पुलिसिंग के बारे में। आपके लिए पेश है इस छोटी मगर खास मुलाकात के बातचीत का अंश-

अपना बिहार:- आपके मार्गदर्शन में कई सारे सुपर ३० चलते हैं, इनके बीच अंतर या समानता क्या है ?

अभयानन्द सर:- पहली समानता है कि बच्चों से पैसा नहीं लिया जाना चाहिए| दूसरा जो खर्च होगा वो समाज के प्रयास से होगा| अंतर ये है कि समाज का कौन सा अंग उसमें खर्च कर रहा है| उदाहरण के लिए ‘रहमानी सुपर ३०’ मुस्लिम समुदाय द्वारा शुरू किया गया है| इसी तरह कंकडबाग में जो ‘अभयानंद सुपर ३०’ चल रहा है, वो एक फाउंडेशन ने प्रयास किया है| प्रतापधारी और उर्मिलाधारी, दोनों पति-पत्नी जो अब दिवंगत हो चुके हैं, उन्हीं के बेटे द्वारा ये प्रयास किया गया है| इसी तरह ‘मगध सुपर ३०’ है, जो अगर मैं कहूँ पूरे समाज से भीख मांग कर चलाया जाता है, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी| वहाँ सब्जी वाला भी जाकर सब्जी दे आता है, लेकिन हमलोग उसका सोशल ऑडिट कर देते हैं| साल के अंत में पूरा अकाउंट, किन-किन बच्चों को हमने लिया, वो कहाँ पहुँचे और किसने उस प्रयास में क्या कंट्रीब्युट किया, सब समाज के सामने रख देते हैं| ये गाँव के लोगों का प्रयास है, वही लोग आते हैं, कोई चावल, कोई गेंहू दे जाता है, बच्चों के खाने के लिए|

अपना बिहार:- तो ये कंटीन्यूअस एफर्ट है?

अभयानन्द सर:- हाँ! ये कंटीन्यूअस एफर्ट है, जो लगातार 8 सालों से चल रहा है| सहायता आते रहती है और हमलोग उसका सोशल ऑडिट भी करते हैं साल के अंत में| रिकार्डेड डाटा समाज के सामने रख देते हैं| जिन्होंने सहायता की है, उन्हें हमलोग सम्मानित भी करते हैं, और बच्चों को भी सामने रख देते हैं, कि यही बच्चे थे जिन्हें हमने पढ़ाया ताकि अगले साल के भी समाज प्रयास करना चाहता है तो करे|

अपना बिहार:- इस तरह के कितने ‘सुपर ३०’ अभी चल रहे हैं?

अभयानन्द सर:- ‘रहमान ३०’, ‘अभयानंद सुपर ३०’ और ‘मगध सुपर ३०’, कुल ३ संस्था अभी बिहार में चल रही है| ‘त्रिवेणी सुपर 30’ बंद हो चूका है| इसके अलावा देश के अन्य 13 जगहों पर कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी के तहत सुपर ३० चल रहा है| जम्मू-कश्मीर में आर्मी द्वारा सुपर ४० नाम से ये चलाया जा रहा है, जिससे इस बार 9 बच्चों ने आईआईटी पास किया है, वहाँ भी एकेडमिक मेंटरशीप मेरा ही है|

 

अपना बिहार:- क्या आप क्लासेज भी लेते हैं?

अभयानन्द सर:- क्लासेज मैं जाकर तो नहीं ले पाया हूँ, लेकिन विडियो से या टेलीफोनिक से क्लास लेता हूँ|
अपना बिहार:- जम्मू-कश्मीर में ‘सुपर ४०’ का क्या कांसेप्ट हैं?

अभयानन्द सर:- 40 या 30… ये डिपेंड करता है कि कितने बच्चों का खर्च आप उठा सकते हैं| मेथड एक ही है|

अपना बिहार:- 30 के पीछे कोई खास रीजन?

अभयानन्द सर:- 30 एक ऑप्टीमम नंबर है, न कम है, न ज्यादा है| किसी बच्चे को किसी वक्त अगर कोई प्रॉब्लम आती है तो 30 बच्चों में प्रोबब्लिटी बढ़ जाती है कि कोई बच्चा ऐसा मिल जाएगा जो उसकी मदद कर देगा| अगर वो अकेले पढ़ेगा तो रात की समस्या अगर रह गयी और दो दिन बाद शिक्षक से मुलाकात हुई, तो इस दो दिन में उसके पास दुसरे प्रोब्लेम्स आ जाएँगे और पहला प्रॉब्लम बैकग्राउंड में चला जाएगा और नासूर बन जाएगा| इसलिए हमने 30 की संख्या रखी है जो बड़ा भी नहीं है, छोटी भी नहीं है|

 

अपना बिहार:- सुपर ३० में सिलेक्शन का बेस क्या है?

अभयानन्द सर:- मेरिट! और मेरिट में हम कोई आरक्षण नहीं रखते हैं| एग्जामिनेशन लेते हैं, इंटरव्यू भी करते हैं| हमें मेरिट चाहिए और एक लेवल का मेरिट चाहिए| क्योंकि अगर ३० बच्चे एक लेवल के होते हैं तो एक दुसरे की मदद कर देते हैं| एक कंडीशन ये भी है कि वो ऐसी आर्थिक स्थिति में हों कि बड़े कोचिंग इंस्टिट्यूट में पैसा देके नहीं पढ़ पायें|

अपना बिहार:- और अगर अमीर का बच्चा एग्जाम देना चाहे?

अभयानन्द सर:- एग्जाम देने से तो हम नहीं रोक सकते| लेकिन जब सिलेक्शन हो जाता है तब हम जरूर वेरीफाई कर लेते हैं| बहुत अमीर होते हैं तो हम कहते हैं कि आप बड़े इंस्टिट्यूट में चले जाइये| आपके जगह एक गरीब बच्चा पढ़ लेगा|

अपना बिहार:- तो आप ऐसा रिक्वेस्ट करते हैं, फ़ोर्स नहीं करते?

अभयानन्द सर:- फ़ोर्स नहीं! अगर कोई जिद पर अड़ जाएगा कि हम पढ़ेंगे ही तो ठीक है| अगर आप हमारे कंडीशन में रहने को बिलकुल तैयार हैं तो हमें कोई ऐतराज़ नहीं| क्योंकि कई बार हमारा कंडीशन बहुत अच्छा नहीं होता| हो सकता है 30 बच्चों के लिए 4 ही बाथरूम अवैलेवल हो, और कई ऐसे लोग हैं जिनका अपना सेपरेट बाथरूम है, तो ऐसे लोगों को परेशानी तो होगी ही| बहुत ही साधारण व्यवस्था है हमारी| इसके बावजूद भी अगर रहना चाहें तो हमें कोई दिक्कत नहीं|
अपना बिहार:- कितने बच्चे एग्जाम देने आते होंगे?

अभयानन्द सर:- पिछले साल अभयानंद ३० में तो करीब 10 हजार बच्चे एग्जाम देने आये थे| जिनमें से ३० को हमने चुना|

अपना बिहार:- आप सिर्फ मेधावी और गरीब छात्रों को लेते हैं| क्या ऐसा होता है कि ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे आते हों, सरकारी स्कूल के बच्चे आते हों?

अभयानन्द सर:- हाँ बिलकुल! गाँव से ही ज्यादा आते हैं| सरकारी स्कूल के बच्चे भी आते हैं|
अपना बिहार:- कितने प्रतिशत बच्चे आते हैं बिहार बोर्ड से?

अभयानन्द सर:- 50-50! 50प्रतिशत बिहार बोर्ड और 50प्रतिशत सीबीएसई!
अपना बिहार:- आईआईटी पास करने में गुरु या मेंटर का कितना योगदान होता है?

अभयानन्द सर:- आईआईटी जैसी प्रतियोगिताओं में शिक्षक का रोल बहुत कम होता है| बच्चे का रोल, माहौल का रोल अधिक होता है| शिक्षक कैटेलिस्ट की तरह काम करते हैं| लेकिन अगर कोई शिक्षक कहता है, प्रचारित करता है कि मैं आईआईटी निकलवा दूँगा तो वो झूठ कहता है| शिक्षा या ज्ञान ‘देने’ की बात नहीं है, ये ‘अर्जन’ की भी बात नहीं है, ये ‘सृजन’ की बात है| अगर आप ज्ञान सृजित करवा सकते हैं तो फिर आप गुरु हैं| अन्यथा आपका ज्ञान सिर्फ आपका है, उससे दूसरों को कोई लाभ नहीं|

 

अपना बिहार:- आईआईटी जेईई में बोर्ड के मार्क्स का क्या महत्त्व है?

अभयानन्द सर:- मिनिमम 8 परसेंटाईल रहना चाहिए बोर्ड एग्जाम में, तभी उनका एडमिशन होगा, अन्यथा कितना भी मार्क्स लायें, एडमिशन नहीं होगा|
अपना बिहार:- इस बार कई बच्चे आईआईटी में पास होने के बावजूद बोर्ड में फेल हैं, क्या ऐसा मुमकिन है?

अभयानन्द सर:- मुझे ऐसा नहीं लगता| आईआईटी की परीक्षा थोड़ी टफ होती है| पर बोर्ड के सवालों का स्तर अलग होता है|
अपना बिहार:- तो इससे बचने के लिए अभी तैयारी कर रहे छात्रों को क्या करना चाहिए?

अभयानन्द सर:- हमलोग अपने यहाँ आईआईटी की परीक्षा से पहले, बोर्ड की तैयारी करवाते हैं| या यूँ कहें प्रैक्टिस करवाते हैं| बोर्ड के लिए अलग से पढ़ने की जरूरत नहीं होती, मगर बोर्ड के सवालों को लिखने का तरीका अलग होता हैं| इसमें प्रोब्लेम्स कम होते हैं, थ्योरी बहुत लिखना होता है| आईआईटी में ऑब्जेक्टिव प्रश्न होते हैं, बोर्ड में थ्योरी|

 

अपना बिहार:- आप जो ऑनलाइन क्लास लेते हैं, बच्चे उससे कैसे कनेक्ट हों?

अभयानन्द सर:- ऑनलाइन क्लास मैं जनरली नहीं लेता| जहाँ हमारा सेंटर है, वहाँ स्काइप पर क्लास लेते हैं| ये सामान्य छात्रों के लिए नहीं है| सरप्राइजिंग है, मैंने टेलीफोन पर भी क्लासेज लिए हैं, टॉपिक्स पढ़ाया है, प्रोब्लेम्स सॉल्व किये हैं| हमने देखा है कि इससे भी बच्चे समझ जाते हैं| मुख्यतः मैं आईआईटी के फिजिक्स का टॉपिक पढ़ाता हूँ|

 

अपना बिहार:- बिहार की शिक्षा व्यवस्था के बारे में क्या कहेंगे?

अभयानन्द सर:- मैं औपचारिक रूप से कभी बिहार की शिक्षा व्यवस्था में रहा नहीं| यद्दपि मैं बिहार सरकार का कर्मचारी था, पर पुलिस विभाग में था| शिक्षा विभाग को गहराई से समझने का मौका नहीं मिला| पर इतना ही जानता हूँ कि जैसे पुलिस की समस्या थी, जब मुझे प्रभार दिया गया और मैंने लगभग सात-आठ साल इसके लिए काम किया, उस समय विधि व्यवस्था और अपराध को लेकर भी यही समस्या थी| फिर इसपर काम किया गया, कई विधियाँ लगाई गयीं| मेरा मानना है कि समस्या कोई भी हो, यदि आप आउट ऑफ़ दी बॉक्स सोचियेगा, नये तरीके से सोचियेगा तो समाधान हर समस्या का है|
अपना बिहार:- क्या आपको लगता है कि बिहार पुलिस को फ्रेंडली होने की जरूरत है?

अभयानन्द सर:- फ्रेंडली! ये सही शब्द नहीं है पुलिसिंग के लिए| लेकिन हाँ! फ्रेंडली से यहाँ तात्पर्य है पुलिस को कानून को सख्ती से लागू करना और कानून की शक्ति का उपयोग करना आना चाहिए| तब लोग आपकी इज्जत करेंगे और कानून की भी इज्जत करेंगे|
अपना बिहार:- तब की पुलिसिंग और आज की पुलिसिंग में कोई अंतर आया है?

अभयानन्द सर:- (हँसते हुए) खास जानकारी नहीं इस बारे में कि पिछले तीन सालों में पुलिसिंग में क्या हुआ है| मैं अब अक्सर कहता हूँ, पुलिस का पी मैं भूल चुका हूँ, फिजिक्स का पी याद है|
अपना बिहार:- पुलिसिंग के बाद आप एक गुरु बनकर उभरे, ये बड़ा बदलाव कैसे? क्या पहले से पढ़ाने का आईडिया था?

अभयानन्द सर:- पढ़ाने का काम मैं पन्द्रह साल से कर रहा हूँ| जॉब में था तब से| 2002 से ही पढ़ा रहा हूँ| उससे पहले मैंने अपने बच्चों को पढ़ाया है| यहीं से मैंने पढ़ाना सिखा| मैं प्रोफेशनल टीचर नहीं हूँ| मैंने बीएससी पास किया उसके तुरंत बाद यूपीएससी में सेलेक्ट हो गया| एजुकेशनल क्वालिफिकेशन के मामले में काफी पुअर हूँ| लेकिन अपने बच्चों को पढ़ाया तो धीरे-धीरे शिक्षक क्या होता है, ये बात समझ में आई| शुरुआत घर से हुई| उसके बाद मैं गरीब बच्चों के बीच उतरा और मैंने देखा कि जिनमें प्रतिभा है, उन्हें कैसे खेल-खेल में उभारा जा सकता है|

ऐसा ही प्रयास हमने स्वास्थ को लेकर भी किया| पुलिस कांस्टेबल्स के लिए| कांस्टेबल्स ने एक सामूहिक एफर्ट किया और उससे उनका एक अस्पताल क्रिएट हुआ जो अभी भी चल रहा है| BMP में है वो अस्पताल|
अपना बिहार:- शिक्षा व्यवस्था में सुधार को लेकर कोई सुझाव?

अभयानन्द सर:- किसी भी व्यवस्था में आपको सुधार चाहिए तो सरकार पर आश्रित होना छोड़ना होगा| आजादी से पहले भी समाज के प्रयास से स्कूल- कॉलेज बनवाया और चलाया गया| जमींदार जमीन दे देते थे, प्रतिभाशाली लोग खुद से वहाँ पढ़ाने जाते थे| तो अब लोग समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हट रहे हैं| सरकार पर आश्रित होकर शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाना मुश्किल है|

सरकार के ऊपर पूरी तरह आश्रित होने से नहीं होगा| सरकार का काम कानून बनाना है| सरकार का काम आपके प्रतिदिन के प्रोब्लेम्स को सॉल्व करना नहीं है| आप विधायक चुनते हैं, विधायक या लेजिस्लेटर्स! विधायिका का मतलब क्या है? वो कानून बना सकती है| आप एमएलए और एमपी से उम्मीद करते हैं कि वो सड़क बना दें, ब्रिज बना दें, कानून नहीं बनाएँ| समाज अगर अपनी समस्या का समाधान ढूंढने चला है और वहाँ कोई कानूनी अड़चन है, तो उसका रास्ता विधायिका के सदस्य सीधा करेंगे|

आपको अपना सिस्टम खुद इम्प्रूव करना होगा| और फिर जब कानून में कोई दिक्कत हो रही है, तब सरकार उसे ठीक करेगी| सरकार कानून बनाकर माहौल दे सकती है|

यहाँ एक बात बताऊँ| एक सज्जन गये थे युएसए| उनका गाइड जब घुमाते हुए पहुँचा अपने सीनेट के पास तो उसने कहा – “दिस इज दी प्लेस वेयर वी मेक आवर लॉज़|” इसका मतलब उनके यहाँ सीनेट बिल्डिंग को देखकर उनके दिमाग में पहला वाक्य ये आता है| हमारे यहाँ आप असेम्बली बिल्डिंग के पास जाकर क्या कहेंगे? “दिस इज दी प्लेस वेयर वी मेक आवर रोड्स?” आप एमएलए, अर्थात् मेम्बर ऑफ़ लेजिस्लेटिव असेम्बली चुनते हैं, फिर इसका ‘एल’ साइलेंट हो जाता है| वो सिर्फ मेम्बर ऑफ़ असम्बली रह जाता है, क्योंकि वो लेजिस्लेट तो कर नहीं रहे|

वो जगह क़ानून बनाने के लिए है| तो शिक्षा के क्षेत्र में भी वहाँ सही कानून बनने चाहियें|

 

अपना बिहार:- आपके बच्चे जो ‘सुपर ३०’ से निकलते हैं, क्या वो समाज को कंट्रीब्युट करने वापस आते हैं?

अभयानन्द सर:- हाँ-हाँ! बिलकुल आते हैं!
अपना बिहार:- आखिर में, वैसे युवा जो किसी तरह के दबाव में आकर आईआईटी कर रहे हैं, के लिए कोई सन्देश?

अभयानन्द सर:- दबाव में आकर पढ़ाई नहीं करनी चाहिए| अपनी क्षमता को समझकर ही आगे बढ़ना चाहिए|
और अंत में देखना न भूलें अभयानन्द सर को अपनी बात रखते हुए- 

नेहा नूपुर: पलकों के आसमान में नए रंग भरने की चाहत के साथ शब्दों के ताने-बाने गुनती हूँ, बुनती हूँ। In short, कवि हूँ मैं @जीवन के नूपुर और ब्लॉगर भी।