पिछले कुछ समय में ऐसी फिल्में भी आई हैं जिनमें दर्शकों को गांव नज़र आने लगे हैं। हीरो या हीरोइन गांव से है और कैमरे का फोकस भी खेत-खलिहानों से घूमता हुआ कलाकारों के घर तक पहुंच रहा है यानी दर्शक मिट्टी की सौंधी महक महसूस कर रहे हैं। यहां हम ऐसी ही एक फिल्म की बात कर रहे हैं जिसमें गांव ही फिल्म का केंद्र बिंदु है। कहने का मतलब यह है कि ‘चकल्लसपुर’ नाम की यह फिल्म सौ प्रतिशत ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुड़ी है और फिल्म के सभी पात्र ग्रामीण हैं, जो अपने गांव के विकास के लिए सरकार पर आश्रित हैं।
प्रधानमंत्री मोदी जी का देश पर और देशवासियों पर कितना प्रभाव पड़ा है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। आज न केवल देश में, बल्कि पूरे विश्व में मोदी जी ने छाप छोड़ी है। मोदी-मोदी के नारों और उनके कार्यों का असर आज देशवासियों के सर चढ कर बोल रहा है। इसी माहौल से प्रभावित होकर लेखक-निर्देशक रजनीश जयसवाल ने फिल्म ‘चकल्लसपुर’ का निर्माण किया है।
मोदीजी के सपनों का सच और किसानों की आत्महत्या और सरकारी बाबुओं की पोल है -चकल्लसपुर
एक ऐसा गांव जो दो राज्येां के बीच फंँस कर अपना अस्तित्व खो चुका है। जन सुविधाओं की आशा में निराशा ही हाथ लगती है।
फिल्म चकल्लसपुर एक ऐसे गाँंव की कहानी है जो बिहार और उत्तर प्रदेश की सीमा पर है। इस गांव को और गांववासियों को कोई भी राज्य सरकार किसी भी तरह की सहायता उपलब्ध नहीं कराती। जब गांँव वाले किसी सहायता की मांग करते हैं, तो दोनों ही सरकारें एक दूसरे की ज़िम्मेदारी बताकर अपना पल्ला झाड़ लेती हैं और गांव वाले इसे अपना भाग्य समझ कर चुप्पी साध लेते हैं।
इसी गांव का सीधा-साधा बिल्लु केेवल दस साल की उम्र में गांव छोड़ कर शहर चला जाता है। ज़िल्लत भरा जीवन जीने और ठोकरें खाने के बाद जब वह गांव वापस आता है तो वह अपने गांव की कायापलट कर देना चाहता है, और तो और उसके गांववालों की आशाऐं भी बिल्लु से ही हैं। बिल्लु दिल्ली शहर से आता है तो गांव वासियों की आशाऐं भी काफ़ी बढ़ जाती हैं कि बिल्लु के आने से उनके सारे अधूरे सपने पूरे होंगें।
युवा निदेर्शक रजनीश जयसवाल दिल्ली विश्वविद्यालय से फिल्म निर्माण में डिप्लोमा हासिल करने के बाद जाने माने निर्देशक प्रकाश झा के साथ लगातार कई बरसों तक सहायक रहे। ‘चकल्लसपुर’ पैनी सोच, गहरी समझ तथा फिल्म लेखन-निर्देशन की बारिकयों को परदे पर उतारने का सफल प्रयास है। ये फिल्म वास्तिविकता के एकदम करीब है। चकल्लसपुर परदे पर देखते समय किसी फिल्म का नहीं बल्कि वास्तविकता का आभास देता है।
रजनीश कहते हैं कि उन्होंने यह फिल्म 24 दिन में कंपलीट की है। मुजफ्फरपुर के आसपास के सात-आठ गांवों में फिल्म की शूटिंग की गई है। ये गांव भी उपेक्षा के शिकार हैं। फिल्म में गांव के रियल कैरेक्टर भी हैं इसलिए फिल्म को रिएलिस्टिक कहा जा सकता है। अधिकांश कलाकार थियेटर से जुड़े हैं जिन्होंने शूटिंग से पहले रिहर्सल में भी काफी वक्त दिया। निर्देशक कहते हैं कि उन्हें पीएमओ से भी रिस्पॉन्स मिला है और उम्मीद करते हैं कि देश की कुछ और राज्य सरकारें उनकी मदद को आगे आएंगी।
फिल्म के नायक बिल्लु की भूमिका में मुकेश नायक उत्तर प्रदेश के बरेली के रहने वाले हैं और बरसों से स्टेज से जुड़े रहे हैं। चकल्लसपुर के अलावा मुकेश ने सात उचक्के, मानसून शूट आऊट जैसी फिल्मों में भी काम किया है। फिल्म की नायिका के रूप में उर्मिला महन्त असम की लोकप्रिय अभिनेत्री हैं और उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है। फिल्म में संगीत दिया है परवेश मलिक ने और गीतकार हैं राम गौतम। फिल्म का संपादन किया है संतोष मंडल ने, जो प्रकाश झा की फिल्मों से लंबे वक्त से जुड़े हैं।