राजनीति में धनबल हमेशा अमिट स्थान रखता है और पैसे वाले अक्सर चुनाव आसानी से जीत जाते हैं। ये सदा से होता आया है पर जब किसी क्षेत्र विशेष के नेताओं की संपत्ति नेताओं के राष्ट्रीय औसत से भी ऊपर हो पर वो क्षेत्र गरीबी और ‘पर कैपिटा इनकम’ के रास्ट्रीय औसत से बहुत नीचे हो इनपर सवाल उठना लाजमी है।
बिहार के मिथिला क्षेत्र का मधुबनी और दरभंगा जिला देश के सबसे कम ‘औसत पर कैपिटा इनकम’ वाले जिलों में से आता है। गरीबी बेरोजगारी और बांकी समस्या आज भी जस की तस है पर क्षेत्र के नेतालोग धनकुबेर हैं। यहां के विधायकों की औसत संपत्ति 3 करोड़ है। जी सही पढ़े हैं, 3 करोड़ है औसत संपत्ति मधुबनी दरभंगा जिले के 20 विधायकों की।
मधुबनी से सांसद और खुद को किसान बताने वाले बीजेपी के नेता हुकुमदेव नारायण यादव की संपत्ति 7.5 करोड़ है और दरभंगा के सांसद कीर्ति आजाद की संपत्ति 3 करोड़ के आसपास है।
मधुबनी दरभंगा मिला के 20 विधानसभा क्षेत्र मे 8 आरजेडी, 6 जेडीयू, 4 बीजेपी, 1 कांग्रेस, 1 आरएलएसपी के विधायक हैं ! एडीआर पर इन सबके द्वारा भरे गए अफ़िडेविट के अनुशार इन सब की संपत्ति कुल 60 करोड़ से भी उपर है ! इसमे से 6 लोगों ने अपनी सालाना आईटीआर ‘0’ बताई है और 4 लोग निरक्षर या अज्ञात लिख रक्खे हैं अपनी शिक्षा मे, क्रिमिनल केसेस भी भरपूर है इन लोगों के नाम पे।
बेनीपुर से जेडीयू विधायक सुनील चौधरी (14 करोड़), दरभंगा रुरल से आरजेडी विधायक ललित कुमार यादव (12 करोड़), फ़ैयाज़ अहमद (आरजेडी, बीस्फ़ी, 10 करोड़), समीर महासेठ(आरजेडी, मधुबनी, 5 करोड़), गुलाब यादव (आरजेडी, झंझारपुर, 7 करोड़) टॉप पर हैं ! बेकारे मे आपलोग दरभंगा कुमार संजय सराओगी(3 करोड़) का कपाड़ खाते हैं ! पूरे क्षेत्र मे सबसे गरीब हैं लौकहा के विधायक लक्षमेश्वर रॉय (28 लाख) !
किसी की पर्सनल संपत्ति से कोई दिक्कत नही होना चाहिए पर जिस क्षेत्र के जनप्रतिनिधि इतने धनाढ्य हों अगर वहां की जनता इतनी गरीब तो इस असमानता पे सवाल लाजमी होता है। ये एक प्रश्नचिन्ह है लोकतंत्र और क्षेत्र के जनता के विवेक पे भी। संपत्ति का ये ब्यौरा तो सिर्फ वो है जो इन जनप्रतिनिधियों के अपने पर्सनल नाम पे है और जिसे उन्होंने खुद डीक्लेयर कर रक्खा है। रिस्तेदारों-परिवार के नाम पर संपत्ति, बेनामी और छूपाई हुई संपत्तियों की तो कोई बात ही नहीं।
और यही लोग दावा करते हैं की क्षेत्र से गरीबी दूर कर देंगे।
नोट: लेख में व्यक्त किया गया बात ‘अपना बिहार’ का नहीं बल्कि लेखक का निजी विचार है और दिये गयें तथ्य लेखक द्वारा किये गयें रिसर्च पर आधारित है ।
लेखक: आदित्य झा