पिछले साल 5 अप्रैल को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य में पूर्ण शराबबंदी की घोषणा की तो इस फैसले से असहमत लोगों ने हर स्तर पर इसका जमकर विरोध किया, वहीं फैसले के पक्षधर लोगों की भी धारणा थी कि इसका लागू हो पाना कठिन है। सशक्त शराब लॉबी ने हर संभव तरीके से इस फैसले का विरोध किया, इसके क्रियान्वयन की राह में कांटे बिछाए, हर स्तर के कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसके बावजूद राज्य में अच्छे नतीजों और संकेतों के साथ पूर्ण शराबबंदी ने एक साल पूरा कर लिया। इसके पिछले साल भर के सफर पर नजर डालें तो इसका संदेश स्पष्ट है, विषय जन आकांक्षा के अनुरूप हो तथा इसके पीछे दृढ़ एवं ईमानदार राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो कुछ भी असंभव नहीं।
राज्य में घर के आंगन से लेकर चौक-चौराहे तक लड़ाई-झगड़े कम हुए हैं, मुख्यमंत्री का दावा है कि शराबमुक्त हुए लोगों की सेहत और खुशहाली वापस आ गई है। नशाजन्य अपराधों में गिरावट आई है। बिहार की शराबबंदी की पूरे देश में न सिर्फ चर्चा है बल्कि कई अन्य राज्यों में बिहार के तर्ज पर शराबबंदी लागू करने की मांग उठ रही है।
इस सब के अलाव जो सबसे बड़ी चिंता राज्य के भारी राजस्व नुकसान की थी । शराबबंदी से जहां सरकार को करीब पांच हजार करोड़ रुपये के नुकसान का अंदाजा लगाया जा रहा था, वह कोरा साबित हुआ। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि सरकार के खजाने में पूर्व की तरह इस साल भी उतनी ही रकम जमा हुई, जैसे पिछले साल हुआ करती थी। उलटे शराब के कारण लोगाें की जेब से निकल जाने वाले सालाना दस हजार करोड़ रुपये की बचत हुई। लोगों ने इस पैसे का उपयोग दूध, मिठाई खाने में और अपना जीवन स्तर बेहतर बनाने में किया। पहली अप्रैल से प्रदेश में शराब बनना भी बंद हो गया।
रिपोर्ट के अनुसार इस एक साल की अवधि में दूध की खपत 28.4 प्रतिशत बढ़ गयी. शहद की खपत करीब चार गुनी अधिक हो गयी, मट्ठा की खपत चालीस प्रतिशत बढ़ गयी. रसगुल्ला 16.3 प्रतिशत, दही 19 प्रतिशत,पेड़ा साढ़े 15 प्रतिशत, गुलाब जामुन 15 प्रतिशत और दूध से बने उत्पादों की खपत साढ़े 17 प्रतिशत तक बढ़ गयी. यह परिणाम 2016 के अप्रैल से सितंबर तक की रिपोर्ट पर आधारित है.
किराना और फर्नीचर के सामान की बिक्री में भी इजाफा
शराबबंदी का असर लोगों के आम जीवन पर भी पड़ा है. शराब पीने के रूप में जो पैसे घर से बाहर जा रहे थे, उन पैसाें का उपयोग अब घरेलू सुविधाएं जुटाने में हो रहा है. किराने और फर्नीचर की दुकानों में भीड़ बढ़ी है. शराब पीकर पत्नी और बच्चों के संग मारपीट करने वाले अब महंगी साड़ियां खरीद रहे हैं. दो हजार से अधिक कीमत वाली साड़ियों की खरीद 2016-17 में 17 सौ गुनी अधिक बढ़ गयी.पांच सौ रुपये मीटर कीमत वाले कपड़े की खरीद भी बढ़ी है. इसका मतलब यह हुआ कि शराबबंदी का असर मध्यम वर्गीय परिवारों पर भी साफ दिखा है. होजियरी और रेडिमेड कपड़ों की बिक्री में 44 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. किराना सामग्री की बिक्री में 30.7 प्रतिशत, सब्जी, बिस्किट,मेवा, इलेक्ट्रीकल सामान, कार, ट्रैक्टर और दो पहिया व तिपहिया वाहनों की खरीद में 31.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
अपराध की घटनाओं में आयी कमी
शराबबंदी का दुर्घटना और आपराधिक घटनाओं पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है. पूर्ण शराबबंदी लागू करने के पहले और बाद के छह महीने की तुलना में हत्या की घटना में 28.3 प्रतिशत की कमी अायी है.बलात्कार की घटना में 10.1 प्रतिशत, महिलाओं के खिलाफ अपराध में 2.3 प्रतिशत, अनुसूचित जाति और जन जाति के लोगों के खिलाफ अपराध में 14.8 प्रतिशत की कमी आयी है. सड़क दुर्घटना में 19.8 प्रतिशत, सड़क दुर्घटनाओं में लोगों के मारे जाने की घटना में भी 19.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी. इसी प्रकार डकैती, छिनतई और सांप्रदायिक तनाव आदि के मामले में भी भारी गिरावट दर्ज की गयी है.
शराबबंदी की मांग उठी दूसरे राज्यों में भी
बिहार में शराबबंदी के बाद इसकी मांग दूसरे प्रदेशों में भी उठने लगी है. सीएम को प्रतिदिन सैकड़ों पत्र आते हैं, खासकर महिला संगठनों के जिसमें उनसे शराबबंदी के पक्ष में चल रहे सामाजिक आंदोलनों की अगुवाई करने का अनुरोध होता है. अभी तक मुख्यमंत्री झारखंड, यूपी, हरियाणा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ में शराबबंदी मुहिम को संबोधित कर चुके हैं.
2016-17 में बढ़ गयी खपत (अप्रैल से सितंबर)
सामान प्रतिशत
शहद 380%
मठ्ठा 40%
फ्लेवर्ड दूध 28.4%
सूधा दूध 20.5%
लस्सी 19.7%
सामान प्रतिशत
रसगुल्ला 16.3%
पेड़ा 15.5%
गुलाबजामुन 15.2%
मिल्क केक 9.2%
दूध के उत्पाद कुल 17.5%
िकराना सामान की भी बढ़ गयी खपत
सामान प्रतिशत
किराना 30.7%
बिस्किट 21.3%
स्टेशनरी 30.7%
इंनटरटेनमेंट टैक्स 29.2%
फर्नीचर 20.1%
सामान प्रतिशत
सेविंग मशीन 18.8%
फूट वीयर 17.2%
कार व चार पहिया 29.6%
दो व तीन पहिया 31.6%
ट्रैक्टर 29%