संसाधन के अभाव और ब्रेन ड्रेन को लेकर बातें करना आसान है, मगर जब बात अपनी जन्मभूमि की सेवा के लिए खुद को समर्पित करने की हो तो कई लोग हिचक जाते हैं। आप कल्पना करें उस छात्र की इच्छाओं की जो नेतरहाट से पढ़े और पूरे राज्य में अव्वल स्थान पर आये, पुनः सीबीएसई से बारहवीं में दाखिला ले और देशभर के शीर्षस्थ छात्रों में शामिल हो जाये। दिल्ली इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग करे और एक बार फिर इंस्टिट्यूट टॉपर बने। अमेरिका में एक बड़ी कंपनी में अच्छे कर्मचारियों में गिने जाने के बावजूद एक पूरी तरह से व्यवस्थित जिंदगी को छोड़ स्वदेश लौट आने की चाहत रखे।
इतना ही नहीं, स्वदेश लौटने के बाद अपनी चाहत को अमलिमाला पहनाते हुए भारतीय पुलिस बल की सर्वोच्च परीक्षा को पहली ही कोशिश में पार कर एकबार फिर पूरे देश में शीर्ष स्थान लाना एक हीरो की कहानी जैसी मालूम पड़ती है।
ये कहानी अभी अधूरी है। ये शख्स जो भी कार्य करते हैं अपना 100 प्रतिशत देते हुए करते हैं। इन्होंने बिहार में कार्य करते हुए कई ऐसे मुश्किल कार्य आसानी से किये हैं जिसके किस्से आज भी सुनाये जाते हैं।
बिहार में कार्य करते हुए बिहार की गौरवगाथा पर 2 किताबें भी लिख चुके हैं जिसे अंतर्राष्ट्रीय पब्लिकेशन हाउस ऑक्सफ़ोर्ड से प्रकाशित किया गया है। फोटोग्राफी करते हैं तो तस्वीरों में जान फूंक देते हैं। समाज से जुड़े हुए हैं, अशिक्षितों के लिए ‘शाम की पाठशाला’ इन्हीं की देन है, जिसे समाज के विभिन्न तबकों ने इतना समर्थन दिया कि अब ये ‘मेरी पाठशाला’ बन चुकी है।
एक तरफ जहाँ हम-आप प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार की चर्चाएँ करते नहीं थकते, वहीं ये शख्स चल पड़े हैं पुलिस की छवि को सुधारने, लोगों के मन से पुलिस का भय हटाकर एक स्वस्थ समाज का निर्माण करने।
जी हाँ! किसी फिल्मी हीरो सी लग रही ये कहानी सन् 2005 के आईपीएस टॉपर निशांत तिवारी जी की है। श्री निशांत तिवारी बिहार के भोजपुर जिले के बड़हरा प्रखंड से संबंध रखते हैं। सन् 1995 के बिहार बोर्ड में 7 लाख छात्रों के बीच रिकॉर्ड नम्बरों (agg 91%) से टॉपर बने। सन् 1997 में केंद्रीय बोर्ड में 87.8% के साथ देशभर के 0.01% छात्रों में इन्होंने अपनी जगह बनाई। दिल्ली यूनिवर्सिटी से 83.7% अंकों के साथ पुनः यूनिवर्सिटी टॉपर्स में नाम किया। सन् 2007 में पुलिस मैनेजमेंट में मास्टर्स फर्स्ट डिवीज़न से कर पुलिसिंग में भी इन्होंने खुद को स्थापित होने का प्रमाण दे दिया।
कई बार प्रधानमंत्री से पुरस्कार ग्रहण करने वाले निशांत तिवारी जी को हाल ही में ऑस्ट्रेलिया यूनिवर्सिटी से पुलिसिंग में गोल्ड मैडल मिला है, जो न सिर्फ बिहार, बल्कि देश के समस्त पुलिस अधिकारियों के लिए गर्व और प्रेरणा का विषय है।
हाल ही में आपन बिहार की टीम जब इनसे मिलने पहुँची तो अलग-अलग मुद्दों पर घंटों चर्चा चलती रही, अनुभव साझा किए जाते रहे। मुद्दा चाहे पैरेंटिंग का हो या साइबर क्राइम का या फिर बिहार के विभिन्न जगहों की विशेषता का… हर मुद्दे पर ये अच्छी पकड़ रखते हैं और खुलकर बातें भी करते हैं। इनसे हुई बातचीत के अंश आपके लिए पेश किये जायेंगे अगली पाँच कड़ियों में।
आइये जानते हैं, कैसे एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने आईपीएस बनने का निर्णय लिया और कैसा लगता है ये सफर-