सात समुंदर पार से बिहारी अस्मिता का गौरव बढाने वाला एक और खबर आ रहा है। बिहार की आशा खेमका को ब्रिटेन के प्रतिष्ठित एशियन बिजनेस वूमेन पुरस्कार से नवाजा गया है। भारतीय मूल की महिला शिक्षाविद् को यह प्रतिष्ठित पुरस्कार शुक्रवार को लंदन के एक समारोह में दिया गया ।
कौन है आशा खेमका ?
आशा खेमका बिहार के सीतामढ़ी जिले की रहने वाली है। वर्ष 2013 में ब्रिटेन के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘डेम कमांडर आॅफ द आॅर्डर आॅफ द ब्रिटिश अंपायर’ का सम्मान पा चुकी है । यह सम्मान पाने वाली यह भारतीय मूल की दूसरी महिला हैं। अभी वे ब्रिटेन में वेस्ट नॉटिंघमशायर कॉलेज की प्रिंसिपल हैं और पिछड़े वर्ग के लिए काम करती हैं- सिर्फ़ शिक्षा के क्षेत्र में नहीं बल्कि उन्हें रोज़गार लायक बनाने के लिए भी। उन्होंने अपनी चैरिटी भी शुरु की है।
दिलचस्प है सफलता का सफर
आशा 13 वर्ष की कम उम्र में ही अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी। 15 साल की उम्र में आशा की शादी डॉक्टर शंकर अग्रवाल से हो गयी। घर परिवार वालों ने उसकी शादी कर दी। शादी के बाद घर परिवार संभालते 25 की उम्र में वो पहुंच गयी। डॉक्टर पति इस बीच इंगलैंड में अपनी नौकरी पक्की कर लिया था। शादी के बाद आशा जब ब्रिटेन गईं, तो उसे अंग्रेजी तक नहीं आती थी। लेकिन अाशा ने हार नहीं मानी और अंग्रेजी की पढ़ाई सुरू कर दी। इसके बाद फिर क्या था खेमका ने जज्बे के दम पर अंग्रेजी को अपने वश में कर लिया। फिर उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कुछ सालों बाद कैड्रिफ विवि से बिजनेस मैनजमेंट की डिग्री ली और ब्रिटेन के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में शुमार वेस्ट नॉटिंघमशायर कॉलेज में व्याख्याता के पद पर योगदान दिया। अब वो इसी कॉलेज की प्रिसिंपल हैं।
बिहार की आशा खेमका हर उस आदमी के लिए प्रेरणा है जिन्हें अंग्रेजी नहीं आती, हर उस उस महिलाओं के लिए उदाहरण जो शादी बाद भी अपने सपनों को उडान देना चाहती है और हर उस इंसान के लिए मिशाल है जो विपृत हालात में भी हार नहीं मानते ।