बिहार के एक गरीब किसान का सपना था कि उसकी बेटी डॉक्टर बनकर गरीबों की सेवा करें। इसके लिए उन्होंने एड़ी-चोटी एक कर दिया।पिता के सपनों को साकार करने के लिए बेटी ने खूब मेहनत और आइजीआइएम के एमबीबीएस की टॉपर बनी।
पटना का दीघा इलाका कुछ साल पहले सिर्फ खेती-किसानी के लिए जाना जाता था।खेती से उन्हें अगर सौ रुपये मिलते तो उसमें पचास रुपये बेटी की डॉक्टरी की पढ़ाई के वास्ते जमा कर लेते।ताकि वे अपने सपने को साकार कर सकें।
इस सराहनीय कार्य में चंद्रभूषण सिंह के पिता राम पदारथ सिंह ने भी साथ दिया।उन्हें खुशी थी बेटे का सपना पुरा हो और उसकी पोती ऋतंभरा डॉक्टर बनकर गरीबों को मुफ्त में इलाज करें।
लेकिन यह इतना आसान नहीं था चंद्रभूषण सिंह ने बताया कि बेटी ऋतंभरा को प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा देने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई, लेकिन मेडिकल की महंगी पढ़ाई ने परिवार की कमर तोड़ दी।यहां तक की बेटी के पढ़ाई के लिए उन्हें कर्ज भी लेना पड़ा।उनके दृढ़ संकल्प में परिवार के लोगों ने काफी साथ दिया।कई बार उसे डॉक्टर बनाने का सपना लड़खड़ाता नजर आया था। लगता था कि पांच साल की मेडिकल की पढ़ाई आर्थिक गरीबी के कारण कहीं अधूरी न रह जाए।गांववालों और दोस्तों ने भी हिम्मत बढ़ाई तो सपना साकार हो गया।
आखिरकार बेटी ऋतंभर को मेडिकल परीक्षा में सफलता हासिल हो गई। इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज आइजीआइएमएस में पढ़ाई कर न सफलता पाई साथ ही एमबीबीएस में टॉपर रही, बल्कि कई विभागों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया।
दीक्षा समारोह में उसे सात गोल्ड मेडल प्रदान किए गए। जब उसे पदक दिए जा रहे था, तो इस मौके पर किसान पिता की आंखों से खुशी की अश्रुधारा बह रही थी।
बेटी ऋतंभरा ने बताया कि मेरेपिता ने मुझे डॉक्टर बनाने के लिए रात-दिन मेहनत करके एक-एक पैसे जुटाए।मेरा जीवन मेरे परिवार और समाज को समर्पित है। गांव-देहात घूम-घूमकर गरीबों का मुफ्त इलाज करूंगी।