आज हम आपको एक ऐसे बिहारी से रूबरू कराने जा रहे हैं जो खुद निरक्षर था।शब्दों का कोई विशेष ज्ञान प्राप्त नहीं था।लेकिन हौसले बुलंद थे कुछ कर गुजरने की तमन्ना थी।इस शख्सियत का नाम संत श्रीधर दास है।जो निरक्षर होने के वावजूद भी शिक्षा की अलख जगाई है। अब तक दो इंटर और एक डिग्री कॉलेज की स्थापना करा चुके हैं।
अब बच्चों के लिए यूनिवर्सिटी खोलने के लिए प्रयासरत हैं।संत श्रीधर दास वर्तमान में सराय बक्स में एक मठ में रह रहे हैं।
श्रीधर दास करीब 35 वर्षों तक लगातार कङी साधना किया।सन् 1978 में वे अपने गांव दिघवारा हराजी वापस लौट आए। फिर उन्होंने समाज के लिए कुछ करने की इच्छा लेकर गड़खा आ गए।
जब वे गृहत्याग के बाद वे एक मठ देवराहा बाबा से मिले जो उनके गुरु है।उस समय उनकी उम्र 17 साल थी। गड़खा आने के बाद वे गांव-गांव घूमे और कॉलेज के लिए सहयोग मांगकर बच्चों के लिए दो इंटर व एक डिग्री कालेज की स्थापना किया।