सनातन धर्म का विज्ञान आधुनिक विज्ञान से कहीं ज्यादा उच्च प्रौद्योगिक माना जाता है। जिसे अपनाना तो दूर पूर्णतः समझ पाना भी आमजन के लिए संभव नहीं है, और इसका मुख्य कारण आध्यात्म के विस्तृत ज्ञान की कमी है।
हमारा बिहार पुरातनकाल से ही ज्ञान का पीठ रहा है। ज्ञान प्राप्ति के लिए महात्मा बुद्ध और भगवान् महावीर जैसे मनीषियों को भी बिहार ही भाया। यही बिहार नालंदा जैसे विश्वस्तरीय ज्ञानार्जन केंद्र का प्रदाता रहा है। विद्वता की बात अगर होती है तो आज भी बिहार हर क्षेत्र में अपने ज्ञान का लोहा मनवा रहा है।
बिहार के महाविद्वान पंडित मंडन मिश्र की मौलिक कथा से तो आप भी परिचित होंगे, जिनकी धर्मपत्नी विदुषी भारती ने आदि शंकराचार्य जैसे प्रकांड विद्वान् को शास्त्रार्थ में परास्त कर दिया था।
शंकराचार्य आम तौर पर अद्वैत परम्परा के मठों के मुखिया के लिये प्रयोग की जाने वाली उपाधि है। शंकराचार्य हिन्दू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद है जो बौद्ध धर्म में दलाईलामा एवं ईसाई धर्म में पोप के समकक्ष है। इस पद की परम्परा आदि गुरु शंकराचार्य ने आरम्भ की। यह उपाधि आदि शंकराचार्य, जो कि एक हिन्दू दार्शनिक एवं धर्मगुरु थे एवं जिन्हें हिन्दुत्व के सबसे महान प्रतिनिधियों में से एक के तौर पर जाना जाता है, के नाम पर है। उन्हें जगद्गुरु के तौर पर सम्मान प्राप्त है एक उपाधि जो कि पहले केवल भगवानकृष्ण को ही प्राप्त थी, उन्होंने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा हेतु भारत के चार क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किये तथा शंकराचार्य पद की स्थापना करके उन पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को आसीन किया। तबसे इन चारों मठों में शंकराचार्य पद की परम्परा चली आ रही है।
चार मठ निम्नलिखित हैं:
उत्तरामण्य मठ या उत्तर मठ, ज्योतिर्मठ जो जोशीमठ में स्थित है।
पूर्वामण्य मठ या पूर्वी मठ, गोवर्धन मठ जो पुरी में स्थित है।
दक्षिणामण्य मठ या दक्षिणी मठ, शृंगेरी शारदा पीठ जो शृंगेरी में स्थित है।
पश्चिमामण्य मठ या पश्चिमी मठ, द्वारिका पीठ जो द्वारिका में स्थित है।
उपर्युक्त सन्दर्भ को यहाँ रखने का कारण आपको बिहार के हरीपुर बख्शी टोला , मधुबनी निवासी स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती के बारे में बताना है। वे 10वीं तक पढ़ने के बाद वेदांगों के अध्ययन के लिए काशी आ गए थे। वे 1992 ई० में पुरी पीठ के 145वें शंकराचार्य बनाए गए। इसके साथ ही गणित के दार्शनिक पक्ष पर उनका चिंतन शुरू हुआ। 2006 में ‘अंक पद्यम’ नामक पुस्तक के रूप में यह चिंतन सामने आया।
कंप्यूटर बाइनरी अंकों पर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने सवाल उठाए हैं। सनातन धर्म के पथ प्रदर्शक माने जाने वाले शंकराचार्य ने “द्वैंक पद्धति” (बाइनरी सिस्टम) नामक शोध पुस्तक में इसे सिद्ध भी किया है।
पुस्तक में कहा गया है कि बाइनरी अंकों में एक सीमा के बाद तारतम्यता भंग हो जाती है। स्वामी निश्चलानंद अब तक गणित की १० पुस्तकें लिख चुके हैं। इनमें अंक पद्यम या सूत्र गणित, स्वस्तिक गणित, गणित दर्शन, शून्येक सिद्धि, द्वैंक पद्धति आदि शामिल है। इन पुस्तकों पर ऑक्सफोर्ड से लेकर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयों तक शोध हो रहे हैं।
स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जगन्नाथपुरी स्थित गोवर्धनपीठ के शंकराचार्य हैं। शंकराचार्य के अनुसार शुक्ल यजुर्वेद के तहत आने वाला रुद्राष्टाध्यायी इसका बेहतरीन उदाहरण है। इसमें श्लोक आते हैं एका च मे, पंच च मे, सप्त च मे आदि। यह तथा ऐसे अनगिनत ऋचाएं यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि वेदकाल के भारतीय ऋषि न सिर्फ अंकों से परिचित थे वरन गणित में आज प्रचलित विभिन्न क्रियाएं जिसमें जोड़, घटाना, गुणा, भाग से लेकर बीजगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति आदि शामिल हैं, से भी परिचित थे।
ज्ञात हो गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ ने वेदों की ऋचाओं में गणित के सूत्र खोज निकाले थे और वैदिक गणित के नाम से दुनिया को परिचित कराया था। बिना कैल्क्युलेटर या कंप्यूटर बड़ी से बड़ी और जटिल गणना सरलता से करने की इस पद्धति की आज दुनिया कायल है।
यह हमारे लिए अत्यंत गर्व का विषय है कि हमारे बिहार में अवतरित स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती सनातन धर्म के सर्वोच्च पद, शंकराचार्य, पर पुरी पीठ में आसीन हैं।
विद्वान् सर्वत्र पूजयेत्।
अनुच्छेद लेखन- अमित शाण्डिल्य