आरा वो छोटी सी जगह है जिसके जरिए आप बिहार और बिहारियों की जीवटता को महसूस कर सकते हैं। यहाँ की बोली से लेकर पढ़ने के तरीके तक पर आपका ध्यान जाएगा और फिर ये शहर आपके दिल में भी छोटा सा घर बना लेगा। यकीन नहीं तो रवीश कुमार की जुबानी सुनिए आरा की कहानी, जब वो बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान आरा आये और फिर इसे भूल नहीं पाए।
आरा एक आदर्श शहर है। खाँटी लोग अगर इस धरती पर जहाँ कहीं भी बचे हुए हैं तो उनमें से एक आरा भी है। यहाँ के लोगों के स्वभाव में अदम्य साहस और दुस्साहस का मणिकांचन योग मिलता है। आरा के लोगों को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने बदलाव को बहुत धीरे धीरे आने दिया है। पतलून सिलाने के बाद भी अपनी लुंगी को खूँटी पर टाँगे रखा और टी शर्ट के आ जाने को बाद भी गंजी का परित्याग नहीं गया। अंग्रेज़ी भाषा को भोजपुरी के फार्मेट में स्वीकार किया। हिन्दी को भोजपुरी पर हावी होने नहीं दिया। आरा को वीर कुँवर सिंह के साहस पर आज भी गर्व है। आरा का एक दोस्त भी है जिसका नाम बलिया है। गानों में आरा के साथ बलिया भी आता है। न्यूटन को भी पता नहीं चला कि आरा हिलता है तो बलिया क्यों हिलता है और जब आरा बलिया हिल जाता है तो किस शक्ति की प्रतिक्रिया में छपरा और कलकत्ता हिल जाता है। इस बात का पता लगाने के लिए लचकते मटकते अनारकली आ रही है।
मैं फ़िल्म कहानी नहीं जानता मगर बता सकता हूँ कि आरा की अनारकली आगरा वाले सलीम की अनारकली से काफी अलग होगी। वो अकबर के दरबार की अनारकली थी। ये अविनाश दास की कल्पना की अनारकली है।पहली बार आरा को किसी हिन्दी फ़िल्म में स्थान मिला है। भोजपुरी फ़िल्मों में आरा का वही स्थान है जो यशराज फ़िल्म के लिए स्वीटजरलैंड का है। किसी हिन्दी फ़िल्म को पहली बार आरा का ख़्याल आया है।आरा की अनारकली आ रही है। हमारे मित्र अविनाश दास मुंबई जाकर निर्देशक हो गए हैं। उन्हीं का सब किया धरा है इस फ़िल्म में।
बलिया वाले बलियाटिक होते हैं और आरा वाले आराइट। आप आराइट नहीं हैं तो मेरी किसी बात को समझ नहीं सकते। आराइट नहीं है तो मुमकिन है कि आप बॉक्साइट हैं।आरा के पड़ोसी बक्सर के लोगों को फ़िज़िक्स में बॉक्साइट कहते हैं। आरा- बक्सर मिल जाये तो उसे डाइनामाइट कहते हैं। छपरा दियासलाई के दर्जे से ऊपर उठ नहीं सका तो मैं क्या कर सकता हूँ ।
भोजपुरी फ़िल्मों ने आरा की भद्रता को कभी उभरने नहीं दिया। हिन्दी और अंग्रेजी से बग़ावत के कारण आरा को सज़ा मिली। वहाँ के दुस्साहसी लोगों ने इस पहचान को सीने से लगा लिया। इन गानों में आज भी आरावासी या आराइट को उदंड शहरी के रूप में चित्रित किया जाता रहा है। आरावासी या आराइट का मतलब लंपट।
मैं अक्तूबर 2015 के बाद से आरा को लेकर भावुक हो जाता हूँ। आरा वाले भी चौंक जायेंगे कि मैंने आरा को आदर्श शहर क्यों कहा। बिहार चुनाव के वक्त महाराजा कालेज गया था। आठ बजे का वक्त होगा। छुट्टी के कारण कालेज के प्रांगण या अहाते में कोई छात्र नहीं दिख रहा था। हर दीवार और खंभे के नीचे बैठा छात्र पढ़ाई में व्यस्त था।
इसे आरा हाउस कहते हैं जहाँ वीर कुँवर सिंह ने अंग्रेज़ों से लोहा लिया था। अब इस इमारत की दरो दीवार से चिपके ये नौजवान लोहे की रेलगाड़ी में ड्राईवर और गार्ड बनने के लिए तैयारी करते हैं।
चप्पे चप्पे पर दो या दो से अधिक लड़के पढ़ाई कर रहे थे। सब इतने ध्यानमग्न कि मेरा कैमरा घूमता गया मगर किसी ने सर उठाकर देखा तक नहीं कि कौन आया है। किसी गाने में आरा की इस छवि का ज़िकर नहीं मिलेगा। आरा सबसे प्यारा ।
इस छज्जे पर बैठा यह छात्र अंग्रेज़ी को साध रहा था। जिस शहर के लड़के सुबह शाम पढ़ाई में व्यस्त रहते हों,उनका शहर ख़राब हो ही नहीं सकता। बिहार चुनाव के समय ये सारे केंद्र सरकार की भर्तियों की लिस्ट लेकर बैठे थे कि इसमें बहाली नहीं आई। उसमें बहाली नहीं आई। कई लड़कों ने बताया था कि हम सबने मोदी मोदी किया था कि नौकरी मिलेगी। नहीं मिली तो अब मोदी मोदी नहीं करेंगे। रेलवे में रोज़गार की अब क्या हालत है, पता नहीं। आरा के लड़कों को किसी नंबर वन चैनलवा नहीं बताया था बल्कि उन्हें पता था कि वे दिन रात जिसकी तैयारी में लगे हैं उसकी भर्ती नहीं आ रही है।
इस पेड़ के नीचे बहुत से छात्र मिलजुल कर एक दूसरे की कमज़ोरियों का समाधान कर रहे थे। महँगी कोचिंग से खुद को बचाने का सामूहिक तरीका आरा की देन है। यहीं पीले टी शर्ट में मोहम्मद औरंगजेब और नीले टी शर्ट में राहुल से मुलाकात हुई थी। राहुल ने कहा था कि औरंगजेबवा यार है। इसकी जेब से हमलोग भुजा निकाल कर खा लेते हैं।
स्वरा भास्कर अनारकली की भूमिका में हैं। आरा की अनारकली आसान फ़िल्म नहीं होनी चाहिए। अंदाज़ कर सकता हूँ कि स्वरा का अभिनय अनारकली के बहाने आरा की मुक्ति का अभिनय होगा। इस फ़िल्म से एक नया आरा सामने आएगा? मुझे नहीं पता कि अनारकली आरा पर ग़ज़ब ढाएगी या क़हर ढाएगी लेकिन इतना पता है कि आरा आगे निकल चुका है। वो अब लड़ाकू नहीं,पढ़ाकू शहर है। फिल्म 24 मार्च को फ़िल्म आ रही है।
Courtesy: कस्बा