आज हम आपको बिहार के एक शख्सियत की कहानी बताने जा रहे हैं जो शारिरीक रूप से दिव्यांश है लेकिन अपने हौसले के बदोलत शिक्षा की अलख जगाकर समाज के लिये एक मिशाल पेश कर रहे हैं.इस शख्सियत का नाम निरंजन झा जो दृष्टिहीन हैं।
पूर्णिया के रहने वाले निरंजन झा दृष्टिहीन होने के बावजूद बच्चों में शहर के गुलाबबाग शनिमंदिर मुहल्ला में टीन के शेड में गरीबी का दंश झेल रहे 40 वर्षीय दिव्यांग निरंजन झा आज किसी पहचान के मुहताज नहीं हैं.
लोग निरंजन को मास्टर साहब के नाम से सम्मान के साथ पुकारते हैं. दरअसल बचपन में ही निरंजन के दोनों आंखो की रोशनी चली गयी. इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी अपने बुलंद हौसले के कारण उसने कुछ करने की ठान ली. निरंजन का कहना है कि उन्होंने लुई ब्रेल की कहानी से प्रेरणा ली और ब्रेल लिपि से पढ़ना सीखा. कुछ दिनों तक तो उन्होंने एक स्कूल चलाया लेकिन बाद में घर पर ही ट्यूशन पढ़ाने लगे.
लोग निरंजन को मास्टर साहब के नाम से सम्मान के साथ पुकारते हैं. दरअसल बचपन में ही निरंजन के दोनों आंखो की रोशनी चली गयी. इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी अपने बुलंद हौसले के कारण उसने कुछ करने की ठान ली. निरंजन का कहना है कि उन्होंने लुई ब्रेल की कहानी से प्रेरणा ली और ब्रेल लिपि से पढ़ना सीखा. कुछ दिनों तक तो उन्होंने एक स्कूल चलाया लेकिन बाद में घर पर ही ट्यूशन पढ़ाने लगे.
निरंजन झा को लोग मास्टर साहब के नाम से सम्मान के साथ पुकारते हैं. दरअसल बचपन में ही निरंजन के दोनों आंखो की रोशनी चली गयी. इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी अपने बुलंद हौसले के कारण उसने कुछ करने की ठान ली. निरंजन का कहना है कि उन्होंने लुई ब्रेल की कहानी से प्रेरणा ली और ब्रेल लिपि से पढ़ना सीखा और आज वे बच्चों के बीच शिक्षा अलख जगा रहे हैं।