( खगडिया से मुकेश कुमार मिश्र )
“तुझको मुबारक तेरी खुशियाँ फूले फले तेरा देश हम तो चले परदेश”
उक्त गाने की पंक्तियों छोटे से गाँव में जन्म लिये संगीत कलाकार धीरज कांत पर सटीक बैठती हैं। गांव के माहौल में भी धीरज कांत एवं उनकी पत्नी नीलू ने संगीत के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बना ली है। राजधानी दिल्ली में युगल जोडी काफी लोकप्रिय हो गए हैं।
धीरज कांत का जन्म भागलपुर जिले के नारायण पुर प्रखंड के गनोल गांव में हुआ था। 16 वर्ष की उम्र में माँ एवं पिताजी चल बसे।इन्हें बचपन से संगीत का शौक था। खगडिया जिले के परवत्ता प्रखंड के अगुवानी डुमरिया बुजुर्ग में अपने रिश्तेदार अमर नाथ चौधरी के यहाँ रहकर संगीत के धनी पंडित रामावतार सिंह से छह साल तक शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त किया। एवं बिहार के मशहूर चर्चित संगीत कलाकार श्री फणीभूषण चौधरी से सुगम संगीत की शिक्षा प्राप्त कर उनके द्वारा लिखित गजल , भजन गाकर संगीत के क्षेत्र में काफी लोकप्रिय हो गए। वहीं ईलाके के मशहूर संगीतकलाकार राजीव सिंह प्ररेणा दायक बने । जिन्होंने धीरज कांत के सपने को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। तीनों व्यक्तियों के माध्यम से इनके जीवन में एक नया मोड़ आया। आज इसी का नतीजा है कि लोग इनके संगीत के दीवाने हो गए हैं।
वहीं संगीत के क्षेत्र में गोगरी अनुमंडल के शेर चकला पंचायत की पूर्व मुखिया अनिता देवी की पुत्री नीलू भी संगीत की क्षेत्र में आगे बढ़ रही थी । संगीत की करिश्मा हीं कहें इन दोनों संगीत प्रेमी प्रेम के बंधन में बंध गए। ओर दोनों ने शादी कर ली। युगल जोड़ी प्रयाग संगीत महा विद्यालय इलाहाबाद से संगीत एवं तबला दावन से स्नातक किया है। भजन, सुगम संगीत के क्षेत्र में एक अलग पहचान बनाकर धूम मचा रही है। दौनों युगल जोड़ी आकाशवाणी भागलपुर से जुड़े हुए हैं तथा बीच बीच में सेवा प्रदान कर रही हैं।धीरज कांत बताते हैं कि संगीत एक साधना है संगीत के क्षेत्र में” जो करेगा रियाज वहीं करेगा संगीत पर राज” एवं आगे बढ़ने के लिए ईमानदारी की आवश्यकता है।
धीरज कांत 27 वर्ष की आयु में ही देश के सभी प्रान्तों में अपने गायन से लोगों का दिल जीत लिया है। दोनों युगल जोड़ी को संगीतकार रवीन्द्र जैन से भी सम्मानित किया गया था। देश के प्रथम महिला आइपीएस किरन वेदी के हाथों संगीत पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं।2007 मे आयोजित बिहार झारखंड लोक संगीत एवं सुगम संगीत प्रतियोगिता में धीरज कांत प्रथम एवं द्वितीय स्थान नीलू को प्राप्त हुआ था। इनके अलावा दोनों युगल जोड़ी को उनके गायन के लिए दर्जनों पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।धीरज कांत बताते हैं कि अगुवानी डुमरिया बुजुर्ग की धरती पर जीवन मिला है। इसी धरती ने मेरे सपनों को उड़ान दी है। मैं संगीत गायन के पूर्व अपने गुरु जन एवं अपने परिजन बाबा स्व० शिव धारी सिंह एवं पिताजी स्व० अजीत मिश्र को स्मरण करता हूँ। उसके बाद गायन का कार्य प्रारंभ होती हैं। तबला वादन में मेरे साथ मुकेश जी का सराहनीय योगदान बरकरार है । 2011 में संगीत शिक्षक की नौकरी केन्द्रीय विद्यालय किशनगंज में मिली थी। 28 दिनों की सेवा देने के बाद त्याग पत्र दे दिया। उन्होंने बताया कि गांव कस्बे के गरीब बच्चे जो संगीत सीखना चाहते हैं उनके लिए दिल्ली में संगीत कला केन्द्र चला रहा हूँ।मेरी चाहत है कि गांव कस्बे के बच्चे भी संगीत के क्षेत्र में परचम लहराये। मालूम हो कि धीरज कांत के बाबा स्व शिवधारी सिंह भागलपुर जिले के बिहपुर विधान सभा क्षेत्र से दो बार विधायक रह चुके थे। संगीत के धनी अगुवानी डुमरिया बुजुर्ग निवासी पंडित रामावतार सिंह से दर्जनों कलाकारों ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली। आज उन्हीं में एक धीरज कांत जो संगीत के क्षेत्र में अपने गुरु के आशीर्वाद से बिहार का नाम रोशन कर रहे है। बिहार में अकसर धीरज कांत का कार्यक्रम हुआ करता है। खासकरके अंग एवं कोसी क्षेत्र के संगीत प्रेमियों को उनसे काफी लगाव है।