बिहार ही नहीं,भारत का इकलौता गांव जिसने तीन पद्म श्री पुरस्कार अपने नाम किया।
मधुबनी बिहार राज्य का एक ऐसा गांव है जिसने एक नहीं बल्कि तीन-तीन पद्मश्री पुरस्कार अपने नाम किया है।
अभी तीसरा पद्मश्री पुरस्कार वौआ देवी को मिला है। मधुबनी के इस गांव का नाम है जितवारपुर।जिसकी मिट्टी के हर कण में जीत ही जीत है।
दीपक कुमार,मधुबनी
मधुबनी जिला के जितवारपुर गांव की 75 वर्षीया बौआ देवी को पद्मश्री अवार्ड के लिए चयनित किया गया है। मिथिला पेंटिंग के गढ़ माने जाने वाले जितवारपुर गांव की दो । महान शिल्पी जगदम्बा देवी और सीता देवी पद्मश्री अवार्ड से पहले ही सम्मानित हो चुकी हैं।
मधुबनी जिला मुख्यालय से दस किलोमीटर दूर रहिका प्रखंड के नाजिरपुर पंचायत का जितवारपुर गांव आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। 670 परिवारों को अपने दामन में समेटे इस गांव का इतिहास गौरवशाली है। उसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इस गांव की तीन शिल्पियों को पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है।
देश के इतिहास में यह पहली मिसाल है जब एक ही गांव को तीन पद्मश्री मिले हों। अब की बार तीसरी बार सिद्धहस्त शिल्पी बौआ देवी को यह सम्मान मिला है।
इससे पहले जगदम्बो देवी और सीता देव को यह सम्मान मिल चुका है। ये दोनों भी इसी जितवारपुर गांव की निवासी रही हैं। सीता देवी का देहांत 2005 में हुआ।
लगभग साठ वर्षों से बौआ देवी मिथिला पेंटिंग से जुड़ी हुई हैं। बौआ देवी को 1985-86 में नेशनल अवार्ड मिल चुका है। वह मिथिला म्यूजियम जापान 11 बार जा चुकी है। जापान के म्यूजियम में मिथिला पेंटिंग की जीवंत कलाकृतियां उकेरी है।
बौआ देवी बताती है कि तरह वर्ष की उम्र से ही मिथिला पेंटिंग बना रही हैं। नेशनल अवार्ड मिलने के बाद से अब तक लगातार उनको हर मुकाम पर सफलता मिली। वह देश के कोने-कोने में मिथिला पेंटिंग को लेकर हर मंच से सम्मानित हो चुकी हैं।
उनका पूरा परिवार इस विधा से जुड़ा है। वे अपने दो बेटे अमरेश कुमार झा,विमलेश कुमार झा व तीन बेटियां रामरीता देवी, सविता देवी और नविता झा को मिथिला पेंटिंग में सिद्धहस्त कर चुकी हैं।
गांव के हर घर में यह कला रचती-बसती है। गांव के हर समुदाय के लोगों में कला कूट-कूट कर भरी हुई है।मिथिला आर्ट और कल्चर को करीब से जानने वाली पत्रकार
कुमुद सिंह कहती हैं मिथिला स्कूल आफ आर्ट को संरक्षित करने में जो भाूमिका इस गांव की महिलाओं की रही है वो अतुल्यनीय है। कला को संरक्षित करने में जितवारपुर की महिलाओं ने अपना पूरा जीवन सौंप दिया, उस नजर से देंखें तो यह पुरस्कार इन्हें काफी देर से मिला है।
मिथिला स्कूल आफ आर्ट को संरक्षित करने में जो भाूमिका इस गांव की महिलाओं की रही है वो अतुल्यनीय है। कला को संरक्षित करने में जितवारपुर की महिलाओं ने अपना पूरा जीवन सौंप दिया, उस नजर से देंखें तो यह पुरस्कार इन्हें काफी देर से मिला है।
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