“ जहां चाह वहाँ राह ” इस कहावत को सत्यता का रूप देती एक कर्मठ नारीशक्ति की कहानी आज आपन बिहार आप सब के साथ साझा कर रही है ।
विभा श्रीवास्तव एक ऐसा नाम है जो बाकी सभी महिलाओं की तरह ही साधारण हुआ करती थी, लेकिन आज उनके मन के निश्चय, और जुझारूपन की वजह से वो कई दिलो पे राज कर रही हैं ।
विभा अपने बिहार के छपरा ज़िला के मकेर गाँव से संबंध रखती हैं । आज से लगभग 10 साल पहले विभा को बस उनके घर वाले, सगे संबंधी और आस पास के कुछ लोग जाना करते थे । लेकिन विभा के मन मे कुछ करने और समाज के हित के लिए जो श्रद्धा थी उसने उन्हे आज एक जानी मानी सफल सामाजिक उद्यमी बना दिया और आज विभा पटना के महिला उद्यमियों मे आती है जिनकी कला भी उतनी ही अद्वितीय रचना है ।
दरअसल विभा क्रोसिया कला से निर्मित आभूषण और वस्त्र तैयार करती है और पटना के एक रेनबो होम नामक गरीब बच्चो को सहायता देती संस्थान मे अपना योगदान बतौर ट्रेनर दे रही हैं ।
विभा का मन हमेशा से ही समाज के हित के लिए कुछ नया करने और महिला शशक्तिकरण को बढ़ावा देने का रहा है ।
जब आपन बिहार की टीम ने विभा से बात की तो उन्होने बताया की:
“ मेरी शादी के बाद से ही मुझे मन था की मैं आगे पढ़ाई कर पाऊँ, लेकिन गाँव के माहौल में होने की वजह से और कुछ सामाजिक कारणो की वजह से मैं आगे पढ़ाई नहीं कर पायी और मेरी पढ़ाई सिर्फ 10वी तक ही हो के रह गयी । एक समय था जब मैं चाहती तो थी कुछ करना लेकिन मुझे अपने ही घर और समाज का साथ नहीं मिलता था । मैंने तब भी हार नहीं मानी, और मैं अपने आस पास के कुछ लड़कियों को तभी से छोटी छोटी कलाओं मे निपुण बनाने लगी थी, जितना मुझे आता था उतना ही साझा करती लेकिन खुद को संतुष्ट नहीं मानती थी क्यूंकी मुझे भूख थी आगे बढ्ने की । मुझे और भी बहुत कुछ सीखना और सिखाना था । तभी मेरे बेटे और बेटी ने 10वी की परीक्षा बहुत अच्छे अंको से उत्तीर्ण की और मैंने मन बना लिया की अपने बेटे-बेटी को आगे की पढ़ाई के लिए शहर ले के जाऊँगी । वो मेरे जीवन के सबसे महत्वपूर्ण फैसलों मे से एक था । मैंने पटना आने का फैसला लिया, थोड़े दिनों तक घर मे मेरा विरोध भी हुआ था इस बात को लेके लेकिन कुछ ही दिनों मे सब कुछ फिर से ठीक हो गया । पटना आने के बाद मैंने अपना संपर्क का दायरा बढ़ाना शुरू किया और धीरे धीरे कुछ महत्वपूर्ण हस्तियों की बदौलत आज यहाँ तक हूँ । मेरी प्रेरणास्रोत रहीं उषा आंटी (उषा झा) की मैं आभारी हूँ, जिनके दिशा निर्देश की बदौलत मुझे यहाँ तक आने मे सफलता प्राप्त हुई है । भविष्य मे समाज के योग्य लड़कियों तथा महिलाओं को अपने क्रोसिया के कलाओं को सीखा के उन्हे स्वरोजगार देने मे मदद करने के लिए बढ़ रहीं हूँ ।
अब विभा की उपलब्धियों को एक पहचान मिलने लगी है, इससे पहले भी विभा अपने इस कौशल की वजह से सुर्खियों मे रह चुकी है, और कई पुरस्कार और सम्मान की भागी भी बन चुकी है ।
विभा को क्रोसिया कला के अलावे कविता लिखना भी बहुत प्रिय है । वो खाली समय मे प्रेरणा दायक कवितायेँ लिखना पसंद करती हैं, जिसे पढ़ कर दूसरे प्रेरणा ले सके और आपने हौसलों को एक उड़ान दे सके ।
विभा कहती हैं की शुरू मे तार काट कर क्रोसिया बनाई और फिर उससे अपनी कला को निखारने लगी थी । कहीं ना कहीं साथ नहीं मिला था समाज का और पैसों की कमी ने उन्हे ऐसे जुगाडु तकनीक का इस्तेमाल करने पे मजबूर किया था । बचपन के कुरुश और कांटे चलाने के शौख ने एक नया रूप ले लिया और फिर इस तरह से इन्होंने पंख लगाने शुरू किए अपने सपनों मे । उनका कहना है की शुरुआत मे साथ नहीं मिला था घर वालो का भी लेकिन धीरे धीरे अब सभी उनका साथ देते हैं और उन्हे प्रेरित भी करते हैं आगे की तरफ बढ्ने को । वो अपने इस सफलता का श्रेय उषा झा, अपने परिवार वालो के अलावे अपने भाइयों को बहुत ज्यादा देती हैं । उनका कहना है की उनके चारो भाइयों ने उन्हे हर कदम पर प्रेरित किया है । जब भी उन्हे कोई जरूरत होती तो वो उनसे कहती और उनके भाई उन्हे पूरी करने मे कोई कसर नहीं छोड़ते । लेकिन उनका मन खुद के बल बूते आगे बढ्ने का था और उन्होने वही किया । आज वो कुरुश और कांटो से निर्मित उत्पाद बनाती हैं और उषा झा के माध्यम से इन्हे अमेरिका तक निर्यात करवा पाने मे सफल हो पायी हैं । उनका मानना है की हौसले से उड़ान भड़ी जा सकती है, बस मन मे हौसला होना चाहिए की मुझे ये करना है और मैं ये कर सकती हूँ फिर आपको रास्ते खुद ही मिलने लगेंगे । यदि कुछ चाहिए आगे बढ्ने को आपके लिए तो वो है आप का “आत्मविश्वाश” ।
विभा आगे चल के पटना मे एक ट्रेनिंग सेंटर खोलना चाहती हैं जहां वो हर तरह के उत्साही और योग्य लड़कियों तथा महिलाओं के अलग अलग कलाओं मे निपुण बना सके और उन्हे स्वावलंबी बनने मे उनकी मदद कर सकें ।