अक्षर की पहचान मात्र रखने वाले एक संत ने शिक्षा की अलख जगाई है। अब तक दो इंटर और एक डिग्री कॉलेज की स्थापना करा चुके हैं। अब यूनिवर्सिटी खोलने के लिए प्रयासरत हैं। यह जज्बा,जुनून और समर्पण सारण के सराय बक्स में एक मठ में रह रहे संत श्रीधर दास का है। वे संत देवराहा बाबा के शिष्य हैं।
जहां 10वीं के बाद छूट जाती थी पढ़ाई,वहां अब लड़कियां भी कर रही ग्रैजुएशन…
- श्रीधर दास करीब 35 वर्षों तक साधना में रहे। 1978 में अपने गांव दिघवारा हराजी लौटे। फिर समाज के लिए कुछ करने की इच्छा लेकर गड़खा आ गए।
- बचपन में उनका नाम शिवपूजन राय था। जब वे गृहत्याग के बाद देवराहा बाबा से मिले थे तो उनकी उम्र 17 साल थी। देवराहा बाबा ने ही उन्हें श्रीधर दास का नाम दिया था।
- गड़खा आने के बाद वे गांव-गांव घूमे और कॉलेज के लिए सहयोग मांगा। एक एक रुपया जमाकर 1984 में कदना,गड़खा में देवरहवा बाबा श्रीधर दास इंटर कॉलेज की नींव रखी।
- कॉलेज में पढ़ाई शुरू हुई। इसके बाद श्रीधर दास ने 1988 में भेल्दी में इसी नाम से कॉलेज खोला। फिर भिक्षाटन शुरू किया और रामपुर में 10 एकड़ जमीन खरीद डिग्री कॉलेज का अलग भवन बनवाया।
- गड़खा और भेल्दी जिला मुख्यालय से 15-25 किमी.दूर है। पहले यहां एक भी कॉलेज नहीं था। लड़के 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ देते थे। लेकिन कॉलेज खुलने के बाद लड़कियां भी स्नातक तक पढ़ाई कर रही हैं।
दूसरी के बाद नहीं पढ़ पाए हमेशा इसकी टीस रही
श्रीधर दास जब दूसरी कक्षा में थे तो स्कूल के शिक्षक की प्रताड़ना से तंग आकर पढ़ाई छोड़ दी। पढ़ाई छूटने की टीस हमेशा सालती रही।
मन में ठानी कि जीवन में ऐसा जरूर करेंगे कि हजारों लोग पढ़-लिख सकें। उनका बचपन का नाम शिवपूजन था।
किशोरावस्था में उन्होंने धन कमाने की लालसा में घर छोड़ा था,पर किस्मत ने देवराहा बाबा तक पहुंचा दिया।