जब जब पड़ोसी मुल्क हैवानियत दिखाता आया है हमारे हीरो , हमारे रक्षक अपनी जान पे खेल के देश के करोडों लोगों की जान बचाते आये हैं ! कभी कभी वो दुर्दिन भी देखना पड़ता है जब हमारे देश के जवान अपनी जान तक निछावर कर देते हैं माँ भारती के लिए ! कोहिनूर हीरे से भी बेशकीमती है भारत माँ का हर एक लाल जो लाज की रक्षा करता है। सीमओं पे आंच नहीं आने देता जीते जी ! इस हीरे की भी कुछ पीड़ा है जो जाने अनजाने हम कच्चे अयोग्य प्राणी पहुँचा बैठते हैं। समझदार और जिम्मेदार देशभक्त तो आज भी हर हाल में सेना व सेना के परिवार के साथ हमेशा खड़ा मिलता है।
पर दुर्भाग्य ये है कि समाज के कुछ लोग आज भी इनकी कुर्बानी को समझ पाने की समझ पैदा नहीं कर पाए हैं। ये दुःख और पीड़ा एक कवि / लेखक ने अपने लेख में दर्शाया है। मेरा मानना है कि ये पढ़ने के बाद शायद आप निःशब्द हो जायें।
अगर इस लेख की भावना आप तक पहुँच पाती है तो आपसे विनम्र विनती है कि आज के बाद कोई भी देश का सैनिक / जवान सिपाही मिले तो गर्व से खड़े हो के इन देश के रक्षक बहादुरों का सलाम कर के, ताली बजा के सम्मान करें। साथ ही इनकी उपस्थिति या अनुपस्तिथि में इनके परिवार की रक्षा अपना नैतिक कर्त्तव्य समझ के करें।
शहीदों की शहादत और मीडिया कवरेज
कभी आपने शहीदों की शहादत के बाद उनके घर पर हो रही मिडिया कवरेज को गौर से देखा है ? क्या आपने नोटिस किया कि घर के कोने में खड़ी चारपाई कितनी पुरानी हो चुकी है, क्या आपने ये जानने की कोशिश की जो शख्स देश की खातिर मिट्टी में लीन होने जा रहा है उसके घर की दीवार ना जाने कबसे पेंट भी नहीं हुई है, कई जवानों के घर तो मिट्टी के ही दिखते हैं। हाँ उन दीवारों पर किये गए वादे जरूर दिख जाते हैं जो उस जवान ने किया था कि कुछ और साल में ये दीवारें ये मिट्टी से ईंट की हो जाएँगी |
कभी ध्यान दिया है उन रोते बिलखते बच्चों पर जो उन सपनों को लेकर रो रहे होते हैं जो उनके पापा ने अगली छुट्टी में आकर पूरा करने का वादा कर गये थे। गौर से देखिएगा उन बच्चों के कपड़ों को वो किसी शोपिंग माल से ख़रीदे नहीं लगते हैं, ना ही किसी बड़ी मॉडर्न फैशन की दूकान से, ये उन्हीं दुकानों के लगते हैं जहाँ पर इस बात पर उधार मिल जाती है कि ‘बेटा छुट्टी पर आएगा तो चुका देंगे’ ।
कभी कैमरे के उस नज़र पर गौर कीजियेगा जो वो देखना और दिखाना नहीं चाहता है। जरा उस विधवा की तरफ ध्यान दीजियेगा, जिसको इससे फर्क नहीं पड़ता कि उसे नेशनल टीवी पर दिखाया जा रहा है। उसका पल्लू अपने दौर के सबसे निचले स्थान पर गिरा हुआ है। वो रिपोर्टर जो उससे अजीब से लेकिन रटा रटाया सवाल पूछ रहा है उसे ठीक से रोने भी नहीं दे रहा । उसे क्या फर्क पड़ता है “क्या आपको लगता है कि अब पाकिस्तान पर अटैक करके उसे बर्बाद कर देना चाहिए” सवाल पर उसके जवाब का कितना असर होगा, वो तो इस बात पर घबरा रही है कि वो पड़ोसी जो उसकी मुट्ठी भर जमीन को सालों से हथियाने की कोशिश कर रहा है अब उससे उसे कौन बचाएगा। कौन बचाएगा उसे उन नज़रों से जो महज चंद दिनों बाद आंसुओं के सूखते ही उसे घूरना शुरू कर देंगी । उसके पति ने देश बचाने के लिए कुर्बानी दे दी और अब उसे अपने नन्ही सी बच्ची समेत खुद को बचाने के लिए अपनी जवान जिंदगी की क़ुरबानी दिख रही है ।
कैमरा उन खामोश नज़रों के पीछे भी कुछ कहना चाह रहा है जो अभी कुछ वक्त पहले चमकते-चहकते हुए अपने आपको एक सेना के जवान का पिता बता रहीं थी। इन आँखों को तो ठीक से रोना भी नहीं आता और ना ही इतनी हिम्मत बची है कि बाकि रोती हुई आँखों को चुप भी करा सकें। रिपोर्टर यहाँ भी कुछ वैसा ही सवाल पूछ रहा है कि शायद कुछ तड़कता भड़कता जवाब आ जाए, लेकिन बूढी आँखें तो कतई खामोश हैं। ठीक से हिंदी भी बोल नहीं पाने वाली जबान अपने दर्द को समेटने की कोशिश करने में असमर्थ हैं, लेकिन बोले तो बोले कैसे कैमरे और माइक के सामने बोलने और भावुक होने का न ही कोई अनुभव है और ना ही आदत। ये काम तो नेताओं के वश का ही है ।
इसी बीच नेता जी की घोषणा भी हो जाती है कि पुरे 5 लाख शहीद के परिवार को मिलेंगे, ब्रेकिंग न्यूज़ में नेता जी के इस बयान को शहीद के परिवार से ज्यादा कवरेज मिलती है, और शहीद का बूढ़ा बाप इस बात से घबरा रहा है कि बुढ़ापे में इन 5 लाख को पाने के लिए कितने चक्कर लगाने पड़ेंगे ।
खैर कैमरे बहुत कुछ बोलते हैं आगे से जब भी किसी शहीद के घर की कवरेज हो तो उसके आगे भी वो देखने की कोशिश कीजियेगा जो रिपोर्टर छोड़ देता है या जिसको कवर करने की आजादी नहीं होती उसे ।
नेताओं का क्या है, वो तो ट्विटर पर संवेदना व्यक्त करते हुए 140 शब्दों की लिमिट्स में से भी कुछ बचा लेते हैं। खैर जिनके घर खानदान कोई शहीद न हुआ हो वो इसका मतलब 15 अगस्त और 26जनवरी को बोले गए भाषण के कुछ लाइनों के इतर नहीं समझ पाते हैं। छोड़िये कुछ लोग इसीलिए पैदा होते हैं कि हर चीजों को अपने मतलब के हिसाब से समझ सकें।
————- जय हिन्द ! ————
लेखक से कुछ दिन पहले भी मुलाकात हुई थी। देश और सीमा के तनाव पे भी बात हुई देर तक ! शहीदों के लिए दिल में असीम सम्मान को ‘आपन बिहार’ टीम और इन्होंने एक दुसरे से साझा किया ! पर ये पता नहीं था कि अगले ही दिन इतना विशेष दिल को छू लेने वाला लेख लिख देंगे ! जब पढ़ा तो पुनः फ़ोन पे बात हुई , और अनुमति मांगी कि मैं भी ‘आपन बिहार’ के साथी देशभक्तों तक उनका लेख पहुँचाना चाहता हूँ , उनकी हामी पर आपलोग से साझा करने का सौभग्य मिला।
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लेखक श्री प्रवीण कुमार राजभर जो पेशे से एक प्रोफेशनल ट्रेनर हैं। दस साल के ट्रेनिंग के अनुभव में कंपनियों में बैंकिंग, पर्सनालिटी डेवलपमेंट, मोटिवेशन और सोफ्ट्सकिल्स की ट्रेनिंग देते हैं ।
साथ ही इनके हॉबीज में लिखना और पढ़ना है । सोशल मीडिया में सैटायर लिखने के लिए जाने जाते हैं। साथ ही शायरी, गजल, और कविता लिखने में भी इनकी मजबूत पकड़ है।